राजनीति में राम के नाम का इस्तेमाल पुरानी बात हो चुकी है लेकिन बिहार में रामचरितमानस, राम और रावण की बहस पिछले कई महीनों से छाई हुई है। अब इस बहस में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी एक बार फिर कूद पड़े हैं जिन्होंने राम और रावण के चरित्र को काल्पनिक बताया है। कमंडल की राजनीति करने वालों की ओर से राम के बारे में इस तरह के बयानों का राजनीतिक मतलब भी निकाला जा रहा है।
यह बात तो सबको पता है कि राष्ट्रीय जनता दल से संबंध रखने वाले बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर रामचरितमानस के कुछ दोहों को लेकर शिकायत कर रहे हैं। प्रोफेसर चंद्रशेखर की शिकायत है कि रामचरितमानस में शूद्रों और स्त्रियों के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी गई हैं। इस बात पर खुद महागठबंधन से उन्हें समर्थन नहीं मिला है। उनके इस बयान के जवाब में पटना में कई आयोजन कर यह बात बताई गई कि रामचरितमानस में दर्ज दोहों का मतलब वह नहीं है जो प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर बता रहे हैं।
रामचरितमानस पर अभी यह बहस जारी ही थी कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने राम और रावण के बारे में ऐसा बयान दिया है इस पर भाजपा ने आपत्ति जताई है।
जीतन राम मांझी के नाम में भी राम है लेकिन शुक्रवार को विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि वे राम और रावण दोनों को काल्पनिक मानते है। यह दावा भी किया कि कर्मकांड के आधार पर राम से रावण का चरित्र बड़ा है। कई लोग कहते हैं कि यह सीधे-सीधे हिंदुत्व की राजनीति को चुनौती देने जैसा है।
माँझी यही नहीं रुके बल्कि उन्होंने यहां तक कहा-
“
रामायण में भी काल्पनिक कहानी है। ...कल्पना में भी रावण के साथ न्याय नहीं किया गया। यह मेरी व्यक्तिगत समझ है। रामायण में जब-जब राम किसी परेशानी से गुजरते थे तो अलौकिक शक्तियों की सेवाएं राम को मिलती थीं, मगर रावण के साथ ऐसा कुछ नहीं था। ...वाल्मीकि रामायण में भी बहुत सी बातें ठीक नहीं हैं, उसको निकालना चाहिए।
-जीतन राम मांझी, पूर्व सीएम बिहार, 18 मार्च 2023
जीतन राम मांझी अपने राजनैतिक करियर के पिछले कुछ वर्षों में कभी महागठबंधन तो कभी एनडीए में रहे हैं। पिछले साल अप्रैल में जब वे एनडीए में भाजपा-जदयू के साथ थे तब भी उन्होंने एक ऐसा ही बयान दिया था। तब उन्होंने खुद को माता शबरी का वंशज बताया था और कहा था कि वे श्रीराम को भगवान नहीं मानते। इससे भी पहले उन्होंने ब्राह्मणों के बारे में विवादास्पद बयान दिया था जिसके डैमेज कंट्रोल के लिए उन्होंने ब्राह्मण भोज का भी आयोजन किया था। उन्होंने कहा था कि उन्होंने कभी श्रीराम को भगवान मानकर पूजा नहीं की।
वे खुद राजनीति में अब इतने सक्रिय नहीं हैं लेकिन उनके पुत्र और मंत्री संतोष कुमार सुमन 'हम' की बागडोर संभाले हुए हैं। माँझी अपने मोर्चा के संरक्षक हैं। इस समय उनके पास विधानसभा के 4 और विधान परिषद में एक सदस्य हैं। जब-जब नीतीश कुमार के पाला बदलने की खबर आती है तो जीतन राम मांझी के बारे में भी यह अफवाह फैलती है लेकिन उनके इस बयान से भारतीय जनता पार्टी के साथ उनके जाने की संभावनाएं कमजोर होती हैं।
मांझी के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। इसके विरोध में बयान देने के लिए उन्होंने एक दलित नेता विधान पार्षद जनक राम को चुना।
जनक राम ने आरोप लगाया कि इन दिनों हिंदू धर्म हिंदू धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ हिंदू देवी देवताओं को गाली देना और उन पर आरोप लगाना लेफ्ट लिबरल और 'तथाकथित' प्रगतिशील व समाजवादी लोगों का फैशन बन गया है। भाजपा के दूसरे नेताओं ने भी कहा कि हिंदू सनातन मान्यता के भगवान के बारे में भला बुरा कह कर यह लोग आम हिंदू जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं। उन्होंने उनके बयान को निंदनीय बताया।
इस तरह के बयानों को बौद्धिक बहस माना जाए या राजनीति की बिसात? अक्सर लोग कहते हैं के प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर और जीतन राम मांझी का बयान राजनीति और बौद्धिक बहस का मिलाजुला परिणाम है। माँझी ने यह भी कहा है कि मनुवादी व्यवस्था में कुछ लोग राजनीति के लिए राम के नाम का इस्तेमाल कर लोगों को बरगला रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रीय जनता दल और जीतन राम मांझी की कोशिश यह है कि भारतीय जनता पार्टी को राम के नाम पर वोट मांगने से पहले कुछ ऐसे असहज सवालों का सामना कराया जाए जिसके लिए उनके पास शायद तैयारी न हो। ध्यान देने की बात यह है कि खुद प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर को अपनी पार्टी आरजेडी के साथ-साथ जनता दल यूनाइटेड के सवर्ण वर्ग के नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा है। इसके बावजूद वे अपने स्टैंड पर कायम हैं।
माँझी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं और ऐसे में उनका वह बयान देना थोड़ा अचंभे में डालने वाला है क्योंकि खुद नीतीश कुमार प्रोफेसर चंद्रशेखर के बयान से असहमति जता चुके हैं। कुछ लोगों का मानना है कि मंडल की राजनीति करने वाले दरअसल ऐसे बयानों से यह भांपने में लगे हैं कि कमंडल की राजनीति के खिलाफ ऐसे मुद्दे कितने मददगार हो सकते हैं।
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