एनडीए के साथ नाता तोड़ने के बाद जनता दल यूनाइटेड यानी जेडीयू का एक ही लक्ष्य दिखाई देता है। लक्ष्य यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का चेहरा बनाना। जब से नीतीश कुमार ने महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाई है, 2024 के चुनाव में विपक्ष का चेहरा कौन होगा, इसे लेकर बहस तेज हो गई है।
लेकिन जेडीयू के पूरा जोर लगाने के बाद भी क्या यह इतना आसान होगा कि विपक्ष के तमाम नेता नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर स्वीकार कर लेंगे और क्या विपक्षी दल एक मंच पर आ पाएंगे?
नीतीश कुमार की ओर से बीते महीने एनडीए के साथ नाता तोड़ते ही यह संकेत दे दिए गए थे कि अब वह 2024 की चुनावी लड़ाई लड़ना चाहते हैं।
पटना में हो रही जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले जेडीयू ने पटना मुख्यालय के बाहर जो पोस्टर लगाए हैं, उनका भी सीधा संदेश देश भर में नीतीश कुमार को विपक्ष के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करना है।
आने वाले दिनों में नीतीश कुमार कई राज्यों के दौरे पर जा सकते हैं। नीतीश कुमार सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते हैं लेकिन उनकी छवि पलटी मारने वाले नेता की भी है। क्योंकि वह बीजेपी और महागठबंधन के पाले में आते-जाते रहे हैं लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले पाला बदला है और उसके बाद उनके और जेडीयू के बयानों को मिला दें तो यह नीतीश की सियासी महत्वाकांक्षा को साफ करते हैं।
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शनिवार को नीतीश ने एक बार फिर कहा है कि उनका काम विपक्षी दलों को एकजुट करना है और अगर 2024 में विपक्ष एकजुट हुआ तो नतीजे अच्छे आएंगे। बहुत सोच-समझकर बोलने वाले नीतीश कुमार का यह कहने का वाकई बड़ा मतलब है। मतलब यही है कि 2024 में अगर सियासी हालात बदले तो उनकी इच्छा देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठने की है। जेडीयू के कई नेता, मंत्री 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर खुलकर बयान दे चुके हैं।
यहां तक कि आरजेडी के नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार बता चुके हैं।
2019 में हुई थी कोशिश
जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार को 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने की तमाम कोशिशों के बीच दूसरे विपक्षी दलों का क्या हाल है, इस बारे में भी थोड़ी-बहुत बात करना बेहद जरूरी है। क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एकजुट करने की तमाम कोशिशें हुई थी लेकिन यह कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकी थीं।
तब तेलुगू देशम पार्टी के मुखिया और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोशिश की थी कि विपक्षी दलों को एकजुट किया जाए लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी ऐसा नहीं हो सका था।
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क्या कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, टीआरएस, टीडीपी, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल एक मंच पर आ पाएंगे। विपक्ष के सामने मुश्किल यह है कि सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस बहुत कमजोर हो चुकी है। ऐसे हालात में चुनौतियां विपक्ष के सामने भी ज्यादा हैं क्योंकि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि उनकी पार्टी 2024 का चुनाव अकेले चुनाव लड़ेगी। तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के खराब रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। यूपीए में शामिल बाकी दलों का कोई बड़ा जनाधार नहीं है।
वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल कई मुद्दों पर एनडीए का साथ दे चुके हैं।
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बीजेपी की मुश्किलें
दूसरी ओर, बीजेपी को बिहार में नीतीश कुमार के साथ छोड़ने के बाद हिंदी बेल्ट में झटका जरूर लगा है। बीजेपी के साथ अब कोई भी बड़ा सहयोगी दल नहीं है। हालांकि शिवसेना में हुई टूट से महाराष्ट्र में विधायकों-सांसदों का एक धड़ा उसके साथ आ गया है। लेकिन पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से लेकर राजस्थान में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, बिहार में जनता दल यूनाइटेड उससे दूर जा चुके हैं। ऐसे में बीजेपी के पास छोटे-छोटे सहयोगी दल हैं और 135 करोड़ की आबादी वाले और 543 लोकसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में बीजेपी के लिए अपने दम पर चुनाव मैदान में उतर पाना आसान नहीं होगा।
अहम है 2023
साल 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं और इन राज्यों से निकला सियासी जनादेश इस बात को तय करेगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष कहां खड़ा होगा। अगर विपक्ष एकजुट होता है तो वह बीजेपी को जोरदार टक्कर दे सकता है। लेकिन अगर 2023 के चुनावी राज्यों में विपक्षी दलों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो 2024 के चुनाव से पहले ही उसकी नींव कमजोर हो जाएगी।
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