बिहार की 40 लोकसभा सीटों के लिए इंडिया गठबंधन की ओर से सीट शेयरिंग का अब तक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन सीटों की संख्या पर जिस तरह घटक दल दावे कर रहे हैं उससे दावेदारी 55 सीटों तक पहुँच गई है।
एक तरफ़ जदयू और आरजेडी 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं तो कांग्रेस की दावेदारी 10 लोकसभा सीटों पर है। दूसरी ओर वामपंथी दल भी 11 सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। इस तरह कुल सीट 55 हो जाती हैं हालाँकि एक ही सीट पर कई दावेदारी होने की वजह से यह संख्या कम भी हो सकती है। राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि अगर इंडिया गठबंधन के घटक दल सीट शेयरिंग पर कोई सर्वसम्मत समझौता नहीं कर सकते तो क्या यहां फ्रेंडली फाइट भी हो सकती है? इंडिया गठबंधन की योजना वैसे वन टू वन यानी एनडीए के उम्मीदवार के खिलाफ इंडिया की ओर से भी एक ही उम्मीदवार देने की है लेकिन फिलहाल इसमें काफी अड़चनें नजर आ रही हैं।
बिहार में सीट शेयरिंग को लेकर इंडिया गठबंधन में कैसे फैसला होगा, इस पर स्थिति साफ नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड यह मानकर चल रहा है कि पिछली बार उसने जिन 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था वह 17 सीटें इस बार भी उसे मिलेंगी। उन 17 सीटों में जदयू को 16 पर जीत मिली थी और ‘सीटिंग- गेटिंग’ के आधार पर भी 16 सीट जदयू के खाते में मांगी जा सकती है।
2019 में एनडीए को जिस एक सीट पर हार का सामना करना पड़ा था वह किशनगंज की लोकसभा सीट थी जहां कांग्रेस के डॉक्टर मोहम्मद जावेद ने जनता दल यूनाइटेड के सैयद महमूद अशरफ को हराया था। ध्यान रहे कि 2019 में एनडीए को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर जीत हासिल हुई थी। इसमें 17 लोकसभा सीट पर भाजपा और 16 पर जदयू को जीत मिली थी। छह सीटों पर स्वर्गीय रामविलास पासवान की तत्कालीन लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवारों को जीत मिली थी।
बिहार में कांग्रेस पार्टी को 4 से 5 सीट मिलने की संभावना जताई जा रही है लेकिन उसका दावा 10-11 सीटों पर है।
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी लेनिनवादी (भाकपा-माले) अपने लिए पांच सीट चाहती है। उसकी दावेदारी वाली लोकसभा सीटों में पाटलिपुत्र, आरा, काराकाट, जहानाबाद और सीवान शामिल हैं।
इसी तरह भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई) बेगूसराय, बांका और मधुबनी में लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है। इस बारे में सीपीआई के महासचिव डी राजा के नेतृत्व में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव से सीपीआई प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात भी हो चुकी है। उधर, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीएम) भी तीन लोकसभा सीटों पर दावेदारी का मन बना रहा है और इसके लिए जल्द ही उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से उसका एक प्रतिनिधिमंडल मिलेगा।
जिस एक चर्चित सीट पर सीपीआई, राजद और कांग्रेस के बीच जिच हो सकती है वह बेगूसराय की सीट मानी जा रही है। यहां से फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्री गिरिराज सिंह सांसद हैं। पिछली बार कन्हैया कुमार सीपीआई से चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस बार भी उनके बेगूसराय से कांग्रेस उम्मीदवार बनने की उम्मीद जताई जा रही है। हालाँकि एक राय यह भी है कि कन्हैया कुमार को दिल्ली से कांग्रेस का टिकट मिले।
इसी तरह मधुबनी सीट पर कांग्रेस के साथ सीपीआई का भी दावा है जबकि बांका सीट पर जदयू और सीपीआई दोनों लड़ना चाहती है। यही हाल काराकाट का है जहां जदयू और भाकपा माले की अपने-अपनी दावेदारी है।
ऐसे में राजनीतिक प्रेक्षक यह सवाल कर रहे हैं कि क्या बेगूसराय, मधुबनी, काराकाट और बांका वैसी सीटें हो सकती हैं जहां गठबंधन धर्म का पालन मुश्किल हो और इंडिया में ही फ्रेंडली फाइट देखने को मिले। इसके अलावा भी कुछ अन्य सीटें हैं जहाँ समझौते के लिए इंडिया गठबंधन को संघर्ष करना पड़ सकता है।
इस सीट शेयरिंग में जनता दल यूनाइटेड की ओर से ऐसा संकेत दिया जा रहा है कि उसके हिस्से की 16-17 सीटों को छोड़कर बाकी की सीटों पर बातचीत के लिए घटक दलों को राजद प्रमुख लालू प्रसाद या उनके बेटे तेजस्वी यादव से बात करनी होगी।
शायद यही कारण है कि वामपंथी दलों और कांग्रेस के नेता सीट शेयरिंग के मामले में जदयू के नेताओं से नहीं बल्कि राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव से मिल रहे हैं। यह बात इंडिया गठबंधन के लिए अटपटी लग सकती है कि पूरे राज्य में सीटों के बंटवारे के बारे में जदयू और राजद अलग-अलग तरीके से सोच रहा है। जदयू का तर्क यह है कि आरजेडी का कांग्रेस और वामपंथी दलों से पहले से समझौता चला आ रहा है। ध्यान रहे कि 2020 का विधानसभा चुनाव राजद ने वामपंथी दलों और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन के तहत लड़ा था।
फिलहाल, सीटों के बँटवारे पर ज्यादा बयान जदयू और कांग्रेस नेताओं का आ रहा है और आरजेडी की तरफ़ से लालू प्रसाद और तेजस्वी ने एक तरह की रणनीतिक चुप्पी साध रखी है।
सीटों की संख्या के अलावा सीट शेयरिंग के समय को लेकर भी इंडिया गठबंधन में एकमत नहीं दिखाई देता। जदयू के सीनियर लीडर और मंत्री विजय कुमार चौधरी का मानना है कि सीट बँटवारे में देरी अब बिल्कुल उचित नहीं है। उनका कहना है कि जदयू का शुरू से मानना रहा है कि सीटों का बँटवारा जल्द होना चाहिए। उनके अनुसार सीटों के बंटवारे में देरी से इंडिया गठबंधन को ही नुकसान होगा।
दूसरी ओर बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का मानना है कि सीट शेयरिंग के लिए बातचीत चल रही है और देरी कोई समस्या नहीं है। उन्होंने यह सवाल भी किया कि जब अभी चुनाव की घोषणाएँ नहीं हुईं तो सीट बंटवारे में देरी की बात क्यों हो रही।
कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद का यह भी कहना है कि भाजपा और एनडीए में भी अभी सीट बंटवारा नहीं हुआ है। लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि इंडिया गठबंधन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेता का सामना करना है और बीजेपी के लिए एनडीए के घटक दलों के बीच सीट बँटवारा उतना मुश्किल काम नहीं होगा। सीट शेयरिंग के समय को लेकर कांग्रेस और जदयू में एक तरह की तल्खी भी देखी जा सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि अगर समय रहते इंडिया गठबंधन ने सीट शेयरिंग नहीं की तो उसे फ्रेंडली फाइट का भी सामना करना पड़ सकता है और यह स्थिति अंततः भारतीय जनता पार्टी और एनडीए को फायदा पहुंचाएगी।
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