बिहार में चुनावी घमासान जारी है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर, वर्चुअल रैली का जोर और हर मुद्दे के केंद्र में लालू प्रसाद यादव का शोर सबको साफ-साफ सुनाई दे रहा है। लेकिन इन सबसे अलग बिहार के चुनाव में एक और ज़रूरी शर्त होती है। इस शर्त को जीते बिना किसी पार्टी के लिए चुनावी वैतरणी को पार करना नामुमकिन सा हो जाता है। वैसे तो यह शर्त देश की किसी भी चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए ज़रूरी होती है लेकिन बिहार के संदर्भ में यह कुछ ज्यादा अहम है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में व्यक्तिवादी राजनीति के साथ-साथ दलगत राजनीति की धमक भी उतनी ही है जितनी किसी और चीज की।
बिहार: इन 46 सीटों पर गठबंधन करके ही मिल सकती है जीत, होगा जोरदार मुक़ाबला
- बिहार
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- 9 Sep, 2020

तिरहुत प्रमंडल के जिलों में आने वाली इन सीटों में मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर और वैशाली जिलों की सीटें हैं। इन 46 विधानसभा सीटों पर बीजेपी, आरजेडी व जेडीयू में वही पार्टी अधिक सीट जीतने में सफल रही है जो शेष दो पार्टियों में से किसी एक के साथ जुड़ जाती है।
बिहार में दलगत राजनीति के आधार में जातिगत समीकरणों का जाल है इसलिए व्यक्तिवाद के साथ-साथ दलों को साधने की भी परंपरा रही है। इसी का लाभ चुनावी माहौल में जीतन राम मांझी जैसे नेता उठाते हैं। सता के अनुरूप पाला बदलना इन्हें ही भाता और आता है।