बिहार में चुनावी घमासान जारी है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर, वर्चुअल रैली का जोर और हर मुद्दे के केंद्र में लालू प्रसाद यादव का शोर सबको साफ-साफ सुनाई दे रहा है। लेकिन इन सबसे अलग बिहार के चुनाव में एक और ज़रूरी शर्त होती है। इस शर्त को जीते बिना किसी पार्टी के लिए चुनावी वैतरणी को पार करना नामुमकिन सा हो जाता है। वैसे तो यह शर्त देश की किसी भी चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए ज़रूरी होती है लेकिन बिहार के संदर्भ में यह कुछ ज्यादा अहम है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में व्यक्तिवादी राजनीति के साथ-साथ दलगत राजनीति की धमक भी उतनी ही है जितनी किसी और चीज की।