बिहार के अख़बारों में वाक़ई विकास की बहार है। वाया नीतीश कुमार। हर दिन एक पन्ने में विकास के बढ़ते क़दम बताये जा रहे हैं। और दो-तीन पन्नों पर उद्घाटन-शिलान्यास के विज्ञापन रह रहे हैं। लेकिन इन विज्ञापनों के बीच 19 सितंबर को उत्तर प्रदेश सरकार का एक विज्ञापन कुछ अलग तरीक़े से भारी लग रहा है। अख़बारी भाषा में सेंटरस्प्रेड के दो पेजों में छपे इस विज्ञापन का विषय हैः ‘उत्तर प्रदेश बना कारोबारी सुगमता का केन्द्र’।

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है। चुनाव में किसका पलड़ा होगा भारी? पंद्रह साल से नीतीश कुमार सत्ता में हैं। पंद्रह सालों में नीतीश कुमार लोगों की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाए? क्या बिहार विकास के रथ पर सरपट भाग पाया? अगर पहले पाँच सालों को छोड़ दें तो नीतीश के सरकार का हिसाब निराशाजनक है। बिहार आज भी बहुत पिछड़ा है तो उसके लिये ज़िम्मेदार कौन है? नीतीश सरकार में बिहार में बिज़नेस की स्थिति कैसी रही।
क्या ऐसा विज्ञापन बिहार सरकार का हो सकता था? स्पष्ट उत्तर है नहीं। कारण?
इस विज्ञापन की सुर्खी हैः उत्तर प्रदेश को मिला दूसरा स्थान, निवेशकों को मिली सुगमता ने दिलाई बढ़त। बिहार को इस रैंकिंग में 26वाँ स्थान मिला है। अब इस स्थान का विज्ञापन तो नहीं दिया जा सकता था। बिहार से बीस साल पहले अलग हुआ झारखंड पाँचवें स्थान पर है।
उत्तर प्रदेश के विज्ञापन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुस्कुराता चेहरा है जो आमतौर पर ग़ुस्से में दिखता है। योगी के इस विज्ञापन में बताया गया है कि यह उनके साढ़े तीन साल के कार्यकाल का कमाल है। हो सकता है कि लोग तर्क दें कि उत्तर प्रदेश में इससे पहले की सरकारों का भी इसमें योगदान रहा होगा।