पुलिस का काम क़ानून का पालन कराना है। यह बात सही है कि वह राज्य सरकार की प्रमुख एजेंसी है और उसे उसके साथ मिलकर काम करना होता है। लेकिन यह क़तई जायज नहीं है कि पुलिस अफ़सर नेताओं की भाषा बोलें।
बुधवार को जैसे ही सर्वोच्च अदालत का यह फ़ैसला आया कि सुशांत मामले की जांच अब मुंबई पुलिस नहीं सीबीआई करेगी, पत्रकार बाइट लेने के लिए बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के पास पहुंचे।
पांडेय इस मामले में पहले भी मुखर रहे हैं और पटना के आईपीएस अफ़सर विनय तिवारी को मुंबई में क्वारेंटीन किए जाने पर जमकर बोले थे। तब एक डीजीपी होने के नाते उन्होंने जो कुछ कहा था, उस पर किसी ने सवाल नहीं खड़े किए क्योंकि माना गया कि उन्होंने कुछ ग़लत नहीं कहा था।
लेकिन सर्वोच्च अदालत का फ़ैसला आने के बाद उन्होंने रिया चक्रवर्ती को लेकर जो टिप्पणी की, वह पुलिस विभाग में डीजीपी जैसे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को क़तई शोभा नहीं देती। पहले पढ़िए, पत्रकारों से बातचीत के दौरान डीजीपी ने क्या कहा। उन्होंने कहा, ‘बिहार के मुख्यमंत्री पर कमेंट करने की औकात रिया चक्रवर्ती की नहीं है।’ डीजीपी ने एक बार फिर जोर से इसी टिप्पणी को दोहरा दिया।
एक पत्रकार ने डीजीपी की इस टिप्पणी पर आपत्ति जताई और कहा कि आप डीजीपी हैं और आप रिया के लिए औकात जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, क्या यह आपके पद को शोभा देता है। डीजीपी ने कहा- ‘औकात का मतलब क्या होता है...शोभा देता है, मैं इस बात को रिपीट कर रहा हूं। रिया चक्रवर्ती की ये हैसियत नहीं है कि वह बिहार के मुख्यमंत्री पर टिप्पणी करें।’
इस पर पत्रकार ने कहा कि आप सरकार के प्रवक्ता की तरह क्यों बात करते हैं। डीजीपी ने पलटकर जवाब दिया, ‘मुझे सरकार ने बोलने के लिए कहा है। आप तो तैयारी करके आए हैं, आप जैसे लोगों से मैं डिमोरलाइज होने वाला नहीं हूं।’
'आपको भेजा गया है’
डीजीपी ने झल्लाकर कहा, ‘आप मोटिवेटेड सवाल कर रहे हैं। आपको भेजा गया है।’ पत्रकार ने कहा कि आप लगातार रिया चक्रवर्ती पर व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहे हैं, क्या आपकी भाषा डीजीपी के लायक है?, इस पर डीजीपी ने कहा कि उन्होंने कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की। अंत में उन्होंने कहा कि अगर उनकी औकात वाली टिप्पणी से किसी को आपत्ति है तो वह इसके लिए माफी मांगते हैं।
मुंबई पुलिस पर टिप्पणी
पांडेय ने बातचीत के दौरान सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को 130 करोड़ लोगों की जीत बताया। उन्होंने कहा कि सुशांत मामले में मुंबई पुलिस के काम करने का ढंग ग़ैर कानूनी और अनैतिक था। डीजीपी की यह टिप्पणी भी ठीक नहीं है क्योंकि मुंबई पुलिस का देश में बहुत नाम है और पुलिस महकमे का मुखिया होने के नाते उन्हें देश की सबसे प्रोफ़ेशनल पुलिस पर टिप्पणी करते हुए शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए था।
चुनाव लड़ना चाहते हैं!
डीजीपी पांडेय के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षा होना ग़लत नहीं है लेकिन सार्वजनिक जीवन में किसी पर भी चाहे वह महिला हो या पुरूष, इस तरह की टिप्पणी करना किसी के लिए भी सही नहीं है और वह भी तब जब आप क़ानून व्यवस्था संभालने वाली एजेंसी के मुखिया के पद पर बैठे हों।
क्योंकि आपकी कही बातें, आपके काम आपके महकमे के अलावा समाज के भी हज़ारों लोगों के बीच जाते हैं। इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए जिससे महकमे और उस सर्वोच्च पद की गरिमा कम होती हो। शायद यही समझते हुए डीजीपी ने बाद में अपनी टिप्पणी के लिए माफ़ी भी मांग ली।
दुबे को ब्राह्मण शेर बताने पर भड़के थे
गुप्तेश्वर पांडेय ने कानपुर के कुख़्यात अपराधी विकास दुबे को ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों द्वारा ब्राह्मण शेर बताने पर करारा जवाब भी दिया था। डीजीपी ने कहा था कि कितने शर्म और अफ़सोस की बात है कि ऐसे पेशेवर हत्यारे का महिमामंडन किया जा रहा है और अपनी-अपनी जाति के अपराधियों को लोग हीरो बना रहे हैं। उन्होंने कहा था कि अगर लोग इस तरह बर्ताव करेंगे तो अपराध की संस्कृति तो फूलेगी-फलेगी ही।
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