मुमकिन है?
उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने तो साफ कहा कि इतने लोगों को वेतन देने पर 58,415.06 करोड़ रुपए का नया खर्च होगा। इसमें पुराने कर्मचारियों के तनख़्वाह और भत्ते जोड़ लें तो कुल खर्च 1,11,189 करोड़ रुपए हो जाता है। सरकार के पास यह पैसा तो है नहीं, यानी यह वादा पूरा हो ही नहीं सकता, बस हवा हवाई है।क्या राज्य के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को एक दिन पहले तक यह ख़बर नहीं थी कि उनकी पार्टी क्या वादा करने जा रही है? ख़ैर, मसला सिर्फ यह है कि इस चुनाव में रोज़गार कितना बड़ा मुद्दा बनेगा। कमाई, पढ़ाई और दवाई का जो नारा तेजश्वी यादव ने लगा दिया है, क्या वह उन्हें कुर्सी तक पहुँचा देगा?
सरकारी नौकरी?
लेकिन बिहार हो, देश का कोई और हिस्सा हो या पूरे देश की बात कर लें, यह सवाल तो उठना ही है कि रोज़गार का मतलब क्या सरकारी नौकरी या प्राइवेट नौकरी ही है या जो लोग अपना रोज़गार करेंगे, उसका श्रेय भी सरकार के ही खाते में जाना है।नौकरी क्यों नहीं देती सरकार?
सीएमआइई के प्रमुख महेश व्यास इस मसले पर लगातार नज़र रखते हैं। उनके लिए भी यह एक पहेली ही है कि जब सरकारी नौकरियों के लिए इतनी ललक है, और दूसरी तरफ सरकारी सेवाओं में और दफ़्तरों में लोगों की कमी लगातार दिख रही है तो फिर सरकारें आख़िर ज़्यादा लोगों को नौकरी देती क्यों नहीं हैं?एक समाज के तौर पर भी हम यह तर्क क्यों बर्दाश्त कर लेते हैं कि सरकार के पास पैसा नहीं है, इसलिए वह आवश्यक सेवाओं के लिए स्टाफ़ रखने का बुनियादी काम भी पूरा नहीं करेंगी?
क्या उपाय है?
अब इससे मुक़ाबला करने के दो रास्ते हैं। एक सरकार अपनी फिजूलखर्ची पर लगाम लगाए। और दूसरा, वह अपनी कमाई बढ़ाए। फिजूलखर्ची रोकने के दर्जनों उपाय अलग अलग आयोग सुझा चुके हैं लेकिन रस्म निभाने से आगे कोई ठोस काम होता दिखता नहीं है। और यह भी सही है कि एक विकासशील समाज में सरकार खर्च कम कर करके अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा सकती।माँग-खपत निकली?
अब कुछ अच्छी खबरें ज़रूर आ रही हैं। जितनी कंपनियों के दूसरी तिमाही के नतीजे अभी तक आ चुके हैं, उनके आधार पर कहा जा रहा है कि इकोनॉमी पटरी पर लौट रही है। ख़ास तौर पर कंपनियों की बिक्री के आँकड़े दिखा रहे हैं कि बाज़ार में माँग लौट रही है।सिर्फ दशहरे के दिन मुंबई, गुजरात और कुछ दूसरे शहरों में कुल 200 मर्सिडीज़ कारें बिक गईं। यह पिछले दशहरे से ज़्यादा है। मारुति ने नवरात्रि में 96,700 गाड़ियाँ बेच लीं और कंपनी को उम्मीद है कि दीपावली तक उसका धंधा चमकता ही रहेगा।
नवरात्रि शॉपिंग
नवरात्रि की ही एक और ख़बर यह है कि हमारे देश के लोग ऑनलाइन पोर्टल्स पर हर मिनट डेढ़ करोड़ रुपए के मोबाइल फ़ोन खरीद रहे थे। लॉकडाउन की वजह से बाज़ारों में हलचल भले ही कम हो लेकिन ऑनलाइन शॉपिंग करनेवालों की गिनती पिछले साल से 85% बढ़ गई है।और इन्होंने जो खरीदारी की वो भी पिछले साल से 15 प्रतिशत ऊपर ही है।नवरात्रि में ही करीब 4 अरब डॉलर यानी करीब सवा लाख करोड़ रुपए की ऑनलाइन शॉपिंग हुई है। मॉल्स में भी लॉकडाउन के बाद पहली बार इतनी रौनक दिखी, हालांकि वहां बिक्री पिछली नवरात्रि के मुक़ाबले कम ही रही।
लेकिन व्यापारी निराश नहीं हैं, वो दुकानें सजा रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि दिवाली तक पिछले साल के मुकाबले कम से कम 85% कारोबार तो वापस आ ही जाएगा।
कोर सेक्टर
उधर औद्योगिक उत्पादन के इंडेक्स यानी आईआईपी और कोर सेक्टर के आँकड़े भी उम्मीद जगा रहे हैं। मार्च में लॉकडाउन लगते ही 22% और उसके बाद अप्रैल में 66.6% तक गिरने के बाद से आईआईपी में लगातार सुधार दिख रहा है।ऐसा नहीं कि इसमें पिछले साल के मुकाबले बढ़त आ गई लेकिन हर महीने गिरावट का आँकड़ा कम से कम होता रहा। मई में 37.9%, जून में 16%, जुलाई में 11.6% और अगस्त तक 8.6% की ही गिरावट रह गई।
तिमाही रिपोर्ट
कंपनियों के तिमाही रिपोर्ट कार्ड से दिख रहा है कि ख़ाकर छोटे शहरों और गाँवों से माँग बढ़ी है। दूसरी तरफ कोरोना के बावजूद अप्रैल से अगस्त के बीच ही भारत में 35.73 अरब डॉलर का सीधा विदेशी निवेश आया है जो न सिर्फ पिछले साल से 13 परसेंट ज्यादा है, बल्कि एक नया रिकॉर्ड भी है।नौकरी मिलेगी?
अब सवाल यह है कि क्या इस सबका फ़ायदा नौजवानों को, महिलाओं को नौकरी के रूप में मिलेगा? अगर यह संकेत माने जाए तो जवाब हाँ में ही होना चाहिए। लेकिन अब 2 नए सवाल खड़े हो रहे हैं। एक यह कि कोरोना की विदाई कब होगी?अमेरिका और यूरोप में जिस अंदाज में दूसरी और तीसरी लहर सामने आई और उन्हें और कड़े लॉकडाउन पर मजबूर होना पड़ा, कहीं वो मुसीबत हमें भी तो नहीं झेलनी पड़ेगी? ऐसा हुआ तो फिर स्लेट पोंछकर सारी गणित नए सिरे से जोड़नी पड़ेगी।
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