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तमिलनाडु में वक्फ बिल के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास; नीतीश-नायडू पर दबाव बढ़ेगा?

तमिलनाडु विधानसभा ने गुरुवार को केंद्र सरकार के वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के ख़िलाफ़ एक प्रस्ताव पारित किया है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस प्रस्ताव को पेश करते हुए इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति के अधिकारों पर हमला करार दिया। इस कदम ने न केवल केंद्र की भाजपा नीत सरकार को चुनौती दी है, बल्कि एनडीए के सहयोगी दलों, खासकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर भी एक तरह से दबाव बना दिया है। क्या अब इन दोनों नेताओं पर अपने-अपने राज्यों में ऐसा ही कदम उठाने का दबाव बढ़ेगा?

तमिलनाडु विधानसभा का यह प्रस्ताव केंद्र सरकार से वक्फ विधेयक को पूरी तरह वापस लेने की मांग करता है। स्टालिन ने अपने संबोधन में कहा कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की स्वायत्तता को कमजोर करता है और संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है। यह अनुच्छेद धार्मिक समूहों को अपने मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है। 

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स्टालिन का यह क़दम न केवल तमिलनाडु की डीएमके सरकार की अल्पसंख्यक समर्थक छवि को मज़बूत करता है, बल्कि गैर-भाजपा शासित राज्यों के लिए एक मिसाल भी कायम करता है। सवाल यह है कि क्या यह अन्य राज्यों को भी इसी तरह का क़दम उठाने के लिए प्रेरित करेगा, खासकर उन राज्यों को जहां विपक्षी दल और बीजेपी के सहयोगी सत्ता में हैं।

एनडीए में बीजेपी के प्रमुख सहयोगी नीतीश कुमार का जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी इस समय केंद्र सरकार के लिए अहम हैं, क्योंकि बीजेपी के पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है। बिहार और आंध्र प्रदेश दोनों ही राज्यों में मुस्लिम आबादी ठीक-ठाक है। बिहार में क़रीब 17% और आंध्र प्रदेश में लगभग 9.5%। ये दोनों दल काफ़ी हद तक मुस्लिम वोटबैंक पर लंबे समय से निर्भर रहे हैं, और उनकी पार्टियों की धर्मनिरपेक्ष छवि उनकी राजनीतिक सफलता का एक बड़ा कारण रही है।

तमिलनाडु के इस क़दम के बाद अब मुस्लिम संगठन और विपक्षी दल नीतीश और नायडू पर दबाव बढ़ा सकते हैं कि वे भी वक्फ विधेयक के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आएं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यानी एआईएमपीएलबी पहले ही इन दोनों नेताओं से इस विधेयक का विरोध करने की अपील कर चुका है। 
बिहार में एआईएमपीएलबी ने हाल ही में पटना में धरना प्रदर्शन किया, जिसमें नीतीश कुमार की चुप्पी पर सवाल उठाए गए। इसी तरह आंध्र प्रदेश में भी मुस्लिम समुदाय के बीच इस विधेयक को लेकर नाराजगी बढ़ रही है।
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के लिए यह स्थिति जटिल है। एक ओर, वे एनडीए के हिस्से हैं और केंद्र में भाजपा के साथ सत्ता साझा कर रहे हैं। दूसरी ओर, उनके राज्यों में मुस्लिम वोटबैंक उनकी राजनीतिक ताक़त का अहम हिस्सा है। बिहार में नीतीश का सेक्युलर चेहरा पहले ही सवालों के घेरे में आ चुका है, खासकर जब मुस्लिम संगठनों ने उनकी इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया था। वहीं, नायडू ने हाल के दिनों में मुस्लिम समुदाय को लेकर सकारात्मक बयान दिए हैं, जैसे कि उनकी 'हिंदू और मुस्लिम दो आंखें' वाली टिप्पणी, लेकिन टीडीपी ने अभी तक इस विधेयक पर खुलकर कोई रुख नहीं अपनाया है।
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अगर ये दोनों नेता तमिलनाडु की तरह वक्फ बिल के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित करते हैं, तो यह एनडीए में दरार पैदा कर सकता है। लेकिन अगर वे चुप रहते हैं या केंद्र का समर्थन करते हैं, तो उनके अपने वोटबैंक में नाराजगी बढ़ सकती है, जो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव और आंध्र प्रदेश में उनकी स्थिति को प्रभावित कर सकता है।

विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस, आरजेडी और एआईएमआईएम, इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। तमिलनाडु का प्रस्ताव उनके लिए एक नैतिक जीत है, और वे इसे नीतीश और नायडू पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पहले ही चेतावनी दी है कि अगर यह विधेयक पास हुआ, तो इतिहास इन नेताओं को मुस्लिम विरोधी के रूप में याद रखेगा। मुस्लिम समुदाय भी उम्मीद कर रहा है कि ये नेता उनकी भावनाओं का सम्मान करेंगे और इस विधेयक को रोकने में मदद करेंगे।

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वक्फ विधेयक अभी संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास विचाराधीन है, और संसद में इसकी मंजूरी एनडीए के सहयोगियों के रुख पर काफी हद तक निर्भर करेगी। तमिलनाडु का यह कदम नीतीश और नायडू के लिए एक परीक्षा की तरह है। अगर वे अपने राज्यों में ऐसा ही प्रस्ताव लाते हैं तो यह केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। लेकिन अगर वे ऐसा नहीं करते, तो उनकी सेक्युलर छवि और मुस्लिम वोटबैंक पर सवाल उठ सकते हैं।

तमिलनाडु विधानसभा का प्रस्ताव वक्फ विधेयक के ख़िलाफ़ एक मज़बूत राजनीतिक बयान है, जो एनडीए के भीतर और बाहर बहस को तेज करेगा। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर दबाव निश्चित रूप से बढ़ेगा, क्योंकि वे केंद्र के साथ गठबंधन और अपने राज्य के वोटबैंक के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे तमिलनाडु की राह पर चलते हैं या भाजपा के साथ अपनी वफादारी को प्राथमिकता देते हैं। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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