दिल्ली की नई कांग्रेस कमेटी में राहुल गांधी ने सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर कांग्रेस ने अपने पुराने बिखरे हुए वोट बैंक को समेटने की कोशिश की है। शीला दीक्षित पर इसलिए दाँव खेला गया है कि 1998 में शीला दीक्षित के कांग्रेस अध्यक्ष रहते पार्टी ने बीजेपी से दिल्ली की सत्ता छीनी थी। उसके बाद लगातार तीन बार 15 साल तक शीला दीक्षित मुख्यमंत्री रहीं। दिल्ली में उनसे बेहतर कोई दूसरा चेहरा कांग्रेस के पास नहीं है। खुद अजय माकन कुछ दिन पहले साफ़ कर चुके थे कांग्रेस के पास दिल्ली में शीला दीक्षित के लिए काम को भुलाने के अलावा को दूसरा मुद्दा नहीं है। इस नाते पार्टी में उनकी अलग अहमियत रही है। यही वजह है कि दिल्ली में चुनाव हारने के बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया था। बाद में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा भी प्रोजेक्ट किया गया। शीला दीक्षित हमेशा से सोनिया गांधी की बहुत खास़ सलाहकारों में शामिल रहीं है। यही वजह है कि पार्टी में बार-बार उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी मिलती रही। इसी सिलसिले को राहुल गांधी ने आगे बढ़ाते हुए एक बार फिर उन्हें दिल्ली में बड़ी ज़िम्मेदारी दी है।
शीला दीक्षित के काम के बल पर दिल्ली जीत लेगी कांग्रेस?
- विश्लेषण
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- यूसुफ़ अंसारी
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- 11 Jan, 2019


यूसुफ़ अंसारी
युवाओं को तरजीह देने की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी 80 साल के बुजुर्ग को सामने लाकर क्या संकेत दे रही है? क्या वह बीजेपी को टक्कर देने की तैयारियाँ शुरु कर रही है?