असीमानंद ने जाँच एजेंसियों और कैरवैन की पत्रकार लीना रघुनाथ को जो बताया, उसमें एक बात कॉमन थी - कि समझौता एक्सप्रेस से लेकर अजमेर दरगाह तक जितने भी धमाके हुए, उसमें सुनील जोशी का मेन रोल था। लेकिन जब तक जाँच एजेंसियों को इन धमाकों में हिंदुत्ववादी संगठनों का हाथ होने का पता चलता, सुनील जोशी की हत्या हो चुकी थी। 29 दिसंबर 2007 को मध्य प्रदेश के देवास में दो बाइक सवारों ने रिवॉल्वरों से उनपर गोलियाँ चलाईं। हत्यारे बाद में पकड़े भी गए और उनकी निशानदेही पर हथियार भी बरामद हुआ। हत्या में प्रज्ञा सिंह ठाकुर का कनेक्शन भी सामने आया (सुनील और प्रज्ञा साथ-साथ रहते थे और काम करते थे)। लेकिन हत्या के दस साल बाद आए अदालती फ़ैसले में प्रज्ञा समेत सारे अभियुक्त बरी हो गए।