असीमानंद ने जाँच एजेंसियों और कैरवैन की पत्रकार लीना रघुनाथ को जो बताया, उसमें एक बात कॉमन थी - कि समझौता एक्सप्रेस से लेकर अजमेर दरगाह तक जितने भी धमाके हुए, उसमें सुनील जोशी का मेन रोल था। लेकिन जब तक जाँच एजेंसियों को इन धमाकों में हिंदुत्ववादी संगठनों का हाथ होने का पता चलता, सुनील जोशी की हत्या हो चुकी थी। 29 दिसंबर 2007 को मध्य प्रदेश के देवास में दो बाइक सवारों ने रिवॉल्वरों से उनपर गोलियाँ चलाईं। हत्यारे बाद में पकड़े भी गए और उनकी निशानदेही पर हथियार भी बरामद हुआ। हत्या में प्रज्ञा सिंह ठाकुर का कनेक्शन भी सामने आया (सुनील और प्रज्ञा साथ-साथ रहते थे और काम करते थे)। लेकिन हत्या के दस साल बाद आए अदालती फ़ैसले में प्रज्ञा समेत सारे अभियुक्त बरी हो गए।
समझौता ब्लास्ट, किस्त 4: क्या है सुनील जोशी की हत्या का रहस्य?
- विश्लेषण
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- 30 Mar, 2019

समझौता ब्लास्ट मामले में स्वामी असीमानन्द को 'क्लीट चिट' मिल गई है। सरकार अदालत के फ़ैसले को चुनौती नहीं देगी। ऐसा क्यों है कि मोदी सरकार के आने के बाद से आतंकवाद से जुड़े कुछ ख़ास मामलों में, जिनमें आरएसएस से जुड़े लोगों के नाम हैं, प्रमुख अभियुक्त बरी हो रहे हैं। 'सत्य हिन्दी' ने इस मामले की गहरी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की है। इसकी पहली, दूसरी और तीसरी किस्त प्रकाशित की जा चुकी है और अब पेश है चौथी किस्त।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश