भारतीय जनता पार्टी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बार-बार नाथूराम गोडसे की तारीफ़ करना पार्टी के ऊपर कई सवाल तो खड़े करता है, पर यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है। बीजेपी को जन्म देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इसके पहले भी महात्मा गाँधी के प्रति नफ़रत दिखाने के लिए जाना जाता रहा है।
मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘गाँधी :द ईयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड’ में विस्तार से बताया है कि किस तरह आरएसएस ने गाँधी के प्रति घृणा फैलायी, कई तरह के बेबुनियाद आरोप लगाए और अपने अख़बार में उनके प्रति ज़हर उगला।
रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब में विस्तार से बताया है कि किस तरह बँटवारे के समय देश की फिजां में ज़हर घुला हुआ था, हिन्दू और मुसलमान कट्टरपंथी तत्व इस स्थिति का फ़ायदा उठा कर अपना-अपना विस्तार कर रहे थे। इस किताब में यह भी बताया गया है कि किस तरह एम. एस. गोलवलकर ने सरसंघचालक यानी प्रमुख बनने के बाद संघ को पहले से ज़्यादा कट्टर बनाया और उसे पहले से अधिक मुसलमान-विरोधी संगठन में तब्दील करने में कामयाब हुए।
हिन्दू-मुसलिम कट्टरपंथी
रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि 1946-47 के दंगों के बाद हिन्दू और मुसलमान, दोनों ही पक्षों के कट्टरपंथी हावी हो चुके थे। मुसलमानों की तरफ़ से मुसलिम नेशनल गार्ड्स और ख़ाकसार थे तो हिन्दुओं की ओर हिन्दू महासभा और आरएसएस ने मोर्चा संभाला हुआ था। संघ की स्थापना 1925 में हुई, पर अब तक एम. एस. गोलवलकर इसके मुखिया बन चुके थे। गोलवलकर कट्टरपंथी विचारों के थे और भारत से हर तरह के ग़ैर-हिन्दू प्रभावों को दूर करने के लिए कटिबद्ध थे। आरएसएस के काडरों ने पंजाब में हुई हिंसक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। वह अब दिल्ली पर अपनी पकड़ बनाना चाहता था और शहर में हिन्दू और सिख शरणार्थियों की मौजूदगी का पूरा फ़ायदा उठाना चाहता था।
आरएसएस ने 8 मार्च, 1947 को दिल्ली में एक बड़ी रैली की थी, जिसमें लगभग एक लाख लोगों ने शिरकत की थी। इसके मुख्य अतिथि गोलवलकर थे। उन्होंने इसमें ज़ोर देकर कहा था कि ‘हिन्दुओं को अपने धर्म की रक्षा करनी चाहिए।’ यह वह रैली थी, जिसमें संघ के सदस्य इतनी बड़ी तादाद में एक साथ एक जगह खुल कर सामने आए।
गाँधी ने की थी संघ की तारीफ़
महात्मा गाँधी ने सितंबर 1947 में दिल्ली की हरिजन बस्ती में आरएसएस कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात की थी। उन्होंंने संघ के अनुशासन और छुआछूत से दूर रहने की वजह से उसकी काफ़ी प्रशंसा की थी। गाँधी ने उनसे कहा कि ‘सही अर्थों में उपयोगी होने के लिए यह ज़रूरी है कि आत्मत्याग को उद्देश्य की शुद्धता और सच्चे ज्ञान से जोड़ा जाए।’
गुहा लिखते हैं कि उस समय तक गाँधी तक यह बात पहुँचने लगी थी कि संघ मुसलमानों के ख़िलाफ़ है। उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं से कहा कि ‘हिन्दू धर्म सर्वग्राही है और हिन्दुओं को इसलाम से कोई झगड़ा नहीं है।’ उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि संघ की ताक़त का इस्तेमाल देश के हित में और इसके ख़िलाफ़ भी किया जा सकता है।
हिन्दू-मुसलमान एकता की कोशिशों की वजह से संघ गाँधी से नाराज़ था। उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि एक हिन्दू नेता हिन्दू-मुसलमान एकता की बात करे, वह मुसलमानों को मजा चखाने की नीति अपनाना चाहता था। लिहाज़ा, बंगाल में सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम करने की गाँधी की कोशिशों पर संघ ने अपने मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ में उन पर ज़ोरदार हमला किया था। संघ ने उसमें एक लेख लिख कर कहा था:
“
जब रोम जल रहा था, नीरो बाँसुरी बजा रहा था। हमारी आँखों के सामने इतिहास अपने आप को दुहरा रहा है। महात्मा गाँधी कलकत्ता से इसलाम की तारीफ कर रहे हैं, अल्लाह-ओ-अक़बर का नारा बुलंद कर रहे हैं और हिन्दुओं से भी ऐसा करने को कह रहे हैं। यह ऐसे समय हो रहा है जब पंजाब और दूसरी जगहों पर इसलाम और अल्लाह-ओ-अक़बर के नाम पर सबसे शर्मनाक बर्बरताएँ और क्रूरताएँ की जा रही हैं।
'ऑर्गनाइज़र' में छपे लेख का अंश
रामचंद्र गुहा का मानना है कि गाँधी ने मुसलमानों की ओर हाथ बढ़ाया, पर आरएसएस का मानना था कि 'मुसलमान महात्मा की बातों को तब तक अहमियत नहीं देते थे जब तक यह उनके अनुकूल नहीं होता।'
आज़ादी मिलने के समय भी संघ की कोशिश यह थी गाँधी पूरे देश को एकजुट करने के बजाय हिन्दू एकीकरण पर ध्यान दें। 'ऑर्गनाइज़र' ने 11 सितंबर 1947 को लिखा :
“
महात्मा गाँधी के पास इसका अभूतपूर्व मौक़ा है कि वह हिन्दुओं को संगठित और एकजुट करें, अंदर और बाहर से उन्हें और हिन्दुस्तान को ऐसा बनाएँ कि आक्रामक राष्ट्र भी उन्हें स्वीकार कर लें।
'ऑर्गनाइज़र' में छपे लेख का अंश
गाँधी की आलोचना
गुहा ने लिखा कि इस तरीके से आरएसएस ने गाँधी की आलोचना की और उन पर दुख भी जताया। उसके कहने का मतलब यह था मानो गाँधी अपनी स्थिति का प्रयोग कर हिन्दुओं की अगुआई करें और मुसलमानों को उनकी हैसियत बताएँ, साथ ही दुनिया के देशों के बीच हिन्दुस्तान को गौरवशाली जगह दिलाएँ।
गुहा दिल्ली पुलिस के एक सिपाही की डायरी खंगालते हैं। उस सिपाही को संघ की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए तैनात किया गया था। उस सिपाही ने लिखा, ‘संघ की कोशिश यह थी कि हिन्दुओं को भौतिक रूप से मजबूत बनाया जाए और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की जाए। आरएसएस का मानना था कि मौजूदा सरकार शत प्रतिशत हिन्दू सरकार नहीं थी, इसके बावजूद वह इसका विरोध नहीं करेगा क्योंकि उसकी मदद से ही वह हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेगा।’
पुलिस के उस सिपाही ने अपनी डायरी में लिखा :
“
आरएसएस कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुसलमान भारत छोड़ कर तभी जाएँगे जब उन्हें पूरी तरह ख़त्म कर देने का वैसा ही अभियान छेड़ा जाएगा जैसा कुछ दिन पहले दिल्ली में छेड़ा गया था। वे महात्मा गाँधी के बाहर जाने का इंतजार कर रहे थे क्योंकि वे जानते थे कि जब तक गाँधी मौजूद हैं, वे अपने इरादों को अमल में नहीं ला पाएँगे। वे इस विचार के थे कि यदि आने वाले ईद-उल-ज़ुहा त्योहार में किसी भी गोवंश की क़ुर्बानी दी गई, जिसकी भनक भी संघ के लोगों को लग गई तो दिल्ली में सांप्रदायिक गड़बड़ियाँ होने की पूरी संभावना है।
एक पुलिस सिपाही की डायरी का एक अंश
हथियार हासिल करने की कोशिश
गुहा लिखते हैं कि गोलवलकर नवंबर 1947 में दिल्ली लौट आए, उन्होंने आरएसएस के काडर से पैसे उगाहे, कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात की और दिल्ली में संघ की स्थिति का जायजा लिया। इंटेलीजेंस ब्यूरो की 15 नवंबर की रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता, ख़ास कर, पश्चिमी पंजाब से आए लोग दिवाली के मौके पर दिल्ली में कुछ सांप्रद्रायिक गड़बड़ियाँ फैला सकते हैं। उनका कहना है कि वे यह क़तई नहीं देख सकते कि मुसलमान दिल्ली में घूम-घूम कर व्यवसायियों से पैसे इकट्ठा करते रहें और हिन्दू व सिख जिनकी ग़लती सिर्फ़ इतनी है कि उन्होंने मुसलिम लीग और पाकिस्तान की स्थापना का विरोध किया, वे इस तरह दर-दर की ठोकरें खाएँ और भूख से और इस ठंड में ठिठुर कर मर जाएँ। ख़बर यह है कि ये लोग हथियार लाने गए हैं।’
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू!
दिल्ली राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ का सालाना उत्सव रामलीला मैदान में 7 दिसंबर को मनाया गया। गोलवलकर मुख्य वक्ता थे और वह तक़रीबन डेढ़ घंटे तक बोलते रहे। उन्होंने अपनी पीठ थपथपाने के साथ ही अपने भाषण की शुरुआत की। उन्होंने कहा, ‘पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इतनी ज़्यादा शाखाएँ हो चुकी हैं कि बारी-बारी से सबको देखने में 20-25 साल लग जाएँगे। लोग इस गति से संगठन के विस्तार पर आश्चर्य कर रहे हैं क्योंकि कुछ साल पहले तक किसी ने इस बारे में सुना ही नहीं था न ही प्रेस में कुछ छपा था।’
गोलवलकर ने इसके बाद संघ के उद्देश्यों और आदर्शों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, ‘हमें ख़ुद को हिन्दू कहने में शर्म नहीं आनी चाहिए।’
इसके बाद संघ ने रोहतक रोड पर एक छोटी, पर ज़्यादा संगठित सभा की। इसमें लगभग 2 हज़ार पूर्णकालिक कार्यकर्ता मौजूद थे। इस रैली में गोलवलकर ने खुल कर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगला और साफ़ शब्दों में कहा कि उन्हें इस देश में नहीं रहने दिया जाएगा।
गोलवलकर ने कहा, ‘हमें शिवाजी की तरह ही छापामार युद्ध की रणनीति के लिए तैयार होना चाहिए। जब तक पाकिस्तान ख़त्म नहीं हो जाता, संघ शांति से नहीं बैठ सकता। यदि कोई हमारे रास्ते में आता है तो हमें उससे लड़ना होगा, भले ही वह नेहरू सरकार हो या कोई दूसरा आदमी।’
सीआईडी इंस्पेक्टर करतार सिंह ने अपनी डायरी में 7-9 दिसंबर, 1947 को लिखा :
“
गोलवलकर ने कहा कि दुनिया की कोई ताक़त मुसलमानों को हिन्दुस्तान में नहीं रख सकती। उन्हें देश छोड़ना ही होगा। महात्मा गाँधी मुसलमानों को देश में रखना चाहते हैं ताकि चुनाव के समय कांग्रेस को फ़ायदा हो, लेकिन उस समय तक देश में एक भी मुसलमान नहीं रहेगा। महात्मा गाँधी उन्हें और गुमराह नहीं कर सकते। हमारे पास ऐसे उपाय हैं जिससे ऐसे लोगों को तुरन्त शांत किया जा सकता है, पर यह हमारी परंपरा है कि हम हिन्दुओं से शत्रुता नहीं रखते। यदि हमें विवश किया गया तो हम वह रास्ता अपनाने पर भी मजबूर हो सकते हैं।
सीआईडी इंस्पेक्टर करतार सिंह की डायरी का अंश
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि 1947 की दूसरी छमाही में दिल्ली की स्थिति काफ़ी ख़राब हो चुकी थी। उन्होंने लिखा कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से हिन्दू और सिख शरणार्थी बड़ी तादाद में दिल्ली पहुँच रहे थे। उनके मन में गुस्सा, दुख और नफ़रत तो था ही, वे अपने साथ हुए अत्याचारों की कहानियाँ भी सुना रहे थे। ये कहानियाँ कई गुना ज़्यादा बढ़ा-चढ़ा कर फैलाई जा रही थी। नतीजा यह हुआ कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक अदृश्य लेकिन महसूस किए जाने लायक माहौल बनने लगा था। गुहा लिखते हैं, 'आरएसएस उग्रपंथी इस शहर के इसलामी अवशेषों और बड़ी तादाद में मौजूद मुसलिम आबादी को मिटा देना चाहते थे। गोलवलकर और आरएसएस के लोग भारत को धर्म से चलने वाले राज्य बनने से रोकने वाले गाँधी और नेहरू को ‘तुरन्त शांत’ कर देने पर भी सोचने लगे थे।'
गुहा की यह किताब ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जो संघ की रणनीति, उसके विस्तार और गाँधी से उसके नफ़रत की वजहों पर रोशनी डालती है। इसलिए यह मानना नासमझी होगी कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने जो कुछ कहा है, वह किसी एक व्यक्ति के निजी विचार हैं या उन्होंने यूं ही कुछ कह दिया है। यह मानन भी भूल होगी कि बीजेपी साध्वी प्रज्ञा को पार्टी से निकाल बाहर करेगी या ऐसे तत्वों को पार्टी में महत्व नहीं देगी। पर्यवेक्षकों का कहना है कि साध्वी को जानबूझ कर और सोची समझी रणनीति के तहत पार्टी ने टिकट दिया और संसद में पहुँचाया।
प्रज्ञा का इस्तेमाल यही है कि वह इस तरह की गाँधी विरोधी और मुसलमान विरोधी बातें कहती रहें। इससे देश के जनमानस में गाँधी के विचारो को काटने के लिए तर्क गढ़े जा सकेंगे और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत को उचित ठहराने के बहाने खोजे जा सकेंगे। प्रज्ञा एक बहाना है, बीजेपी इस बहाने गाँधी के भारत को नष्ट करने की कोशिश में है। उसे नया भारत गढ़ना है, जिसमें गंगा-जमुनी तहजीब या हिन्दुत्व के सर्वग्राही चरित्र के लिए जगह नहीं होगी। उसे हिटलर का भारत चाहिए, जहाँ एक खास समुदाय को ख़त्म करने का समर्थन करने वाले करोड़ों लोग मिल सकें।
अपनी राय बतायें