क्या राहुल गांधी समाजवादी पार्टियों से उनका पुराना एजेंडा और विरासत छीनने की तैयारी कर रहे हैं? पटना में उनके एक भाषण के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल जिस तेजी से पिछड़ों और दलितों का मुद्दा उठा रहे हैं उससे बीजेपी के साथ ही समाजवादी विचारधारा पर आधारित पार्टियों को भी चुनौती मिल सकती है। राहुल ने शनिवार को पटना में न्याय अधिकार सम्मेलन और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बैठक में दो अलग-अलग भाषण दिए। एक भाषण में राहुल ने कहा कि कांग्रेस को सामाजिक न्याय आंदोलन को आगे बढ़ाना होगा। यह नारा पुराने समाजवादियों का था।
समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया, सामाजिक न्याय आंदोलन के महा नायक थे। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री राज नारायण और छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्र ने इस आंदोलन को अस्सी और नब्बे के दशक में आगे बढ़ाया। सवर्ण जातियों का दबदबा तोड़ कर बिहार में लालू यादव तथा नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं को सत्ता के शीर्ष तक पहुँचाने में इस आंदोलन का हाथ था। बिहार में लोहिया की विरासत सम्भालने का दावा लालू और उनकी पार्टी आरजेडी करती है। उत्तर प्रदेश में समाजवादियों की जमीन अब मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव संभालते हैं।
विरासत पर दावा
साठ के दशक में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के दो नारे मशहूर थे। “सैकड़े में साठ” जिसका मतलब था कि आबादी के हिसाब से पिछड़ी जातियों को साठ प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए। लोहिया का दूसरा नारा “जिसकी जितनी संख्या उसको उतना हिस्सा”। राहुल इन नारों को लगातार दोहरा रहे हैं। जिस सभा में राहुल बोल रहे थे उसके मंच पर पूर्व कांग्रेसी नेता और रक्षा मंत्री जगजीवन राम के साथ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की तस्वीर भी लगी थी।
कर्पूरी ठाकुर को बिहार में सामाजिक न्याय आंदोलन का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। आरजेडी ख़ुद को कर्पूरी की विरासत का दावेदार भी बताती है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राहुल के इस बयान को लंबे समय में कांग्रेस की रणनीति मानना चाहिए। फिलहाल कांग्रेस बिहार में आरजेडी के बगैर चुनावी राजनीति में कहीं टिक नहीं सकती है। बिहार में कांग्रेस के मुख्यालय सदाकत आश्रम में राहुल ने एक और बात कही जिससे समाजवादियों को चुनौती मिल सकती है। राहुल ने कहा कि आरएसएस और बीजेपी से सिर्फ कांग्रेस ही लड़ सकती है। लेकिन आरएसएस और बीजेपी से लड़ने का दावा तो समाजवादी भी करते हैं। शायद समाजवादी भी राहुल की राजनीतिक दिशा को समझने लगे हैं। इसलिए अखिलेश और तेजस्वी यादव दोनों ही कई बार कांग्रेस से दूरी बढ़ाने का संकेत देते हैं। लेकिन राहुल बहुत सावधानी से दोनों नेताओं के साथ चलने की कोशिश कर रहे हैं।
आगे की राह
राहुल ने पटना पहुंचते ही लालू-तेजस्वी यादव और उनके परिवार से मुलाक़ात करके बिहार की राजनीति में सरगर्मी बढ़ा दी। उनकी मुलाक़ात अनायास थी या फिर सुनियोजित, इस पर कोई टिप्पणी नहीं मिली। लेकिन इसे अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है।
कुछ दिनों पहले लालू के पुत्र और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा था कि इंडिया गठबंधन सिर्फ़ 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए था। उसके बाद कांग्रेस के नेताओं में बेचैनी फ़ैल गयी थी। कयास लगाया जा रहा था कि विधानसभा चुनावों में आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों का गठबंधन टूट जाएगा।
निशाने पर नीतीश
“न्याय का अधिकार” सम्मेलन में राहुल गांधी ने जाति जनगणना के अपने पुराने एजेंडे के बहाने नीतीश कुमार पर भी हमला बोल दिया। नीतीश ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ही बिहार में जाति जनगणना करा कर अति पिछड़ी और अति दलित जातियों के बीच अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश शुरू कर दी थी। राहुल ने उसे फर्जी बताया। और कहा कि वो असली जाति जनगणना के ज़रिए पता लगायेंगे कि देश में किस जाति की कितनी आबादी है और राष्ट्रीय संपत्ति में उसका कितना हिस्सा है। संख्या के हिसाब से सबकी हिस्सेदारी तय की जाएगी।

इन बयानों से तो साफ़ लगता है कि राहुल बिहार में क़रीब 30 वर्षों से हावी पिछड़ों की राजनीति में दख़ल देने की तैयारी कर रहे हैं। लालू यादव ने नब्बे के दशक में पिछड़ों की राजनीति की शुरुआत की और क़रीब 15 वर्षों तक सत्ता पर उनका नियंत्रण रहा। बाद में नीतीश ने अति पिछड़ों और अति दलितों की राजनीति को आगे बढ़ाया और वह लगभग 15 वर्षों से मुख्यमंत्री बने हुए हैं। राहुल की राजनीति से नीतीश और लालू - तेजस्वी की राजनीति को खुली चुनौती मिल सकती है। राम मंदिर और आजादी पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर भी राहुल ने बिहार का संदर्भ जोड़ते हुए हमला किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल ने बिहार में महज चुनावी गठबंधन से आगे की राजनीति की शुरुआत कर दी है।
अपनी राय बतायें