“मस्ती की थी छिड़ी रागिनी, आजादी का गाना था।

कौन थे वीर कुँवर सिंह, भारत की आजादी की लड़ाई में उनका क्या योगदान था और बीजेपी उनके लिए विशाल विजयोत्सव कार्यक्रम कर क्या हासिल करना चाहती है?
भारत के कोने-कोने में, होगा यह बताया था
उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई, और पेशवा नाना था
इधर बिहारी वीर बाँकुरा, खड़ा हुआ मस्ताना था
अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।’’
यह पंक्तियां मनोरंजन प्रसाद सिंह की लंबी कविता से ली गयी हैं जिससे एक अंदाजा होता है कि बाबू वीर कुंवर सिंह का 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में क्या स्थान था। इस कविता में ये दो पंक्तियां भी हैंः
शेरशाह का खून लगा करने तेजी से रफ्तारी
पीर अली फाँसी पर लटका, वीर बहादुर दाना था।