लोकसभा चुनावों के तीन चरण पूरे हो चुके हैं और चुनाव अब अपने चौथे चरण की ओर है। तीन चरणों के मतदान को लेकर चुनाव आयोग के शुरुआती आंकड़े बदलने के बावजूद पिछले चुनावों से मतदान का प्रतिशत कम ही रहा है। जमीन पर भी चुनाव बेहद ठंडा और अनपेक्षित सा दिख रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र को मुस्लिम लीग का बताने से लेकर आर्थिक सर्वेक्षण को लेकर महिलाओं के मंगलसूत्र, संपत्ति और पिछड़ों-दलितों का आरक्षण छीनकर उसे मुसलमानों में बाँट देने का आरोप लगाते हुए चुनाव को गरमाने की पूरी कोशिश की है। और अब तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने तेलंगाना की चुनावी सभा में आरोप लगाया कि जो राहुल गांधी पिछले पांच साल से रोज अंबानी-अडानी के नाम की माला जपते थे अब उनका नाम क्यों नहीं ले रहे हैं। क्या उनके साथ कोई डील हो गई है और क्या बोरों में भरकर टेंपो में लाद कर काला धन उनके पास आ गया है। इसी दिन प्रधानमंत्री ने कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा के भारत की विविधता को लेकर रंग और चेहरों पर दिए गए एक बयान को निशाना बनाते हुए भी कांग्रेस पर हमला किया और देश को रंग व नस्ल के आधार पर बांटने का आऱोप भी लगाया। अपने नेता के इस चुनावी राग में गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत सभी भाजपा नेताओं ने अपना स्वर शामिल करके इन मुद्दों को लगातार उठाया है।
उधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भाजपा के जीतने पर संविधान बदलने, लोकतंत्र खत्म करने और पिछड़ों-दलितों-वंचितों और गरीब सवर्णों के अधिकार छीनकर सब कुछ चंद उद्योगपति मित्रों को देने का आरोप भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार लगा रहे हैं। भले ही मोदी ने राहुल पर अंबानी-अडानी का नाम लेने की बात कही हो लेकिन राहुल न सिर्फ अडानी का नाम ले रहे बल्कि मोदी के आरोप का जवाब देते हुए भी अंबानी-अडानी का नाम लेते हुए उनके यहाँ ईडी-सीबीआई भेजने की बात कही है। राहुल के इस चुनावी नाद में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, महासचिव प्रियंका गांधी समेत सभी कांग्रेस नेता अपनी आवाज दे रहे हैं।
सवाल है कि चुनाव किस ओर जा रहा है। क्या हर चुनाव में अपना विमर्श चलाकर माहौलबंदी करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चुनाव को भी हिंदुत्व और धार्मिक ध्रुवीकरण के अपने पुराने बहु परीक्षित सियासी एजेंडे पर लाकर उसे केंद्रित करने में कामयाब हो रहे हैं या फिर चुनाव पूरी तरह से विकेंद्रित होकर स्थानीय समीकरणों, मुद्दों और राहुल गांधी द्वारा उठाए जा रहे जातीय जनगणना, पांच न्याय जैसे वादों और इरादों के इर्द गिर्द घूम रहा है। चुनाव प्रचार की रैलियों और रोड शो में सारे दल एक से बढ़कर एक दिख रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ़ पिछले दो चरणों में मतदाता उदासीन दिखा। जमीन पर भी चुनावों में इस बार वैसी लहर या हवा नजर नहीं आ रही है जो 2014 और 2019 में साफ दिखाई देती थी और जिस पर सवार होकर भाजपा व नरेंद्र मोदी ने दो बार सरकार बनाई। जहां पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में बदलाव, राष्ट्रीय सुरक्षा, हिंदुत्व की चाशनी में राष्ट्रवाद की घुट्टी और हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण जैसे राष्ट्रीय विमर्श और केंद्रीय मुद्दों का जोर रहा। उन दोनों चुनावों में मतदाताओं ने न जाति देखी न दल, सिर्फ देखा तो नरेंद्र मोदी का चेहरा और भरोसा किया तो उनके वादों और इरादों पर। लेकिन इस बार का चुनाव किसी एक या दो राष्ट्रीय मुद्दों पर न होकर पूरी तरह विकेंद्रित हो गया है। हर राज्य हर लोकसभा क्षेत्र में अलग-अलग मुद्दे अलग-अलग समीकरण और परिस्थितियों का जोर है। कहीं सांसदों के ख़िलाफ़ गुस्सा है तो कहीं जातीय समीकरण भारी हैं।
बताया जाता है कि लोगों में कांग्रेस के घोषणा पत्र को लेकर इस कदर दिलचस्पी पैदा हुई कि कांग्रेस की साईट से उसे डाऊनलोड करने की होड़ लग गई। कांग्रेस वॉर रूम के सूत्र बताते हैं कि उनका सर्वर ही बैठ गया।
कांग्रेस पर हमला करने में प्रधानमंत्री मोदी यहीं नहीं रुके। उन्होंने कांग्रेस घोषणा पत्र में लिखे आर्थिक सर्वेक्षण की घोषणा पर यह कह कर हमला किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वह सबकी संपत्ति छीन कर मुसलमानों में बांट देगी। कहा कि महिलाओं का मंगलसूत्र तक ले लिया जाएगा। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2006 में दिए गए एक भाषण का जिक्र किया। हालांकि इस भाषण को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का आरोप कांग्रेस ने भाजपा पर लगाया। लेकिन भाजपा और प्रधानमंत्री के हमले कांग्रेस पर जारी रहे। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री फवाद चौधरी के एक बयान जिसमें उन्होंने राहुल गांधी की तारीफ की थी, को लेकर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को पाकिस्तान परस्त करार देने में कोई संकोच नहीं किया। कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे को भाजपा ने नया रंग देते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो पिछड़ों और दलितों का आरक्षण काट कर मुस्लिमों को दे देगी। अपनी हर चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे भाजपा नेताओं ने इसी तरह के आरोपों की झड़ी लगा दी है। चुनावों में एक और तड़का कल तक कांग्रेस के पैरोकार रहे और दो बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर समर्थक बन चुके कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने यह कह कर सनसनी फैलाने की कोशिश की कि राहुल गांधी और उनकी टीम ने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद एक बैठक में कहा था कि जब भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनेगी तो शाहबानों मामले की तरह अयोध्या पर भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया जाएगा। प्रमोद कृष्णम के इस कथित खुलासे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपना स्वर दिया लेकिन कांग्रेस ने इसे तवज्जो देने की कोई जरूरत नहीं समझी और पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने एक सवाल के जवाब में ऐसा कहने वालों को किसी मनोचिकित्सक से सलाह लेने का मशविरा दे डाला। इन सारे आरोपों को निराधार बताते हुए कांग्रेस का कहना है कि उसके घोषणा पत्र में कहीं भी मुस्लिम शब्द का उल्लेख ही नहीं है और आर्थिक सर्वेक्षण पिछड़ों दलितों आदिवासियों की आर्थिक हालत का पता लगाकर उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाने के लिए होगा।
जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत सभी भाजपा नेता अपने चुनाव घोषणा पत्र की जगह कांग्रेस पर हमला करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं।
इन लोकसभा चुनावों में महिला सुरक्षा और सम्मान भी एक मुद्दा है। पहले प. बंगाल में संदेशखाली की शर्मनाक घटना को मुद्दा बनाकर भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी समेत पूरे इंडिया गठबंधन को घेरा। लेकिन कर्नाटक का हासन कांड, जिसमें आरोपों के घेरे में भाजपा के सहयोगी दल जनता दल(एस) के प्रथम परिवार देवेगौड़ा परिवार सदस्य प्रांजल रेवन्ना और उनके पिता एच डी रेवन्ना हैं, ने भाजपा को बचाव की मुद्रा में ला दिया। कांग्रेस ने हासन कांड के साथ साथ मणिपुर और महिला पहलवानों के मुद्दे को भी जोड़ दिया है। अब महिला सुरक्षा और सम्मान पर पक्ष विपक्ष एक दूसरे पर हमलावर हैं। इसी बीच उत्तर प्रदेश की रायबरेली और अमेठी सीटों पर नेहरू गांधी परिवार के चुनाव लड़ने को लेकर भी खासी गरमी दिखाई दी। जहां रायबरेली से कांग्रेस ने राहुल गांधी को उतार दिया है तो अमेठी से नेहरू गांधी परिवार के वफादार किशोरी लाल शर्मा को केंद्रीय मंत्री और सांसद स्मृति ईरानी के खिलाफ टिकट दिया है। जबकि ज्यादा चर्चा राहुल या प्रियंका किसी एक के यहां से लड़ने की थी। लेकिन अचानक राहुल के रायबरेली चले जाने और प्रियंका के चुनाव न लड़ने को भाजपा ने मुद्दा बनाकर राहुल गांधी के नारे डरो मत को उनके ऊपर ही चस्पा करने की कोशिश की है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राहुल वायनाड से हार रहे हैं और रायबरेली से भी हारेंगे और मैं कहता हूं कि राहुल डरो मत। लेकिन कांग्रेस ने इसके जवाब में सिर्फ इतना कहा कि गांधी परिवार जब अंग्रेजों से नहीं डरा तो अब क्या डरेगा।
राहुल के रायबरेली से लड़ने से प्रदेश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ गया है। वहीं अमेठी से अपने सिपहसालार किशोरी लाल शर्मा को स्मृति ईरानी जैसी मुखर और प्रखर नेता के खिलाफ चुनाव लड़ाकर कांग्रेस ने वहां के हाई प्रोफाइल चुनाव को लो प्रोफाइल कर दिया है। हालांकि प्रियंका गांधी सात मई से लगातार रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस के लिए सघन चुनाव प्रचार कर रही हैं और अमेठी में यह संदेश दे रही हैं कि भले ही यहां किशोरी लाल शर्मा उम्मीदवार हैं, लेकिन शर्मा भी परिवार के ही प्रतिनिधि हैं और इन्हें वोट देने का मतलब परिवार को ही वोट देना है। अब शर्मा किस हद तक स्मृति ईरानी को चुनौती दे पाते हैं यह नतीजे बताएंगे।
सवाल सिर्फ अमेठी रायबरेली का ही नहीं है बल्कि सबसे बड़ा सवाल ये है कि पूरे लोकसभा चुनाव में क्या मोदी की गारंटी चलेगी या राहुल का न्याय लोग स्वीकार करेंगे। क्या राम मंदिर पर संविधान में बदलाव की आशंका भारी पड़ेगी या विकसित भारत, समान नागरिक संहिता का वादा और हिंदुत्व के नारे अपना असर दिखाएंगे या बेरोजगारी, महंगाई, जातिगत जनगणना, अग्निवीर, महिला सुरक्षा और किसानों को एमएसपी की गारंटी जैसे मुद्दे दिल्ली की सत्ता बदलने का रास्ता तैयार करेंगे। इसका फैसला चार जून को लोकसभा चुनावों के नतीजे तय करेंगे।
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