loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
56
एनडीए
24
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
233
एमवीए
49
अन्य
6

चुनाव में दिग्गज

चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला

जीत

बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार

जीत

पीएम मोदी

 मोदी के सामने क्या टिक पायेगा इंडिया गठबंधन? 

लोकसभा चुनावों की तैयारी ज़ोरों पर है। भाजपा और कांग्रेस अपने गठबंधनों को समेट रही है। दोनों के अपने दावे और प्रतिदावे हैं। दो तरह के नैरेटिव बनाने की कोशिश है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का विकसित भारत और मोदी की गारंटी का नारा तो दूसरी तरफ कांग्रेस का पांच न्याय ।विकसित भारत के साथ ही 22 जनवरी को अयोध्या मेंसंपन्न हुए राम मंदिर में श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य और दिव्य आयोजन से देश में जो राममय माहौल बना भाजपा को उससे भी अपना चुनावी बेड़ा पार होने की उम्मीद है।हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में सपा व कांग्रेस में हुई क्रास वोटिंग से भाजपा ने जिस तरह अपने अतिरिक्त उम्मीदवारों को जिताया है वह उसकी आक्रामक और जीत के लिए कुछ भी कर गुजरने की रणनीति की ही एक बानगी है। 

ताजा ख़बरें
साथ ही जिस तरह विपक्ष के इंडिया गठबंधन में बिखराव शुरु हुआ है और इसके सूत्रधार नीतीश कुमार वापस भाजपा के साथ चले गए और उन्होंने एक ही विधानसभा में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद और कुल नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रिकार्ड बना डाला है उसने बिहार में भाजपा गठबंधन एनडीए में उम्मीद जता दी है कि वह 2024 में भी 2019 जैसी कामयाबी हासिल करेगा।इंडिया गठबंधन को दूसरा बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी ने दिया जब उन्होंने अपने दादा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने के बाद इंडिया गठबंधन को नमस्ते करके एनडीए का दामन थाम लिया।जहां समाजवादी पार्टी ने रालोद को लोकसभा की सात सीटें दी थीं, वहीं भाजपा से दो सीटें लेकर भी जयंत खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भाजपा के समर्थन से वह ये दोनों सीटें बिजनौर और बागपत जीत लेंगे।

उधर प.बंगाल में ममता बनर्जी ने भी इंडिया गठबंधन में रहते हुए भी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। 

इस सबसे उत्साहित भाजपा ने अबकी बार एनडीए के लिए चार सौ पार का नारा भी दे दिया है।खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए चार सौ से ज्यादा सीटों का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता,जनता में उनकी विश्वसनीयता मोदी सरकार की उपलब्धियां, राम मंदिर की लहर और विपक्षी गठबंधन में बिखराव और निराशा से बन रही भाजपा की तीसरी लगातार विजय की अवधारणा से काफी उम्मीदे हैं।विपक्ष खासकर कांग्रेस के कुछ नेताओं (अशोक च्हवाण, मिलिंद देवरा, विभाकर शास्त्री, आचार्य प्रमोद कृष्णम आदि) के पाला बदल ने भी भाजपा और एनडीए को उत्साहित कर दिया है।
उधर कांग्रेस को राहुल गांधी की मणिपुर से मुंबई तक की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए मोदी सरकार के खिलाफ उसके मुद्दों को मिलने वाली धार और बचे खुचे विपक्षी इंडिया गठबंधन की ताकत के जरिए भाजपा को चुनावों में पराजित करने का भरोसा है।पंजाब से दिल्ली कूच का नारा देकर फिर दिल्ली की सरहदों पर धावा बोलने वाले किसानों के साथ सरकार के टकराव और राहुल गांधी की यात्रा में उमड़ने वाली भीड़ ने कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को वो सियासी ऑक्सीजन दी है, जिससे वह सत्ताधारी भाजपा गठबंधन के सामने चुनाव में खड़े हो सकें। लेकिन जिस ढीले ढाले तरीके से विपक्षी दलों की अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी है, उससे लगता है कि जैसे वो चुनाव लड़ने की जगह भाजपा को वॉक ओवर दे रहे हैं।जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धुआंधार दौरे करते हुए शिलान्यास और उद्घाटनों की झड़ी लगा रहे हैं।हजारों करोड़ रुपयों की परियोजनाओं की घोषणा कर रहे हैं।उनके सरकारी कार्यक्रमों में भी चुनावी प्रचार की कवायद है। 

यूं तो 1988 में पार्टी के पालनपुर अधिवेशन में राम मंदिर के मुद्दे को अपने एजेंडे में लेने का बाद हर चुनाव में यह मुद्दा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहा है, लेकिन अब जबकि राम मंदिर अयोध्या में आकार ले रहा है,तब भाजपा इसका पूरा श्रेय लेते हुए इसका पूरा लाभ लेना चाहती है।वहीं भाजपा का मोदी की गारंटी का नारा वैसा ही है जैसा 2014 में अबकी बार मोदी सरकार का नारा भाजपा ने दिया था।हालांकि गारंटी को नारे के रूप में कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनावों में दिया था, लेकिन बड़ी राजनीतिक चतुराई से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे मोदी की गारंटी में बदल दिया और अब कांग्रेस को नया नारा गढ़ने की जरूरत पड़ी और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण का नाम भारत न्याय यात्रा रखा गया है।इसलिए स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी एनडीए जहां मोदी की गारंटी के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतर रहा है तो विपक्षी इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस ने उसका मुकाबला राहुल के न्याय से करने का फैसला किया है।
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में एक न्याय योजना का ऐलान किया था जिसके तहत गरीबों को साल में 72 हजार रुपए यानी प्रति माह छह हजार रुपए देने की घोषणा की गई थी।बताया जाता है कि इस न्याय योजना के शिल्पकार खुद राहुल गांधी थे जिसे उन्होंने रघुराम राजन जैसे अर्थशास्त्रियों के साथ गहन विचार विमर्श के बाद तैयार करवाया था। इसके जवाब में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में किसान सम्मान निधि के रूप में किसानों को सालाना छह हजार रुपए यानी पांच सौ रुपए हर महीने देने का वादा किया।चुनावों में कांग्रेस की न्याय योजना वो कमाल नहीं कर सकी जिसकी उम्मीद कांग्रेस को थी।

लेकिन न्याय योजना को लेकर कांग्रेस विशेषकर राहुल गांधी का आग्रह अभी भी बरकरार है।इसीलिए उनकी यात्रा को भारत न्याय यात्रा का नाम देकर इसका लक्ष्य जनता को आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय और राजनीतिक न्याय दिलाना बनाया गया है।इसे और स्पष्ट करते हुए कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रभारी जयराम रमेश कहते हैं कि आर्थिक न्याय के तहत देश में बढ़ रही आर्थिक विषमता और कुछ चुनींदा उद्योग घरानों को ही दिए जाने वाले सारे लाभ का मुद्दा उठाया जाएगा।सामाजिक न्याय के तहत समाज के पिछड़े दलित आदिवासी महिलाओं और वंचित वर्गों को उनकी आबादी के मुताबिक शासन प्रशासन में हिस्सेदारी देने और उसके लिए जातीय जनगणना कराने के सवाल को जनता के बीच ले जाया जाएगा।जबकि राजनीतिक न्याय का मतलब देश में लोकतंत्र संविधान संघवाद और संवैधानिक संस्थाओं व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाना है।
लेकिन कांग्रेस के ये पांचों न्याय आम जनता को कितना प्रभावित करेंगे यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब लोकसभा चुनावों के नतीजों से ही मिल सकेगा।लेकिन आम धारणा है कि कांग्रेस अपनी बात जनता तक सही तरीके से पहुंचा ही नहीं पाती है जबकि भाजपा सभी साधनों का इस्तेमाल करके अपनी बात अपना नैरेटिव लोगों तक सफलता पूर्वक ले जाती है।इसके लिए नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच भाषण और संवाद शैली का अंतर भी प्रमुख कारण है।जबकि कांग्रेस को इसे लेकर मुख्यधारा के मीडिया से गंभीर शिकायत है।कांग्रेस का कहना है कि मीडिया जितनी जगह और समय भाजपा और नरेंद्र मोदी को देता है उसका दस फीसदी भी कांग्रेस और उसके नेताओं को नहीं देता इसलिए कांग्रेस की बात लोगों तक नहीं पहुंच पाती है।इसीलिए कांग्रेस ने मुख्यधारा के मीडिया के मुकाबले सोशल मीडिया और यूट्यूब चैनलों के जरिए अपनी बात पहुंचाने का रास्ता चुना है।इससे उसे लोगों तक अपनी बात ले जाने में कामयाबी भी मिली है।

अब जबकि लोकसभा चुनावों की घोषणा मार्च के महीने में कभी भी हो सकती है,तब सीटों के बंटवारे और चुनावी प्रचार के लिए बहुत कम समय बचा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, प.बंगाल वो राज्य हैं जहां कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के साथ समझौते में चुनाव लड़ना है। जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उड़ीसा, गोवा, असम, मेघालय, अरुणाचल, मिजोरम, मणिपुर,हरियाणा, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में ज्यादातर उसे अकेले ही चुनाव लड़ना है।असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में कहीं कुछ क्षेत्रीय दलों से समझौता हो सकता है।

इसलिए अगर कांग्रेस को भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन से मुकाबला करना है तो उसे गठबंधन वाले राज्यों में जल्दी से जल्दी व्यवहारिक सीट साझेदारी करनी होगी और जहां अकेले लड़ना है वहां जल्दी से जल्दी उम्मीदवारों की घोषणा करके उन्हें चुनाव में जुट जाने देना होगा।कांग्रेस को दक्षिण भारत से काफी उम्मीद है।उसे लगता है कि कर्नाटक, तेलंगाना और केरल में उसे इस बार खासी सफलता मिलेगी जबकि तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी उसकी कुछ सीटें आ सकती हैं।केरल में कांग्रेस को अपने इंडिया गठबंधन के सहयोगी वाम मोर्चे के साथ ही मुकाबला करना होगा।कमोबेश यही स्थिति पंजाब में भी हो सकती है जहां कांग्रेस आम आदमी पार्टी और अकाली दल का तिकोना मुकाबला हो सकता है।मैदान में भाजपा भी होगी लेकिन उसकी ताकत पंजाब में बेहद कम है और हाल ही में शुरु हुए किसान आंदोलन ने भी भाजपा के लिए इस सूबे में चुनौती बढ़ा दी है।

सीटों की साझेदारी के मामले में एनडीए गठबंधन में भी स्थिति बहुत सामान्य व सहज नहीं है।बिहार में नीतीश कुमार के आ जाने के बाद कौन कितनी सीटें लड़ेगा यह एक यक्ष प्रश्न है। कुल चालीस सीटों में नीतीश अपनी पुरानी संख्या 17 पर लड़ना चाहेंगे जबकि चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस का अलग अलग दावा सात सात सीटों पर है।जीतनराम मांझी औऱ उपेंद्र कुशवाहा भी अलग अलग तीन से चार सीटें मांग रहे हैं। उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, जयंत चौधरी संजय निषाद के साथ सीटों का बंटवारा होने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आनी चाहिए लेकिन राजभर बिहार में भी सीटें चाहते हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे) का दावा 2019 की 23 सीटों पर है जबकि एनसीपी (अजित पवार) पिछले चुनाव में लड़ी 17 सीटें मांग रही है। ऐसे में कुल 48 सीटों में भाजपा और दूसरे सहयोगी दलों के लिए महज आठ सीटें बचती हैं।कर्नाटक में जद(एस) ने भी भाजपा से पांच सीटें मांगी हैं।
हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी जजपा भी एक दो सीटें चाहती हैं।लेकिन एनडीए में भाजपा सबसे मजबूत दल है और घटक दल भाजपा की ताकत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर निर्भर हैं।इसलिए उन्हें सीटों के बंटवारे में भाजपा का दबाव मानना होगा।इसलिए एनडीए में आखिरकार सीटों पर साझेदारी में थोड़ी बहुत रस्साकसी के बात फैसले हो जाएंगे और कोई भी घटक दल भाजपा से अलग जाने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा।
राजनीति से और खबरें
उत्तर प्रदेश में संकेत हैं कि भाजपा 74 सीटों पर खुद लड़ेगी और छह सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ेगी।जिस तरह राज्यसभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस और सपा विधायकों की क्रास वोटिंग के जरिए अपने उम्मीदवार जिताए हैं, उससे इंडिया गठबंधन को झटका लगा है।कांग्रेस और सपा के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विनोद अग्निहोत्री
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

राजनीति से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें