अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती तो शुरू हो ही चुकी है। एक तरफ जहां बीजेपी पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए पूरी तरह कमर कसे हुए है। वहीं विपक्ष भी एकजुट होकर बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर रहा है। 2024 का चुनावी रण जीतने के लिए बीजेपी मुस्लिम समाज के सबसे बड़े पसमांदा तबके को साधने की जीतोड़ कोशिश कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पसमांदा मुसलमानों के सहारे पीएम मोदी जीत की हैट्रिक लगाएंगे?
क्या है बीजेपी की रणनीति?
बीजेपी पिछले करीब साल भर से देश भर में पर्सनल मुसलमानों को साधने की कोशिश कर रही है। सिर्फ कोशिश ही नहीं बीजेपी बाकायदा एक रणनीति बनाकर इस पर काम कर रही है। मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर देश भर में उपलब्धियों का बखान करने के लिए बीजेपी ने पूरी फौज उतार दी है। बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे ने मुस्लिम बहुल सीटों पर मुसलमानों के बीच पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को पहुंचाने की कमान संभाली हुई है। इस मुहिम के तहत मुसलमानों को आंकड़ों के साथ बताया जा रहा है कि मोदी के पीएम बनने के बाद शुरू हुई जनकल्याणकारी योजनाओं में मुसलमानों के कितनी हिस्सेदारी मिली है। इन योजनाओं के ज्यादातर लाभार्थी पसमांदा मुसलमान हैं।
मुस्लिम बहुल सीटों पर नजर
बीजेपी की नजर 100 से ज्यादा मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों पर है जहां मुसलमान चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे ने फिलहाल 14 राज्यों की 65 लोकसभा सीटों की पहचान की है। ये वही सीटें हैं जहां मुसलमानों की आबादी 30% से ज्यादा है। मोर्चे के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी बताते हैं कि फिलहाल इन सीटों पर मुस्लिम समाज खासकर पसमांदा मुसलमानों के बीच पार्टी की आउटरीच का काम चल रहा है। कुछ और सीटों की निशानदेही का काम चल रहा है।
एक लोकसभा सीट पर 5000 ‘मोदी मित्र’
बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा मुस्लिम बहुल सीटों पर बड़े पैमाने पर मोदी मित्र बनाने में जुटा हुआ है। सभी मुस्लिम बहुल सीटों पर 5000 मोदी मित्र बनाने का लक्ष्य रखा है। इस तरह बीजेपी अगले लोकसभा चुनाव से पहले 100 लोकसभा सीटों पर पांच लाख मुसलमानों को मोदी मित्र बनाकर मुस्लिम समाज में अपनी पैठ बनाने का रणनीति पर काम कर रही है। दिसंबर तक इस लक्ष्य को पूरा किया जाना है। उसके बाद दिल्ली में सभी मोदी मित्रों का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जाएगा इस सम्मेलन में मोदी खुद अपने चाहने वालों से सीधा संवाद करेंगे। इसे अगले लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी मुस्लिम समाज को अपने मुस्लिम मित्रों के जरिए महत्वपूर्ण संदेश देंगे।
कौन हैं मोदी मित्र, क्या है इनका कामः अब सवाल उठता है कि आखिर मोदी मित्र कौन हैं और इनका काम क्या है। इस बारे में जमाल सिद्दीकी कहते हैं कि ऐसे मुसलमान ढूंढना भी एक बड़ी चुनौती है। लेकिन मुस्लिम समाज में प्रधानमंत्री को निजी तौर पर पसंद करने वालों की संख्या बढ़ी है। हमारी कोशिश उन तक पहुंचकर उन्हें मोदी मित्र बनने को राज़ी करना और उनके जरिए मुस्लिम समाज में पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों की पहुंच को बढ़ाना है। मोदी मित्र बनने के लिए किसी खास योग्यता की जरूरत नहीं है। इनमें वकील, इंजीनियर, डाक्टर और सरकारी कर्मचारी भी हो सकते हैं। इनका काम सिर्फ समाज में पीएम नरेंद्र मोदी और उनके विज़न का प्रचार-प्रसार करना है।
पिछले साल शुरू हुआ था मिशन पसमांदा
गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई में हैदराबाद में हुई भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों के बीच पार्टी को काम करने की हिदायत दी थी। उत्तर प्रदेश में इसके अच्छे नतीजे सामने आए हैं। हाल ही में प्रदेश के एक मात्र मुस्लिम बहुल जिले रामपुर की स्वार विधानसभा सीट पर अपना दल के उम्मीदवार की जीत भाजपा की इन्हीं कोशिशों का नतीजा है। इसके अलावा बीजेपी के टिकट पर स्थानीय निकाय के चुनावों में 199 नगर पंचायतों में 32 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से ज्यादातर पसमांदा था। इनमें पाच जीते हैं।
दिल्ली में होगा मोदी मित्रों सम्मेलनः देशभर में मुस्लिम मोदी मित्रों की फौज खड़ी करने में जुटे बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे ने चार राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले इन राज्यों में मोदी मित्रों का राज्य स्तरीय सम्मेलन करने की योजना बनाई है। इसके अलावा विधानसभा चुनावों के बाद दिसंबर में दिल्ली में मुस्लिम छात्रों का एक बड़ा सम्मेलन करने की योजना है।
क्या है बीजेपी का गणित
कुल वोटों में मुस्लिम लगभग 14 फीसदी है।अगर अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी को उनके वोटों का10वां हिस्सा भी मिलता है तो यह कुल वोटों का 1.5 प्रतिशत होगा। हर चुनाव में कुछ सीटों पर हार जीत अंतर एक फीसदी से भी कम होता है। ऐसी सीटों पर ये रणनीति बीजेपी के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है। इससे उसे कई सीटों का फायदा हो सकता है। समझा जा रहा है कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी कुछ पसमांदा मुस्लिमों को टिकट दे सकती है। प्यू रिसर्च के मुताबिक बीजेपी को पिछले लोकसभा चुनाव में 20% मुसलमानों ने वोट दिया था। बीजेपी अगले लोकसभा चुनाव में इसे 5-10 प्रतिशत बढ़ाना चाहती है।
कुल मिलाकर बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मुसलमानों को लेकर अपनी रणनीति बदली है। अभी तक बीजेपी मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम वोटों का अन्य दलों के बीच बंटवारा कराके अपनी जीत का रास्ता निकालने की रणनीति पर काम करती थी। इस बार वो मुस्लिम वोटों का बंटवारे में अपनी हिस्सेदारी लेने की रणनीति पर काम कर रही है। बीजेपी के चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि मोदी सरकार के दस साल सत्ता में रहने के बाद बीजेपी को मुसलमानों से दूरी बनाकर रखने के बजाए उन्हें साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए। उसकी इस पहले से अगर राजनीति में थोड़ी बहुत जगह बनाने की तमन्ना रखने वाले कुछ मुसलमान उसके साथ आ जाते हैं तो ये उसके लिए फायदे का सौदा है। बीजेपी ने अपना जाल फेंक दिया है। अब पसमांदा मुसलमानों को तय करना है कि वो पीएम मोदी की जीत की हैट्रिक लगाने में मदद करेंगे या फिर इस जाल में फंसने से बचेंगे।
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