भारत की संसद का गठन भारत के नागरिकों के बिना संभव नहीं है। संसद का यह प्राथमिक दायित्व है कि वो नागरिक मुद्दों को प्राथमिकता दे। भले ही इस बात की परंपरा रही हो कि नई संसद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करेगी, लेकिन यदि कोई मुद्दा भारत के भविष्य से जुड़ा हो, लाखों छात्रों और उनके करोड़ों परिजनों की आकांक्षाओं और चिंताओं से जुड़ा हो तो परंपरा को कुछ समय के लिए टाला भी जा सकता है। संसदीय लोकतंत्र में परंपरा निभाई जाए यह तो एक आवश्यक विषय है ही लेकिन परंपरा और राजनैतिक हितों के ऊपर नागरिक हित रखे जाएँ यह इससे भी आवश्यक विषय है।
राहुल गाँधी के ‘असाधारण उपाय’ पर बिरला ‘विवेकाधिकार’
- विश्लेषण
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- 28 Jun, 2024

नीट पर लोकसभा में विपक्ष को बोलने नहीं दिया गया। विपक्ष ने स्थगन प्रस्ताव के कई नोटिस दिए गए थे, लेकिन अध्यक्ष ने उन्हें संज्ञान में ही नहीं लिया। देश में ऐसी बहस कब होगी जब लोकसभा स्पीकर का ऐसा बर्ताव हो तो उसके साथ क्या किया जाना चाहिए। स्तंभकार कुणाल पाठक का विश्लेषणः