भारत की संसद का गठन भारत के नागरिकों के बिना संभव नहीं है। संसद का यह प्राथमिक दायित्व है कि वो नागरिक मुद्दों को प्राथमिकता दे। भले ही इस बात की परंपरा रही हो कि नई संसद राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करेगी, लेकिन यदि कोई मुद्दा भारत के भविष्य से जुड़ा हो, लाखों छात्रों और उनके करोड़ों परिजनों की आकांक्षाओं और चिंताओं से जुड़ा हो तो परंपरा को कुछ समय के लिए टाला भी जा सकता है। संसदीय लोकतंत्र में परंपरा निभाई जाए यह तो एक आवश्यक विषय है ही लेकिन परंपरा और राजनैतिक हितों के ऊपर नागरिक हित रखे जाएँ यह इससे भी आवश्यक विषय है।