कर्नाटक की बड़ी जीत से कांग्रेस उत्साहित है। चुनाव जीतने की उसकी ललक बढ़ी है। भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस नेतृत्व बेताब नज़र आ रहा है। इसीलिए दूसरा सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के चुनाव के लिए कांग्रेस ने बिगुल फूंक दिया है। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का संगठन अभी से तैयारी में लग गया है। 2014 और 2019 में हारने वाली कांग्रेस पार्टी भाजपा को शिकस्त देने के लिए अपने स्तर पर ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों के साथ गठबंधन के लिए भी तैयार नज़र आ रही है। मानीखेज है कि कांग्रेस ने वैचारिक और सामाजिक स्तर से लेकर प्रतीकों की भावुक राजनीति तक पर खुलकर खेलने का मन बना लिया है। मुहावरे की भाषा में कहें तो कांग्रेस ने अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं। जैसे कर्नाटक में उसने हिंदुत्व और मोदी ब्रांड को धूल चटाई थी, वही प्रदर्शन कांग्रेस मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों में दोहराने के लिए बेकरार दिख रही है।

बनारस में मोदी द्वारा की जाने वाली गंगा आरती प्रियंका की नर्मदा आरती अलग कैसे हो सकती है? क्या कर्नाटक की तरह यह भी एक गुगली है?
एक दशक बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति में व्यापक परिवर्तन किया है। ग़ौरतलब है कि उसने कर्नाटक में महंगाई, बेरोज़ग़ारी, भ्रष्टाचार जैसे बुनियादी मुद्दों के साथ मज़बूत सामाजिक समीकरणों के साथ उसने बजरंग दल और पीएफ़आई जैसे अतिवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया था। कांग्रेस द्वारा फेंकी गई गुगली में भाजपा के सबसे बड़े स्टार नरेंद्र मोदी फँस गए। कांग्रेस ने मोदी को हिंदुत्व की पिच पर खेलने के लिए प्रेरित किया। इस पिच पर मोदी क्लीन बोल्ड हुए।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।