याद करिए, “फ्रीबीज”, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मोदी ने “रेवड़ी संस्कृति” कह कर देश को पिछले ढाई साल से डरवा रहे हैं. यह एक समय कुछ राज्यों, खासकर तमिलनाडु, की “बीमारी” हुआ करती थी. लेकिन सन 2019 के आम चुनाव के पूर्व स्वयं प्रधानमंत्री इस मर्ज के शिकार हुए. नतीजतन चुनाव के ठीक पहले एक कर्णप्रिय नाम -किसान सम्मान निधि— दे कर किसानों को खुश करने के लिए 2000 रुपये हर चार माह में (हर गरीब किसान परिवार को 17 रुपये) देना शुरू किया. लेकिन जब दिल्ली और अनेक विपक्षी हीं नहीं उनके पार्टी की राज्य सरकरों ने यही फार्मूला अपनाया तो उनकी बचैनी बढ़ी. तब से मोदी चुनाव मंचों से “रेवड़ी संस्कृति” का “दानवीकरण” करना शुरू किया.
रेवड़ियों पर मोदी के तीन असत्य
- विश्लेषण
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- 29 Mar, 2025
पीएम मोदी और बीजेपी शासित राज्य जब योजनाओं के नाम पर रेवड़ियां बांट रहे थे तो सब अच्छा ही अच्छा था और भारत का विकास बहुत तेजी हो रहा था। लेकिन जैसे ही विपक्ष शासित राज्यों ने रेवड़ी के नाम पर स्कीमें घोषित कीं तो पार्टी के हर छोटे-बड़े नेता में उबाल आ गया। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने मोदी की रेवड़ियों पर नजर डाली है।
