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अभी हिंडनबर्ग की नई रिपोर्ट से बवाल मचा हुआ है। उसको आसान शब्दों में समझें।
पिछले कुछ साल में भारत में आरईआईटी कंपनी खोलने की शुरुआत हुई। आरईआईटी मतलब होता है रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट। जैसे म्यूचुअव फंड शेयर में पैसा लगाते हैं, वैसे आरईआईटी रियल एस्टेट में पैसा लगाते हैं। उनसे होने वाली किराए की आय ही इनका आय स्रोत होती है। विदेशों में ये काफ़ी प्रचलित है- वहाँ बड़ी बड़ी रेंटल ऑर्गेनाइज़ेशन होती हैं जो सिर्फ़ किराए पर देने के लिए कमर्शियल और रहने के फ़्लैट्स बनाते हैं।
ब्लैकस्टोन दुनिया की सबसे बड़ी आरईआईटी निवेशक और प्रायोजक कंपनियों में से है। ब्लैकस्टोन ने भारत में दो आरईआईटी कंपनी को प्रायोजित किया है। सेबी चेयरमैन माधवी बुच के पति धवल बुच इसी ब्लैकस्टोन ग्रुप में एडवाइजर नियुक्त किए गए थे।
अब कहानी ये है कि श्रीमान धवल को प्रॉपर्टी बिज़नेस का कोई आइडिया नहीं था। ना ही फाइनेंस का था। वो पेशे से इंजीनियर हैं और हिंदुस्तान लीवर में चीफ़ प्रोक्योरमेंट ऑफिसर थे। पर माधवी बुच को सेबी का सदस्य बनाने के पहले उनको ब्लैकस्टोन ने अपना एडवाइज़र बना लिया।
माधवी बुच सेबी की सदस्य रहने के बाद उसकी चेयरमैन भी बन गईं। इस दौरान उन्होंने देश में आरईआईटी से संबंधित कई नियामक बदलाव किए जिनका सीधा फ़ायदा ब्लैकस्टोन जैसे समूहों को होना बताया गया।
माधवी बुच पर दूसरा आरोप गंभीर है। आईआईएफ़एल नामक एक भारतीय कंपनी ने बरमुडा में एक फंड बनाया जीओएफ़। इस जीओएफ़ ने एक उप-फंड बनाया जीडीओएफ़। हिंडनबर्ग के अनुसार विनोद अडानी ने जीडीओएफ़ में पैसा लगाया। जीडीओएफ़ ने इस मॉरीशस के एक छोटे, गुमनाम फण्ड आईपीई प्लस फंड में लगाया। फिर इस पैसे को आईपीई ने भारत के शेयर बाज़ार में लगाया। आरोप है कि मार्केट में इससे अप्राकृतिक तेज़ी आई।
इस आईपीई फंड का फाउंडर-चीफ था अनिल आहूजा। आरोप है कि माधवी बुच का भी इस जीडीओएफ़ और आईपीई में पैसा लगा हुआ था। माधवी के अनुसार, अनिल आहूजा उसके पति के बचपन के दोस्त हैं और वो सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन आदि में काम कर चुके थे।
खेल यहीं शुरू होता है। कहा जा रहा है कि अनिल आहूजा पहले अडानी पावर और अडानी एंटरप्राइजेज दोनों में डायरेक्टर थे। हैरानी की बात है कि सेबी चेयरमैन माधवी बुच को ये नहीं पता था!
माधवी बुच के सेबी सदस्य बनने से पहले माधवी ने अपने पति को जीडीओएफ का कंट्रोल ट्रांसफ़र कर दिया था। इसके एक साल बाद उनके पति ने सारा पैसा निकाल लिया। पर हैरानी की बात ये है कि पैसा निकालने की ईमेल माधवी बुच ने अपनी पर्सनल ईमेल से भेजी। अगर उन्होंने फण्ड पति को ट्रांसफ़र कर दिया था तो अपनी ईमेल क्यों भेजी? ये सब डॉक्यूमेंट उपलब्ध हैं।
एक आरोप ये भी है कि उनका सिंगापुर में एक और फंड है Agora Partners जो 100% उनका है। सेबी चेयरमैन बनने के बाद इसके सारे शेयर उन्होंने अपने पति को ट्रांसफ़र कर दिए। इसमें कुछ ग़लत नहीं है पर लोग पूछ रहे हैं कि भारत में दुनिया भर के म्यूचुअल फंड हैं, रोज़ आप पब्लिक को सलाह देते हैं कि “म्यूचुअल फंड सही है” पर अपना ख़ुद का पैसा सेबी चेयरमैन मॉरीशस, बरमूडा, सिंगापुर की संदिग्ध कंपनियों में लगाती हैं।
अब बात बजट में खेल की। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स का फ़ायदा उठाने के लिए पहले आरईआईटी यूनिट्स को 36 महीने तक रखना पड़ता था। उसके पहले बेचने पर आय अनुसार इनकम टैक्स लगता था। इस बजट में सरकार ने इस 36 महीने की अवधि को कम करके 12 महीने कर दिया। यानी किसी भी ब्लैकस्टोन जैसी बड़ी कंपनी को सिर्फ़ 12 महीने बाद यूनिट्स बेचकर 35% कॉर्पोरेट टैक्स की जगह सिर्फ़ 12.50% एलटीसीजी टैक्स देना पड़ेगा।
अब जाँच इस बात की होनी चाहिए कि भारत की आरईआईटी कंपनियों में किस किस का पैसा लगा है और किसको इस एलटीसीजी पीरियड 12 महीने करने वाले ऑर्डर से फ़ायदा होगा।
सनद रहे कि माधवी बुच का सेबी से कोई लेना देना नहीं था। प्राइवेट सेक्टर से इस पद पर नियुक्त होने वाली वो पहली चेयरमैन हैं। उनको सीधा सरकार ने बाहर से ला कर सेबी सदस्य और बाद में चेयरमैन बना दिया था।
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