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क्या पीएम मोदी से जीत छीन पाएंगे 'इंडिया' गठबंधन वाले?

लोकसभा चुनाव के सातवें और आखिरी चरण का मतदान अभी बाकी है। इसके लिए पहली जून को 57 लोकसभा सीटों के लिए वोट पड़ेंगे। हालाँकि वोटों की गिनती 4 जून को होनी है लेकिन इससे पहले ही नई सरकार के गठन को लेकर गहमा गहमी तेज हो गई है। एक तरफ़ बीजेपी के नेतृत्व वाले 'एनडीए' की तरफ से दावा किया जा रहा है कि चाहे बीजेपी 200 सीटों पर ही सिमट जाए, पीएम नरेंद्र मोदी ही बनेंगे। वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले 'इंडिया' के नेताओं का दावा है कि अगर एनडीए ने 272 का जादू आंकड़ा नहीं छुआ तो किसी भी कीमत पर नरेंद्र मोदी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ नहीं लेने देंगे। ऐसे में ये सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या 'इंडिया' वाले वाक़ई पीएम मोदी के हाथों से जीत छीन लेंगे?

पीएम मोदी जीत के प्रति आश्वस्त? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार शपथ लेने को लेकर आश्वस्त होने का दावा कर रहे हैं। हालांकि उनका यह दावा चुनावी रैलियां में उनकी भाषा शैली और उनकी तरफ से कही जा रही निम्न स्तरीय बातों से मेल नहीं खाता। चुनाव के ऐलान के बाद नौकरशाहों के एक सम्मेलन में पीएम मोदी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा था कि 4 जून के बाद उनका काम बढ़ने वाला है क्योंकि शपथ लेने के फौरन बाद आपको बड़ा काम देने वाले हैं। इसके लिए उनको अभी से कमर कस लेनी चाहिए। ऐसा ही दावा वह कई टीवी चैनलों को दिए अपने इंटरव्यू में भी कर चुके हैं। पीएम मोदी के इस दावे पर राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि बीजेपी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी करके ही चुनाव जीत सकती है क्योंकि ज़मीन पर उसकी हालत बेहद ख़स्ता है। पीएम मोदी के आत्मविश्वास से भरे इस दावे को कांग्रेस और उसके सहयोगी दल काफी गंभीरता से ले रहे हैं।

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क्या कहते हैं चुनाव विश्लेषक

हालांकि पहले चरण के मतदान के बाद से ही लगातार तमाम चुनावी विश्लेषक बीजेपी की खस्ता हालत की तरफ इशारा कर रहे हैं। लेकिन टीवी चैनलों पर सारा विमर्श इस बात को लेकर है कि क्या बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ 400 का आंकड़ा छुएगी या साधारण बहुमत से ही सरकार बनाएगी? छठे चरण के मतदान के बाद कई साल चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि इस बार बीजेपी 2019 में जीती 303 सीटों से ज्यादा सीटें जीतेगी। वहीं लंबे समय तक सैफोलोजिस्ट रहे योगेंद्र यादव का दावा है कि भाजपा को अपने सहयोगी दलों के साथ 240 से 260 सीटें मिल सकती हैं। सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार सीटों को लेकर तो कोई दावा नहीं करते। हालांकि उनका कहना है कि बीजेपी को उन राज्यों में नुकसान हो सकता है जहां पिछले चुनाव में उसने सारी या लगभग सभी सीटें जीती थीं। लेकिन नुकसान की कुछ भरपाई पूर्वी और दक्षिणी राज्यों से हो सकती है। इन तीनों के ही मुताबिक देश में अगली सरकार एनडीए की बनती नजर आ रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार भी शपथ लेते नजर आ रहे हैं। 

मेनस्ट्रीम मीडिया को अब गोदी मीडिया कहा जाने लगा है। वहां पूरी तरह मोदी छाए हुए हैं। एक-एक चैनल को कई कई बार इंटरव्यू दे चुके हैं। रिपोर्टर से लेकर एंकरों की टीम तक मोदी के इंटरव्यू कर चुकी है। एक टीवी चैनल के एंकर के मुताबिक इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 70 से ज्यादा इंटरव्यू दिए हैं। पीएम मोदी ने ये तमाम इंटरव्यू अपने खिलाफ जाती हवा का रुख अपने पक्ष में मोड़ने की रणनीति के तहत दिए हैं। सारे इंटरव्यू की खास बात है कि इनमें किसी भी रिपोर्टर या एंकर ने पीएम मोदी से कोई काउंटर सवाल नहीं किया। टीवी चैनलों पर दिनभर चलने वाली बहसों का केंद्र बिंदु सिर्फ यही है कि क्या एनडीए 400 से ज्यादा सीटें जीतेगा या नहीं। क्या बीजेपी 370 का आंकड़ा छू पाएगी या नहीं। पूरा गोदी मीडिया नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने की जीत और कोशिशों में जुटा है।

एक चैनल के मालिक और संपादक ने अपने ही चैनल की पांच महिला एंकरों के साथ दिए अपने इंटरव्यू में दावा किया है कि अगर बीजेपी खराब से खराब स्थिति में 200 सीटों पर सिमट जाती है तो भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही बनेंगे। उनका दावा है कि 4 जून की शाम को गृहमंत्री अमित शाह के घर मोदी को समर्थन देने वालों की होड़ लग जाएगी।
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क्या है कांग्रेस का दावा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोदी मीडिया के तमाम दामों के उलट कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी चुनावी रैलियों में डंके की चोट पर दावा कर रहे हैं कि अगली सरकार 'इंडिया' की बनेगी। इस चुनाव में जनता एनडीए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर कर देगी। पहले राहुल गांधी ने बीजेपी के 180 सीटों पर सिमटने का दावा किया था। बाद में उन्होंने दावा किया कि बीजेपी डेढ़ सौ सीटों पर ही सिमट जाएगी।‌ कांग्रेस महासचिव और मीडिया विभाग के प्रभारी जयराम रमेश दावा कर रहे हैं कि 'इंडिया' को 350 सीटें मिलेंगी। ऐसा ही दावा कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी ने भी एक टीवी इंटरव्यू में किया है। कांग्रेस इस बार चुनाव प्रचार और प्रोपेगेंडा वार में बीजेपी पर हावी पड़ती नजर आ रही है। मोदी डाल डाल तो राहुल गांधी ने पात-पात करके मोदी को रेस में हराने की पुरज़ोर कोशिश की है।

क्या है कांग्रेस के सहयोगियों का दावा?

पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस के सहयोगी दल भी बीजेपी के खिलाफ काफी आक्रामक रहे हैं। पूरे चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के बीच बेहतर तालमेल दिखा है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव तो बिहार में तेजस्वी और महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने बीजेपी और उसके सहयोगी दोनों को चुनावी मैदान में पहचान के लिए पूरी ताकत झोंकी है। ये सभी इंडिया की जीत के प्रति आश्वस्त हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जरूर अकेले चुनाव लड़ रही हैं चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कांग्रेस और वामपंथी दलों पर तीखे हमले भी किए हैं लेकिन 'इंडिया' से बाहर आने की बात कहीं नहीं की। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चुनावी रण में कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन काफी हद तक एकजुट रहा है। 

अहम है पहली जून की बैठक

गठबंधन की एकजुटता दिखाने के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहली जून को ही गठबंधन की बैठक बुला ली है। यह बैठक सातवें चरण के मतदान वाले दिन ही बुलाई गई है। हालांकि इसकी टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। ममता बनर्जी ने आखिरी चरण का मतदान और समुद्री तूफान का हवाला देकर बैठक में आने से मना कर दिया है। वहीं अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव भी बठक में शायद ही शरीक़ हो पाएं। बिहार और उत्तर प्रदेश में भी आखिरी चरण का मतदान है। महाराष्ट्र में मतदान पूरा हो चुका है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने बैठक में आने की हामी भरी है। ये बेहद अहम बैठक है। इस बैठक में नतीजे से पहले ही आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श किया जाएगा। बैठक में सारा फोकस इस बात पर होगा कि अगर एनडीए बहुमत से दूर रहता है तो उन दलों को उसकी तरफ जाने से कैसे रोका जाए जिनकी मदद से वह तीसरी बार सत्ता पर काबिज़ हो सकता है।

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आखिरी चरण के मतदान को साधने की कोशिश

इस बैठक के जरिए कांग्रेस आखिरी चरण के मतदान को भी साधने की कोशिश कर रही है। मतदान वाले दिन ही बैठक बुलाकर कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि चुनाव में माहौल बदल चुका है और इस बार कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सत्ता में आ सकती है। उसकी कोशिश आखिरी चरण के मतदान वाली 57 सीटों में से कुछ सीट बढ़ाने की है। पिछले चुनाव में इन 57 सीटों में से बीजेपी ने 25 जीती थी और 7 सीटें उसके सहयोगी दलों ने जीती थी। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को मात्र 9 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। जबकि अन्य के खाते में 16 सीटें गई थीं। कांग्रेस की कोशिश है कि आखिरी चरण के चुनाव में बीजेपी को 10 से 15 सीटों का नुकसान पहुंचाया जाए।

छठे चरण के मतदान के बाद इन चर्चाओं ने भी जोर पकड़ा है कि अगर मोदी चुनाव हारते भी हैं तो भी आसानी से सत्ता नहीं छोड़ेंगे। थल सेना प्रमुख के कार्यकाल को एक महीना बढ़ाए जाने के फ़ैसले को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। उधर संसद भवन में भी सुरक्षा एजेंसी बदली गई है। कुछ नौकरशाहों के तबादलों को भी इन्हीं अटकलों से जोड़कर देखा जा रहा है। सिविल सोसाइटी के लोगों ने चुनाव में किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर सड़कों पर उतरने का इरादा जाता दिया है। ऐसे में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की राजनीतिक चुनौती बढ़ जाती है।

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यूसुफ़ अंसारी
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