उदयपुर और जम्मू में दो आतंकवादियों के तार बीजेपी से जुड़े होने की ख़बरों के बाद ये सवाल उठाए जा रहे हैं कि किस तरह आतंकवादी बीजेपी में घुसपैठ करने में कामयाब हो रहे हैं। कई लोग इसे बीजेपी की चूक बता रहे हैं कि पार्टी ने इन्हें अपने साथ जोड़ते समय इनके अतीत की जाँच नहीं की। लेकिन अगर पार्टी जाँच करती तो भी क्या कुछ मिलता ख़ासकर तब जब पुलिस के पास ही इनके ख़िलाफ़ कोई पुराना रेकॉर्ड नहीं है?
इसलिए यह पार्टी की चूक नहीं है लेकिन यह एक आईना है जो बताता है कि देश में जहाँ कहीं भी इक्का-दुक्का मुसलमान बीजेपी के साथ जुड़ रहे हैं, वे क्यों ऐसा कर रहे हैं। उदयपुर और जम्मू के ये आतंकवादी पार्टी से इसलिए जुड़े कि इनको पता था कि अगर वे बीजेपी के साथ जुड़ेंगे तो पुलिस सहित कोई भी जाँच एजेंसी इनके पीछे नहीं लगेगी और वे अपना गोपनीय काम आसानी से कर पायेंगे।
इन दो आतंकवादियों की ही तरह देश के दूसरे भागों में जो मुसलमान बीजेपी के साथ जुड़े हुए हैं, वे भी किसी नौकरी, किसी काम, किसी ठेके, किसी पद या किसी और फ़ायदे के लिए उस पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं जो दिन-रात हिंदुत्व का नाम जपती रहती है। कुछ इसलिए भी जुड़े हुए हैं ताकि बीजेपी सरकार के कोप से अपनी दुकान, अपना घर, अपना रोज़गार बचा सके।
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वैसे, मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाकर अपनी राजनीति चमकाने वाली भारतीय जनता पार्टी को देश के अधिकतर राज्यों में मुसलमानों के वोटों की ज़रूरत नहीं है और वह उनके समर्थन के बग़ैर भी सरकार बना सकती है।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ख़ुद को उदार दिखाने के लिए पार्टी मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की क़वायद करती रहती है। इसी मक़सद से उसने अल्पसंख्यक मोर्चा बनाया हुआ है जिसकी रस्सी पकड़कर ये दोनों आतंकवादी पार्टी से जुड़े। और इसी मक़सद से प्रधानमंत्री मोदी हैदराबाद में कहते हैं कि पार्टी को हिंदुओं के अलावा दूसरे समुदायों (पढ़ें मुसलमानों) के पिछड़ों की भी चिंता करनी चाहिए।
मोदी देश-विदेश में अपनी छवि सुधारने के लिए चाहे कुछ भी कहें, इन दो कांडों के बाद तय है कि बीजेपी मुसलमानों के प्रति ज़्यादा सशंकित हो जाएगी और जो लोग पार्टी से जुड़ना चाहते हैं और जुड़े हुए हैं, उनकी और शिनाख़्त की जाएगी। हालाँकि इस शिनाख्त के बाद भी जो मुसलमान बीजेपी में एंट्री पाने में सक्षम होंगे, वे वही होंगे जिनको पार्टी या सरकार की तरफ़ से कोई फ़ेवर मिला हो या फ़ेवर चाहिए। एक आम मुसलमान जो किसी स्वार्थ या मजबूरी का मारा न हो, वह तब तक बीजेपी से नहीं जुड़ेगा, नही जुड़ना चाहेगा जब तक पार्टी अपना मुस्लिम-विरोधी चरित्र नहीं बदलेगी।
और ऐसा कभी होगा नहीं। क्योंकि बीजेपी ने अगर मुस्लिम-विरोध छोड़ दिया तो वह हिंदू पार्टी नहीं रहेगी। अगर हिंदू पार्टी नहीं रहेगी तो हिंदुत्ववादी उसे वोट क्यों देंगे ? जब वो उसे वोट नहीं देंगे तो पार्टी सत्ता में कैसे आएगी?
जब सारा खेल सत्ता के लिए हो तो कोई भी पार्टी ऐसा काम क्यों करेगी जिससे सत्ता छिनने की आशंका हो?
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