झारखंड में ‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’ के पदाधिकारियों की सम्मान राशि को दोगुना करने के प्रस्ताव पर मंजूरी हेमंत सोरेन कैबिनेट का एक अहम फैसला बताया जा रहा है। सरकार के इस फैसले पर आदिवासी इलाकों में ‘मानकी मुंडा’, ‘माझी परगना’ स्वशासन व्यवस्था के पदाधिकारियों के बीच प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। सामाजिक और राजनीतिक लिहाज से भी इसके मायने निकाले जा रहे हैं।
झारखंडः ‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’ वालों की सम्मान राशि दोगुना क्यों किया?
- विश्लेषण
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- 27 Aug, 2024

झारखंड में ‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’ है। सरकार ने इसके पदाधिकारियों की सम्मान राशि को दोगुना करने का अहम फैसला लिया है। जानिए, इसके मायने क्या हैं?
इस प्रस्ताव पर मंजूरी दिए जाने के बाद ‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’ से जुड़े राज्य में 28,550 पदाधिकारियों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। इन पदाधिकारियों की सम्मान राशि दोगुना किए जाने के बाद सरकार के सालाना 89.59 करोड़ रुपए ख़र्च होंगे।
‘मानकी मुंडा व्यवस्था’ झारखंड में मुंडा जनजाति की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था है, जिसमें परंपरागत रूप से मुंडा लोग शासित होते थे। जबकि ‘माझी परगना व्यवस्था’ झारखंड की संताल जनजाति की एक पारंपरिक शासन प्रणाली है। यह प्रणाली तीन स्तरों पर कार्य करती है- ग्राम, परगना और क्षेत्र।
राज्य सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव के तहत मानकी, परगनैत को मिलने वाली 3000 की राशि को बढ़ाकर 6000 रुपए, मुंडा एवं ग्राम प्रधान को 2000 से बढ़ाकर 4000 रुपए कर दिया गया है। इनके अलावा डाकुआ, पराणिक, जोगमांझी, कुड़ाम नायकी, गोड़ैत, मूल रैयत, ग्रामीण दिउरी (पुजारी), पड़हा राजा, ग्राम सभा का प्रधान, घटवाल एवं तावेदार को एक 1000 की बजाय अब 2000 रुपए मिलेंगे।