इज़राइल-हमास संघर्ष के एक महीने के अंत में, तीन परस्पर जुड़े मुद्दे उभरकर आए हैं। पहला, हमास द्वारा 242 बंधकों की रिहाई। दूसरा, ग़ज़ा को मानवता के आधार पर राहत सामग्री देना। तीसरा, इन दोनो कामों को शुरू करने के लिए ग़ज़ा में इज़राइली रक्षा बल (आईडीएफ) द्वारा युद्धविराम या सैन्य अभियानों को अस्थायी रूप से रोकने की आवश्यकता।
इन तीन मुद्दों ने विश्व जनमत को दो समूहों में विभाजित कर दिया है। संघर्ष के एक किनारे पर 7 अक्टूबर की हमास द्वारा की गई आतंकवादी गतिविधियाँ हैं और दूसरी तरफ आईडीएफ का प्रतिशोध है जो ग़ज़ा में भारी विनाश, भूख और निर्दोषों की मौत के रूप में सामने आ रहा है। आज की तारीख़ में कोई भी राष्ट्र इस युद्ध में तटस्थ होने का दिखावा नहीं कर सकता। इज़राइल और हमास दोनों की रणनीतियों इस गंभीर समस्या को और अत्यधिक जटिल बनाकर विश्व शांति के लिए ख़तरा बढ़ाने का काम कर रहीं हैं।
हमास क्या चाहता है?
हमास के लिए 'करो या मरो' की स्थिति है। इसलिए उनके पास शुरू से ही स्पष्ट रणनीति रही है लेकिन इस रणनीति का अधिकांश हिस्सा रहस्य में डूबा हुआ है। उसका नेतृत्व, संगठन, योजनाकार, हथियारों का स्रोत, सैन्य प्रशिक्षण, सुरक्षा की तैयारी, लक्ष्य का चयन, फंडिंग और 7 अक्टूबर को आतंकवादी अभियान शुरू करने के लिए तारीख और समय के चयन का औचित्य अभी तक ज्ञात नहीं है। किसी डीप स्टेट ने उनके लिए योजनाएँ बनाईं, सैन्य शक्ति तैयार की और ख़ुद को छुपाते हुए संपूर्ण दहशतगर्दी कार्रवाई का संचालन किया। पश्चिमी मीडिया विशेषकर 'फ़ॉरेन अफ़ेयर्स' नाम की मैगज़ीन ने हमास के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले पोलितब्यूरो की एक तस्वीर पेश की है लेकिन वह भी बहुत अस्पष्ट है।
हमास के दस-बारह लोगों के अलावा किसी के बारे में कोई ख़बर किसी भी खुफ़िया संगठन या मीडिया को नहीं है। परन्तु अब एक महीने के बाद, शीन बेट (इज़राइली खुफ़िया इकाई) ने हमास संगठन के ज़मीनी स्तर पर सक्रिय नेटवर्क संबंधी जानकारियाँ हासिल कर ली होंगी। अब यह बात भी सामने आई है कि ग़ज़ा शहर में अल शिफ़ा अस्पताल के नीचे भूमिगत सुरंगों में हमास का मुख्यालय है। हमास की क्षमता इज़राइल के साथ पारंपरिक लड़ाई लड़ने की नहीं है और इसलिए वह सीधी लड़ाई से बचता है और अपने द्वारा चुने हुए इलाक़ों में लड़ने के लिए इज़राइली सेना को आकर्षित करता है।
आईडीएफ के अभियान के दौरान शहरी इलाक़ों में हो रही विनाशलीला से इज़राइल के विरुद्ध नाराज़गी बढ़ने और फ़िलिस्तीनियों को वैश्विक सहानुभूति मिलना स्वाभाभिक है। इसलिए हमास अपना अस्तित्व बचाने के लिए और लंबा संघर्ष चलाने के लिए एक सोची-समझी रणनीति के तहत बंधकों का इस्तेमाल कर रहा है। इन बंधकों को रिहा करने के लिए युद्धविराम की माँग पर ज़ोर दे रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से भी उचित अंतरराष्ट्रीय दबाव बना जिसमें 120 देशों ने इज़राइल के सैन्य अभियान को तत्काल रोकने का आह्वान किया गया। हालाँकि आईडीएफ जैसी शक्तिशाली सेना के लिए गतिरोध या युद्धविराम उनके लिए हार के समान ही है। इसलिए इज़राइल ने दुनिया की राय को नज़रअंदाज़ कर दिया और सार्वजनिक रूप से हमास के संपूर्ण ख़ात्मे तक सैन्य कार्रवाई चलाने की बात दोहराई। उसने दोहरी नागरिकता धारकों को ग़ज़ा से बाहर निकलने और थोड़ी मात्रा में ही सही, राहत सामग्री के आने की अनुमति देकर विश्व में उठ रही विरोध की आवाज़ को आंशिक रूप से कम करने की कोशिश की।
हमास के बारे में कई बातें भले ही जगजाहिर न हों, यह तो स्पष्ट है कि हमास मुख्यतः दो लक्ष्यों की दिशा में काम कर रहा है।
उसक पहला लक्ष्य है इज़राइल के ख़िलाफ़ वेस्ट बैंक में रह रहे फ़िलिस्तीनियों से समर्थन हासिल करना। हमास वेस्टर्न बैंक में अल फ़तह के कारण अपना प्रभाव नहीं जमा पाया और उसकी उपस्थिति वहाँ नाम मात्र की है। अब तक, वेस्ट बैंक में केवल छिटपुट हिंसा की सूचना मिली है। अगर वेस्ट बैंक से फ़िलिस्तीनियों का जन आंदोलन हुआ तो इज़राइल की धरती पर हमास का पूरा दबदबा हो जाएगा। वह 'नदी से समुद्र तक' के बहुप्रचारित नारे को हासिल करने में सक्षम होगा, जिसका अर्थ जॉर्डन नदी से भूमध्य सागर तक फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना है।
हमास का दूसरा लक्ष्य है शिया या सुन्नी मतभेदों होने के बावजूद इस्लामी दुनिया को एकजुट करना। 7 अक्टूबर की योजना से उसने साबित कर दिया कि इज़राइली सेना, जिसे दुनिया में ऊँची पेशेवर प्रतिष्ठा प्राप्त है, उसको भी घुटनों पर लाया जा सकता है। उस बात ने इस्लामी देशों को ही नहीं, पूरे विश्व को चौंका दिया। लेकिन मुश्किल यह है हमास को इस दिशा में संपूर्ण कामयाबी मिलती नहीं दिखती। मसलन मिस्र या जॉर्डन, ग़ज़ा के मुद्दे पर एकजुटता व्यक्त करने के बावजूद शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।
हमास और इज़राइल के बीच इस ताज़ा संघर्ष का विश्व के कुछ अन्य इलाक़ों पर भी प्रभाव पड़ा है। इसके चलते हमास और फ़िलिस्तीनियों को रूस और चीन जैसे ताक़तवर देशों का अनायास समर्थन मिल गया है। मसलन इस संघर्ष ने दुनिया का ध्यान यूक्रेन-रूसी युद्ध से दूर तो किया ही, साथ-साथ सैन्य संसाधनों को भी, जिसका स्पष्ट लाभ रूस को हुआ। इस कारण रूस आज हमास और फ़िलिस्तीनियों के साथ है। इसने दक्षिण चीन सागर में ताइवान से भी ध्यान हटा दिया है जो कि चीन के लिए लाभदायक है। इसके अलावा इज़राइल के एक कैबिनेट मंत्री ने ग़ज़ा में परमाणु हथियार इस्तेमाल करने का संदर्भ देकर इज़राइली सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस बयान ने इज़राइल के पास परमाणु बम होने के रहस्य को उजागर कर दिया है। इस्लामिक देश यही चाहते थे क्योंकि इसके बाद अमेरिका या यूरोप के पास कोई नैतिक आधार नहीं बचेगा कि वे इस्लामी देशों को अपने एटमी कार्यक्रमों से रोक सकें।
इज़राइली रणनीति
पहले के सैन्य संघर्षों में अमेरिका इज़राइल को बाहर से समर्थन देता था और मध्यस्थ की भूमिका निभाता था। मगर इस बार इज़राइल को अमेरिकी से मिल रहे अटूट और प्रत्यक्ष समर्थन ने स्थिति को बदल दिया है। प्रत्यक्ष समर्थन के साथ-साथ अमेरिका सैनिक और उपकरण भी दे रहा है जिसके दूरगामी सैन्य परिणाम होंगे। हमास और उसके समर्थक डीप स्टेट ने शायद इन दोनों के बीच के इस बेहद सुव्यवस्थित और गहरे सैन्य सहयोग के बारे में सोचा नहीं था। 26 अक्टूबर के बाद से इज़राइल ने समुद्र की ओर से उत्तरी ग़ज़ा में प्रवेश किया, जिसकी हमास को सबसे कम उम्मीद थी क्योंकि वह इज़राइल के साथ लगी हुई सीमा की ओर देख रहा था। तस्करी के उद्देश्य से समुद्र की ओर कुछ खुले स्थानों को छोड़कर पूरे सुरंगी नेटवर्क का रुख पश्चिम की ओर इज़राइल की तरफ ही है। इसलिए ग़ज़ा शहर को अलग-थलग करने के लिए ज़मीनी अभियानों पर इज़राइली सैन्य अभियान की प्रगति बहुत तेज गति से हुई है।
उत्तर, पश्चिमोत्तर और दक्षिण दिशाओं से इज़राइली सेना ने ग़ज़ा शहर को लगभग घेर लिया है। धीरे-धीरे वे ग़ज़ा में रह रहे शेष फ़िलिस्तीनियों को बाहर जाने के लिए कह रहे हैं और दक्षिण की ओर सड़क खोलने के लिए समय दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इज़राइल तीन अलग-अलग स्तरों पर काम कर रहा है। सबसे पहले, राजनीतिक स्तर पर, ग़ज़ा शहर को चारों ओर से घेरकर, इज़राइल ने ग़ज़ा पट्टी को प्रभावी ढंग से दो हिस्सों में विभाजित कर दिया है। 5 नवंबर को अमेरिकी विदेश मंत्री ने छुपकर वेस्ट बैंक में अल फ़तह मुख्यालय का दौरा किया। यह यात्रा निकट भविष्य में उभरने वाले व्यापक राजनीतिक समीकरणों का संकेत देती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि इज़राइल दक्षिण ग़ज़ा का नियंत्रण अल फ़तह को सौंप देगा और ग़ज़ा शहर में ही हमास के नागरिक प्रशासनिक नियंत्रण और युद्ध क्षमता को पूरी तरह से नष्ट करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। दूसरे, सैन्य स्तर पर, वह ग़ज़ा के सुरंग जाल को प्रभावी ढंग से काटने के लिए उच्च क्षमता वाले स्पंज बमों का उपयोग करके हमास को सुरंग के कुछ हिस्सों तक ही सीमित रहने और खुले में लड़ने के लिए मजबूर करने की प्रयास कर रहा है।
हमास के साथ-साथ फ़िलिस्तीन अंतरराष्ट्रीय जिहाद और इसी तरह के अज्ञात आतंकवादी समूहों के लगभग 15 हज़ार आतंकवादियों को ग़ज़ा शहर के नीचे 70 से 80 किलोमीटर लंबी सुरंग के जाल में फँसाकर उनकी रसद, बिजली और पानी की ज़रूरत को संगीन बनाकर लड़ने के लिए मजबूर कर रहा है। हमास का लॉजिस्टिक बैकअप लंबे समय तक नहीं चल सकेगा। ऐसे में हताशा में आकर वे कुछ बंधकों की हत्या भी कर सकते हैं। तीसरा, बंधकों को छुड़ाने के लिए वह ओमान के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक दबाव डाल रहा हैं। इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के प्रमुख पिछले एक हफ़्ते से ओमान में डेरा डाले हुए हैं।
आगे क्या होगा?
हमास ग़ज़ा शहर और ग़ज़ा पट्टी के दक्षिणी हिस्से से इज़राइल की ओर रॉकेट दागना जारी रखेगा। वह इज़राइली सेना को ग़ज़ा शहर से दूर ले जाने और अपनी रसद की पूर्ति को बनाए रखने का प्रयास भी करेगा। उधर इज़राइल के 23 सैनिक पहले ही हताहत हो चुके हैं और बंधकों को छुड़ाने की चुनौती भी बनी हुई है। इसलिए अगले कुछ दिनों में वह क्या करता है, इसकी तरफ़ दुनिया के नेताओं की ही नहीं, पेशेवर सेनाओं की नज़र भी लगी रहेगी।
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