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उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष को क्या हासिल होगा?

कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्षी दलों के 60 सांसदों ने दस्तख़त किए हैं। ख़ास बात यह है कि अडानी मुद्दे पर संसद में लगातार चल रहे कांग्रेस के प्रदर्शन से किनारा कर चुकी त्रृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने भी इस पर दस्तख़त किए हैं। उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं। इससे पता चलता है कि उपराष्ट्रपति के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों के सांसदों में कितना ग़ुस्सा है।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से विपक्षी दलों की नाराजगी का अंदाजा अविश्वास प्रस्ताव लाने के ऐलान से होता है। इसकी जानकारी देते हुए कांग्रेस के महासचिव और मीडिया विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने 'एक्स' पर लिखा, "राज्य सभा के माननीय सभापति द्वारा अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीक़े से उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करने के कारण INDIA ग्रुप के सभी घटक दलों के पास उनके ख़िलाफ़ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। INDIA की पार्टियों के लिए यह बेहद ही कष्टकारी निर्णय रहा है, लेकिन संसदीय लोकतंत्र के हित में यह अभूतपूर्व कदम उठाना पड़ा है। यह प्रस्ताव अभी राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को सौंपा गया है।"

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उपराष्ट्रपति के खिलाफ पहली बार आया अविश्वास प्रस्ताव

भारतीय संसदीय राजनीति के इतिहास में उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का यह पहला मौक़ा है। अगर यह प्रस्ताव राज्यसभा में पास हो जाता है तो फिर इसे लोकसभा में भी पास कराना होगा। इसके संसद के दोनों सदनों में पारित होनो पर उपराष्ट्रपति को अपने पद से इस्तीफ़ा देना होगा। वैसे, राज्यसभा में ही प्रस्ताव का गिरना तय माना जा रहा है। क्योंकि विपक्ष के पास इस प्रस्ताव को पास करने के लिए जरूरी बहुमत नहीं है। राज्यसभा की 250 सीटों में से विपक्ष के पास सिर्फ 103 सीटें हैं। ज़ाहिर है कि राज्यसभा में विपक्ष इसे पास कराने में नाकाम रहेगा। लोकसभा में तो विपक्ष के जीतने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। 

उपराष्ट्रपति से क्यों नाराज़ विपक्ष?

ऐसे में सवाल उठता है कि फिर विपक्ष उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आखिर ला ही क्यों रहा है? वह सिर्फ ख़ानापूर्ति कर रहा है या फिर अविश्वास प्रस्ताव के बहाने उपराष्ट्रपति पर दबाव बनाना चाहता है? दरअसल, विपक्षी दलों का आरोप है कि राज्यसभा में उपसभापति सदन की कार्यवाही के संचालन में निष्पक्ष नहीं हैं। उनका झुकाव सत्तापक्ष की तरफ रहता है। साल 2022 में धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने के बाद से ही विपक्ष उन पर ऐसे आरोप लगाता रहा है। संसद के पिछले सत्र में भी विपक्षी दलों ने उनपर ऐसे ही गंभीर आरोप लगाए थे। तब उन पर आरोप था कि उनके इशारे पर नेता विपक्ष का माइक्रोफोन बार-बार बंद कर दिया जाता है। संसदीय नियम-कायदों का पालन नहीं किया जाता। विपक्षी सांसदों पर व्यक्तिगत टिप्पणी की जा रही है। विपक्षी नेताओं का ये भी कहना है कि वो हेडमास्टर की तरह बर्ताव करते हैं। मनमाने तरीके से सदन को चलाते हैं। उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की मुहिम तभी से चल रही थी। संसद के मौजूदा सत्र में विपक्ष ने इसे अमली जामा पहना दिया।

जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर टूटा सब्र का बांध

हाल के मुद्दों में जॉर्ज सोरोस से जुड़ा मुद्दा अहम है। सोमवार को विपक्षी सासंदों ने सदन का सारा कामकाज रोककर इस मुद्दे चर्चा की मांग की थी। सभापति ने विपक्ष के सारे प्रस्ताव नामंज़ूर कर दिए लेकिन सदन के नेता और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को इसी पर बोलने का मौक़ा दिया। इस पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई और सभपति से पूछा कि जब इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के प्रस्ताव नामंज़ूर किए गए हैं तो फिर बीजेपी नेताओं को इसी मुद्दे पर बोलने की इजाज़त किस नियम के तहत दी गई है। इसपर राज्यसभा में हंगामा हुआ। 

इंडिया गठबंधन राज्यसभा के सभापति धनखड़ के खिलाफ एकजुट हो गया। साझा विपक्ष ने मंगलवार को उनके खिलाफ राज्यसभा के महासचिव को अविश्वास प्रस्ताव सौंप दिया।

उपराष्ट्रपति को कैसे हटाया जा सकता है?

संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक़ उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। उनके ऊपर उच्च सदन यानी राज्यसभा को नियमों और परंपराओं के मुताबिक सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी होती है। उन्हें राज्यसभा के सभापति पद से तभी हटाया जा सकता है, जब उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति के पद से हटा दिया जाए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े तमाम प्रावधान किए गए हैं। संविधान के मुताबिक उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभी तात्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित और लोकसभा द्वारा सहमत एक प्रस्ताव के माध्यम से उनको पद से हटाया जा सकता है। प्रस्ताव पेश करने के बारे में 14 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है। उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही पेश किया जा सकता है, लोकसभा में नहीं।

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संविधान में क्या कहा गया है?

संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है: “उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो, के ज़रिये उसके पद से हटाया जा सकता है। लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कि कम से कम चौदह दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो, ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।”

इसके अलावा कुछ शर्ते और भी पूरी करनी होती हैं। 14 दिन नोटिस देने के बाद ही प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। प्रस्ताव को राज्य सभा में ‘प्रभावी बहुमत’ (रिक्त सीटों को छोड़कर राज्य सभा के तत्कालीन सदस्यों का बहुमत) द्वारा पारित किया जाना चाहिए और लोकसभा द्वारा ‘साधारण बहुमत’ से सहमत होना चाहिए। जब प्रस्ताव विचाराधीन हो तो सभापति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते।

प्रस्ताव पास कराना असंभव

विपक्ष उपराष्ट्रपति के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव ले तो आया है। लेकिन उसके पास राज्यसभा में इसे पास कराने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है। उनके पास 250 में केवल 103 सीटें हैं, लिहाजा उनके लिए आवश्यक बहुमत हासिल कर पाना मुश्किल है। सत्ताधारी एनडीए का एक भी घटक दल इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ नहीं आएगा। 

बेशक, विपक्ष 70 सांसदों के दस्तख़त के साथ दिए गए इस प्रस्ताव पर सदन में बहस कराने का दबाव बना रहा है लेकिन वो अच्छी तरह जानता है कि राज्यसभा में इसे पास कराना उसके बूते की बात नहीं है। राज्यसभा में इसके गिरने की स्थिति में इस पर लोकसभा में बहस की नौबत ही नहीं आएगी।

क्या है राज्यसभा का गणित?

इस वक्त राज्यसभा में कुल 237 सदस्य हैं। आठ खाली सीटों में से चार जम्मू-कश्मीर से हैं। कुल 12 मनोनीत सदस्यों में से चार की जगह ख़ाली हैं। राज्यसभा में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने 12 और सदस्यों को अपने साथ जोड़कर सदन में बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया है। उच्च सदन में बीजेपी लंबे समय से बड़ी पार्टी रही है। अपने सहयोगियों के साथ और 12 सदस्यों को जोड़ने के बाद अब उसकी संख्या 96 हो गई है। वहीं छह मनोनीत और दो निर्दलीयों के साथ अब एनडीए के पास 119 सदस्यों का समर्थन हो गया है। राज्यसभा में एनडीए की यह संख्या अप्रैल 2026 तक बनी रहेगी।

क्या है विपक्ष की स्थिति?

दूसरी तरफ सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो वह विपक्ष के नेता का दर्जा खोने के कगार पर आ गई थी। वर्तमान में उसके कुल 26 सदस्य हैं। राज्यसभा में विपक्ष के नेता का पद पाने के लिए किसी भी पार्टी के पास कम से कम 25 सांसद होने चाहिए। वहीं अब राज्यसभा में किसी तरह के कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है। अब चुनावों का दौर अगले साल नवंबर में होगा, जब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 11 सदस्य रिटायर होंगे। उनमें से भी 10 बीजेपी के तो वहीं एक समाजवादी पार्टी का होगा। दोनों राज्यों की विधानसभाओं की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है।

india alliance no confidence motion against vp jagdeep dhankhar purpose - Satya Hindi

जगन रेड्डी, नवीन पटनायक का रुख क्या रहेगा?

बात राज्यसभा में विधेयक पास होने की है तो बीते 10 सालों में उच्च सदन में कोई भी बिल नहीं अटका है। मोदी सरकार मुश्किल से मुश्किल विधेयक भी पास करा चुकी है। हमेशा सत्ताधारी और विपक्षी दलों से अलग खड़े रहे वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और बीजू जनता दल अक्सर सरकारी बिलों के समर्थन में सामने आए हैं। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से दोनों दल विपक्षी दलों के करीब आ गए हैं। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर उनका रुख अभी साफ नहीं है। पुराना रिकॉर्ड देखते हुए यही कहा जा सकता है कि अविश्वास प्रस्ताव पर अगर राज्यसभा में बहस के बाद मतदान की नौबत आती है तो मोदी सरकार का ही पलड़ा भारी रहने की संभावना ज्यादा है।

ऐसे में साफ़ है कि राज्यसभा के सभापति यानी उपराष्ट्रपति के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाकर विपक्ष पहले से ही हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है। हाँ, इस बहाने वो उपराष्ट्रपति के सरकार की तरफ झुकाव के मुद्दे को ज़रूर सामने लाने की कोशिश करेगा। लेकिन इससे विपक्ष को कोई खास फायदा नहीं मिलेगा। उपराष्ट्रपति के बारे में देश में पहले से ही सरकार का पक्ष लेने की राय बन चुकी है। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल रहते हुए भी उन पर विपक्षी नेता के तौर पर बर्ताव करने के आरोप लगे थे। विपक्ष सिर्फ इस बात का श्रेय ले सकता है कि उसने उपराष्ट्रपति पर लग रहे गंभीर आरोपों को संसद के रिकॉर्ड में दर्ज करा दिया है।

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यूसुफ़ अंसारी
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