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फाइल फोटो

राज्यसभा में नियम 267 के तहत चर्चा से क्यों भाग रही है मोदी सरकार?

कुछ अहम मुद्दों पर राज्यसभा में नियम 267 के तहत बहस को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तक़रार इतनी बढ़ी कि बात उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास तक पहुंच गई। विपक्ष का कहना है कि उसके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। मोदी सरकार राज्यसभा में नियम 267 के तहत किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति इस नियम के तहत किसी भी मुद्दे पर चर्चा की मंजूरी नहीं दे रहे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मोदी सरकार राज्यसभा में नियम 267 के तहत चर्चा से क्यों भाग रही है? 

मोदी के कार्यकाल में सिर्फ एक बार चर्चा

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद राज्यसभा में सिर्फ एक बार नियम 267 के तहत चर्चा हुई है। नवंबर 2016 में 'नोटबंदी' लागू होने के बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने इस मुद्दे पर नियम 267 के तहत राज्यसभा में चर्चा कराई थी। उनके बाद उपराष्ट्रपति बने बीजेपी के वरिष्ठ नेता एम वेंकैया नायडू ने अपने 5 साल के कार्यकाल में एक बार भी नियम 267 के तहत किसी भी मुद्दे पर चर्चा की मंजूरी नहीं दी। मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी अपने ढाई साल के कार्यकाल में इस नियम के तहत एक बार भी किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं कराई है। बल्कि वह तो इस नियम के इस्तेमाल को लेकर विपक्ष पर कई बार बेहद तल्ख़ टिप्पणी कर चुके हैं।

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धनखड़ की तल्ख़ टिप्पणी

संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत में ही जब विपक्षी दलों के सांसदों ने एक ही दिन नियम 267 के तहत मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 17 नोटिस दिए तो राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का पारा चढ़ गया। तब उन्होंने विपक्ष पर इस नियम को संसद की कार्रवाई ठप्प करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। इस पर विपक्ष ने कड़ा एतराज़ जताया था। इस नियम के तहत दिए जाने वाले नोटिस लगातार नामंजूर किए जाने की वजह से विपक्षी दल उपराष्ट्रपति से इस हद तक नाराज़ हुए कि उन्हें हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव तक ले आए। मॉनसून सत्र में भी उपराष्ट्रपति ने इस नियम के तहत चर्चा के लिए दिए जाने वाले नोटिस को लेकर विपक्षी सांसदों को सख़्त चेतावनी दी थी।

सांसदों को सभापति की चेतावनी

उपराष्ट्रपति ने 24 जुलाई को सांसदों के पोर्टल पर अपनी टिप्पणी को अपलोड करके कहा था,

“मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप इस पर गंभीरता से ध्यान दें। मैं दोहराता हूं कि राजनीतिक दलों के नेताओं को इस मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि यह सदन की प्रत्येक बैठक में एक नियमित दैनिक मामला बनता जा रहा है।

मैंने पहले ही संकेत दिया था कि पिछले 36 वर्षों में इस तंत्र को केवल 6 अवसरों पर अनुमति दी गई है केवल असाधारण परिस्थितियों में ही इसकी अनुमति दी जा सकती है। मुझे यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि सदन की निर्धारित कार्यवाही को स्थगित करने की मांग करना वास्तव में एक बहुत ही गंभीर मामला है। आज दायर किए गए नोटिस इस संबंध में अध्यक्ष द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुरूप नहीं हैं और उन्हें स्वीकार नहीं किया गया है।

तीन दशकों से अधिक समय में नियम 267 का उपयोग केवल 6 अवसरों पर किया गया है। बैठक के प्रत्येक दिन मुझे ऐसे कई अनुरोध मिलते हैं। इसे एक नियमित अभ्यास, एक आदत के रूप में लिया जा रहा है। यह एक हास्यास्पद अभ्यास बनकर रह गया है। कल की मेरी गंभीर टिप्पणियों के बावजूद चूंकि कोई ध्यान नहीं दिया गया, इसलिए मैंने इसे पुन: आपके पोर्टल पर अपलोड कर दिया है।“ 

नियम 267 के तहत ही चर्चा क्यों चाहता है विपक्ष?

विपक्षी दल पिछले क़रीब डेढ़ साल से जारी हिंसा पर राज्यसभा में नियम 267 के तहत चर्चा चहता है। इसके अलावा हाल ही में गौतम अडानी के खिलाफ अमेरिका में जारी हुए गिरफ्तारी वारंट के साथ ही उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हुई हिंसा के मुद्दे पर भी विपक्ष इसी नियम के तहत चर्चा चहता है। सवाल यह पैदा होता है कि आखिर विपक्ष नियम 267 के तहत ही चर्चा क्यों चाहता है? 

सरकार इन सभी मुद्दों पर नियम 176 के तहत चर्चा करने को तैयार है। लेकिन विपक्ष नियम 267 के तहत ही चर्चा की मांग पर अड़ा हुआ है। दरअसल, दोनों नियमों के तहत होने वाली बहस में काफी अंतर है।

दो नियमों में क्या है अंतर?

आख़िर संसद के इन दो नियमों में इतना क्या अंतर है, जिसकी वजह से सरकार और विपक्ष के बीच तकरार बढ़ चुकी है। इन दो नियमों को जानने से पहले यह जान लें कि साल 1990 से 2016 के बीच 11 बार ऐसे हालात बने जब विभिन्न चर्चाओं के लिए राज्यसभा में नियम 267 का इस्तेमाल किया गया। आख़िरी बार साल 2016 में तात्कालीन सभापति हामिद अंसारी ने 'मुद्रा के विमुद्रीकरण' पर इस नियम के तहत राज्यसभा में बहस करने की अनुमति दी थी। उसके बाद मोदी सरकर के कार्यकाल में दोबारा इस नियम के तहत किसी भी मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई। इससे साफ़ है कि मोदी सरकार इस नियम के तहत राज्यसभा में किसी भी मुद्दे पर बहस नहीं चाहती। आख़िर ऐसा क्यों है? इस सवाल का जवाब नियम 267 में ही छिपा है।

आसान भाषा में समझें नियम 267

राज्यसभा नियम 267 (Rules of Procedure and Conduct of Business in the Council of States) के मुताबिक़, सभापति की सहमति से सदन में पूर्व निर्धारित कामकाज या एजेंडे को रोककर किसी एक खास मुद्दे पर चर्चा और उस मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछा जा सकता है। नियम लागू होने के बाद सिर्फ एक खास मुद्दे पर ही बहस हो सकती है।

विश्लेषण से और

मान लीजिए कि अगर राज्यसभा में मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार के मामले पर राज्यसभा सभापति ने नियम 267 लागू किया गया तो सिर्फ़ इसी मुद्दे पर दिनभर सरकार और विपक्ष को चर्चा करनी की इजाजत होगी।

राज्यसभा नियम पुस्तिका के अनुसार, कोई भी संसद सदस्य, सभापति के समक्ष किसी मुद्दे पर इस नियम के तहत चर्चा करने का प्रस्ताव रख सकते हैं। सभापति की सहमति होने पर संसद के समक्ष सभी सूचीबद्ध एजेंडे को निलंबित किया जाएगा।

क्या है नियम 176

अब सवाल है कि आख़िर राज्यसभा नियम 176 क्या है? दरअसल, इस नियम के ज़रिए किसी भी खास मुद्दे पर कुछ समय के लिए यानी अल्पकालिक चर्चा की जा सकती है। सभापति द्वारा अगर किसी मुद्दे को राज्यसभा में नियम 176 के तहत चर्चा करने की अनुमति दी जाती है तो ढाई घंटे तक उस विशेष मुद्दे पर चर्चा हो सकती है।

इस नियम को पारित कराने के लिए सदन के किसी भी सदस्य को एक नोटिस सदन को देना पड़ता है, जिसमें यह बताया गया हो कि आखिर क्यों इस विषय पर नियम 176 के तहत चर्चा की जाए। इसके बाद नोटिस पर कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर हो, जो इस नियम के ज़रिए मुद्दे पर चर्चा कराने पर सहमत हों।

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सवालों से सामना

दरअसल, नियम 267 सांसदों को सरकार के सवाल पूछने और स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार देता है, जबकि नियम 176 के तहत होने वाली बहस में सांसदों को ही अधिकार नहीं मिलता। इसे ऐसे समझा जा सकता है। अगर मणिपुर में लगातार जारी हिंसा के मुद्दे पर राज्यसभा में नियम 176 के तहत बहस होती है तो गृहमंत्री या प्रधानमंत्री के जवाब के साथ ही चर्चा पूरी हो जाएगी। लेकिन यही चर्चा अगर नियम 267 के तहत होती है तो गृहमंत्री या प्रधानमंत्री के जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर सांसद उनसे सवाल पूछ सकते हैं। कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण भी मांग सकते हैं। पूर्व में कई प्रधानमंत्रियों ने इस नियम के तहत होने वाली चर्चा के बाद सांसदों के सवालों का सामना किया है। इनमें अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह शामिल हैं।

पीएम मोदी नहीं चाहते कि सवालों से सामना हो?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के भीतर या संसद के बाहर कहीं भी सवालों से सामना नहीं चाहते। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक बार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस तक नहीं की है। प्रधानमंत्री लोकसभा और राज्यसभा में किसी भी मुद्दे पर होने वाली चर्चा के जवाब में लंबे भाषण देते हैं। लेकिन उनका कभी सवालों से सामना नहीं होता। लोकसभा में किसी नियम के तहत चर्चा के बाद प्रधानमंत्री से सवाल पूछने का न तो प्रावधान है और न ऐसी कोई परंपरा रही है। लेकिन राज्यसभा में नियम भी है और परंपरा भी रही है। शायद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यसभा में इस परंपरा को नहीं निभाना चाहते। शायद यही वजह है कि उसकी सरकार राज्यसभा में नियम 267 के तहत किसी भी मुद्दे पर चर्चा से भाग रही है।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)
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यूसुफ़ अंसारी
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