इस समय दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में सोने की खरीदारी को लेकर तेज होड़ लगी हुई है। रिपोर्टों के मुताबिक, 2025 तक सेंट्रल बैंकों ने लगभग 36,300 टन सोना अपने पास जमा कर लिया है, जो अब तक का रिकॉर्ड है। इससे पहले 1978 में उनके पास 36,400 टन सोना था—यानी पांच दशक बाद फिर इतना अधिक स्वर्ण भंडार। 2022-2024 के दौरान बैंकों ने हर साल औसतन 1,000 टन सोना खरीदा, जबकि पहले वे इसका आधा ही खरीदते थे। यह पहली बार है जब केंद्रीय बैंकों का स्वर्ण भंडार अमेरिकी ट्रेजरी सिक्योरिटीज (सरकारी बॉन्ड्स, बिल्स या नोट्स) से आगे निकल गया है।
सोना ख़रीदने के लिए बेताब क्यों हुए सेंट्रल बैंक?
- विश्लेषण
- |
- |
- 12 Sep, 2025

दुनियाभर के केंद्रीय बैंक सोने की रिकॉर्ड खरीदारी क्यों कर रहे हैं? जानें वैश्विक अर्थव्यवस्था, डॉलर पर निर्भरता कम करने की रणनीति और गोल्ड रश के पीछे के आर्थिक कारण।
आखिर इस होड़ का कारण क्या है? दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा शुरू किए गए टैरिफ वॉर ने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को हिला दिया है। ऐसे में सोना एक सुरक्षित संपत्ति के रूप में उभरा है, जो मुद्रा के उतार-चढ़ाव और महंगाई से बचाव करता है। खासकर चीन जैसे देश अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं। सोना ऐसी संपत्ति है जो किसी एक देश की मुद्रा पर निर्भर नहीं। यह सिर्फ खरीदारी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम है—सेंट्रल बैंक्स सोने को विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा बनाकर जोखिम कम कर रहे हैं। भारत भी इस रणनीति को अच्छी तरह समझ रहा है।