लोकसभा चुनाव 2024 महासंग्राम साबित होने जा रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों कमर कस रहे हैं। भाजपा के पास नरेंद्र मोदी नाम का अपना वही जाना-पहचाना चेहरा है, जिसके सहारे वो फिर से इस महासंग्राम में उतर चुकी है। भाजपा के पास मोदी सरकार के कामकाज के दस साल से लेकर हिन्दुत्व एजेंडे के बारे में बताने को बहुत कुछ है तो विपक्ष की ताकत उसकी एकजुटता और कांग्रेस के राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में छिपी है। विपक्ष को लगता है कि भाजपाई मार्का हिन्दू ध्रुवीकरण की काट का जवाब एकजुट होकर दिया जा सकता है। जिसमें सामाजिक न्याय से लेकर पिछड़ों का ध्रुवीकरण तक शामिल है। जनता से जुड़े महंगाई, बेरोजगारी, चंद कारोबारियों को संरक्षण जैसे मुद्दे तो हैं ही लेकिन विपक्ष का जोर मंडल समर्थकों को एक मंच देने की कोशिश पर है। तो, 2024 में मंडल और कमंडल राजनीति का नया संस्करण जनता की परीक्षा लेने फिर से आ रहा है।
भाजपा अपने सबसे बड़े और धारदार सियासी हथियार हिंदुत्व को फिर से आजमा कर कमंडल राजनीति को गरम करेगी,तो उसकी काट के लिए सामाजिक न्याय के योद्धा राजद, जद(यू) और समाजवादी पार्टी हिंदू ध्रुवीकरण की काट के लिए जातीय जनगणना और रामचरित मानस विवाद के जरिए पिछड़ों के ध्रुवीकरण की मंडल राजनीति का दांव खेलने में जुट गए हैं। उधर कमंडल और मंडल से इतर कांग्रेस ने भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दों का एक बंडल तैयार किया है, जिसमें महंगाई, बेरोजगारी,किसानों की समस्या,छोटे उद्योगों मझोले व्यापार और दुकानदारों की तकलीफ, मजदूरों की रोजमर्रा की दिक्कतों और सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना और कार्पोरेट भ्रष्टाचार के जरिए अमीर गरीब की गहराती खाई जैसे मुद्दे शामिल हैं।
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प्रधानमंत्री मोदी की लाइन ऐसी सियासी पैकेजिंग हैं, जिसमें विकास सुशासन और उपलब्धियों के चमकदार खोल के भीतर ठोस हिंदुत्व है जो आगे आने वाले सभी चुनावों में भाजपा का सबसे धारदार हथियार होगा।
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अपने भाषण से प्रधानमंत्री ने भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं को 2024 के चुनावों का एजेंडा दे दिया है। प्रधानमंत्री की इसी लाइन पर भाजपा 2023 के सभी विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों की माहौलबंदी (नेरेटिव) बनाएगी।
दूसरी रणनीति के तहत जनवरी 2024 तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पूरा होने का अतिशय प्रचार,गोबध और लव जिहाद जैसे मुद्दों पर लगातार माहौल गरम रखना, कुछ साधू संतों के द्वारा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का आह्वान और विहिप बजरंग दल जैसे संगठनों और भाजपा के भी हिंदुत्ववादी सांसदों नेताओं द्वारा इसका समर्थन करते हुए हिंदुओं में यह संदेश देना कि जिस तरह 2014 के बाद से लगातार केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारों ने लगातार हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया है, तीन तलाक, अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को हल किया है।उसी तरह अगर भारत को हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए हिंदू राष्ट्र बनाने की तरफ आगे ले जाना है तो 2024 में भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार को और भी ज्यादा बड़े बहुमत से जिताने की जरूरत है।
पिछले साल हुए उत्तराखंड और गुजरात विधानसभा के चुनावों में जिस तरह समान नागरिक कानून बनाए जाने का वादा भाजपा ने किया वह इसका ही संकेत है।ऐसा भी नहीं है कि यह दोनों रणनीतियां एक दम अलग अलग चलेंगी।बल्कि जरूरत पड़ने पर इनको एक दूसरे से मिलाया भी जा सकता है।जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे और संघ परिवार हिंदुत्व के एजेंडे को गरम करेगा, भाजपा और सरकार भी अपने कामकाज के साथ साथ उसके स्वर में स्वर मिलाएंगे।
केंद्रीय गृह मत्री अमित शाह ने जिस तरह त्रिपुरा के चुनावों में प्रचार के दौरान पहले जनवरी 2024 तक राम मंदिर का निर्माण पूरा होने जाने की घोषणा की और फिर यह ऐलान भी किया कि 2024 के चुनावों में भाजपा के सामने विपक्ष की तरफ से कोई चुनौती नहीं है और भाजपा पहले से भी ज्यादा बड़े बहुमत से केंद्र में तीसरी बार लगातार सरकार बनाएगी,यही बताता है कि भाजपा अगला चुनाव विकास और हिंदुत्व की दुधारी तलवार से विपक्ष का मुकाबला करेगी।अब सवाल है कि क्या विपक्ष हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा।भाजपा की ही तरह विपक्ष में भी दोहरी रणनीति पर काम हो रहा है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद संसद में उन्होंने अडानी प्रकरण पर सीधे केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया और यह साबित करने की कोशिश की मोदी सरकार अपने चहेते उद्योगपतियों के हितों के लिए देश के हितों को दांव पर लगा रही है।राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष और नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसी तरह प्रधानमंत्री औऱ केंद्र सरकार दोनों को घेरा।
हालांकि दोनों ही सदनों में जहां प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल और खड़गे के आरोपों पर जवाब देना तो दूर उनका संज्ञान ही नहीं लिया और दोनों सदनों में कांग्रेस नेताओं के भाषणों के कई अंश कार्यवाही से हटा दिए गए।इसके बावजूद कांग्रेस ने अपने आरोपों की धार कम नहीं की और सदन के बाहर लगातार कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख जयराम रमेश और अन्य प्रवक्ता प्रधानमंत्री से अडानी प्रकरण को लेकर सवाल पूछ रहे हैं।इसी कड़ी में कांग्रेस ने 17 फरवरी को देश के 23 बड़े शहरों (राज्यों की राजधानियों) में अपने प्रमुख नेताओं को भेजकर इस मुद्दे पर संवाददाता सम्मेलन करके केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोपों की बौछार की।
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भाजपा के कमंडल और विकास की रणनीति का मुकाबला कांग्रेस अपने आरोपों के बंडल की रणनीति से करेगी।
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सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस तरह बिना कुछ बोले स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ दिया है उससे साफ संकेत है कि समाजवादी पार्टी अब पूरी तरह पिछड़ों के ध्रुवीकरण की राजनीति पर उतर चुकी है।
समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को बहुत उम्मीद थी कि योगी सरकार से नाराज सवर्णों खास कर ब्राह्मणों के एक हिस्से का वोट सपा को मिलेगा।इसीलिए उन्होंने अपने मंच पर यादवों और मुसलमानों से ज्यादा ब्राह्रण नेताओं को तरजीह दी।कोई ऐसा बयान नहीं दिया जिससे सवर्णों की भावना आहत हो।ब्राह्णों में सबसे ज्यादा पूज्य भगवान परशुराम की मूर्ति का अनावरण किया और सरकार बनने पर लखनऊ में परशुराम मूर्ति लगाने की भी घोषणा की।लेकिन चुनाव में सपा को ब्राह्णों और सवर्णों का समर्थन न के बराबर मिला।
इसलिए अब सपा प्रमुख वापस अपने मूल पिछड़े जनाधार और मूल मंडल राजनीति की तरफ चल पड़े हैं।इसके लिए स्वामी प्रसाद मौर्य जैसा बेहतरीन सिपहसालार उनको मिल गया है जो खुद कांशीराम की अंबेडकरवादी राजनीति से निकले हुए नेता हैं।रणनीति है कि रामचरित मानस की उन चौपाईयों को जिनसे पिछड़ों दलितों और महिलाओं के सम्मान को चोट पहुंचने का आरोप है, उन्हें बहुजन समाज में प्रचारित करके इसे उनके मान सम्मान स्वाभिमान का मुद्दा बना दिया जाए और साथ ही इसमें जातीय जनगणना की मांग जोड़ करके इसे हिस्सेदारी का सवाल बनाया जाए।
रामचरित मानस वाले मुद्दे पर भाजपा और संघ परिवार पसोपेश में है। क्योंकि भगवान श्रीराम को सदियों से घर घर में पूज्य और लोकप्रिय बनाने में रामचरित मानस और गोस्वामी तुलसीदास का बहुत बड़ा योगदान है।इसलिए 2024 में राम मंदिर के मुद्दे का लाभ लेने में जुटी भाजपा के लिए रामचरित मानस से खुद को अलग करना नामुमकिन है लेकिन उसकी चिंता पिछड़ी जातियों के उस जनाधार को लेकर भी है जो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 से लेकर उत्तर प्रदेश के हर चुनाव में भाजपा के साथ जुड़ गया है।अगर सपा इसमें आधे में भी सेंधमारी करने में कामयाब हो गई तो लोकसभा चुनाव नतीजे उलट सकते हैं।इसीलिए भाजपा के शीर्ष नेता प्रवक्ता इस मुद्दे पर खामोश हैं लेकिन संघ परिवार ने अपने गैर यादव पिछड़े नेताओं और गैर ब्राह्ण साधू संतों को मानस के पक्ष में आगे करना शुरु कर दिया है।
लखनऊ में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम के दौरान अयोध्या की हनुमान गढ़ी के महंत राजूदास और स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों के बीच हुई भिड़ंत इसका एक उदाहरण है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 2014 और 2019 जैसे नतीजों के लिए अपने सवर्ण जनाधर के साथ साथ पिछड़े और दलितों को भी साधे रहना बहुत जरूरी है। जबकि सपा इसमें सेंधमारी के लिए जुट गई है।
भाजपा को दोतरफा हमलों का मुकाबला करना है। एक तरफ से कांग्रेस के आरोपों बंडल तो दूसरी तरफ सपा राजद जदयू) के मंडल का मुकाबला भाजपा को कमंडल और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सियासी हथियार से करना है।यानी 2024 के चुनावी महाभारत मंडल कमंडल और आरोपों के बंडल की राजनीति की लड़ाई कुरुक्षेत्र होगा।
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