पिछले सात-आठ सालों के दौरान चुनाव प्रक्रिया को कई तरह से दूषित और संदेहास्पद बनाकर अपनी छवि और साख धूल में मिला देने वाले चुनाव आयोग पर इन दिनों अचानक चुनाव सुधार का भूत सवार है। लेकिन इस सिलसिले में वह जो भी पहल कर रहा है उससे उसकी सरकार के पिछलग्गू वाली छवि ही पुख्ता हो रही है।