आगामी लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच भले ही गठबंधन के कयास लग रहे हों लेकिन गठबंधन की राह आसान नहीं है। कांग्रेस की दिल्ली इकाई ने आलाकमान को साफ़-साफ़ बता दिया है कि अगर लोकसभा चुनाव में आप के साथ चुनावी तालमेल हुआ तो पार्टी का भट्ठा बैठना तय है। प्रदेश कमेटी के बाग़ी तेवरों को देखते हुए कांग्रेस आप के साथ चुनावी गठबंधन से परहेज़ ही करेगी। दिल्ली विधानसभा में 1984 की हिंसा को लेकर पास हुए प्रस्ताव के बाद गठबंधन की संभावनाएँ और भी कम हो गई हैं।
कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक़ दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय माकन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को साफ़-साफ़ बता दिया है कि लोकसभा में आप के साथ गठबंधन होने की स्थिति में पार्टी में बग़ावत हो सकती है। प्रदेश कमेटी आम आदमी पार्टी के साथ किसी भी तरह का चुनावी गठबंधन नहीं चाहती। प्रदेश कमेटी का मानना है कि इससे कांग्रेस को देशभर में नुक़सान होने की संभावना ज़्यादा है। मामला सिर्फ़ दिल्ली की सात लोकसभा सीटों का नहीं है बल्कि पार्टी की छवि का सवाल ज़्यादा महत्वपूर्ण है। प्रदेश कमेटी का आकलन है कि अपने दम पर चुनाव लड़कर भी कांग्रेस 3-4 सीटें जीत सकती है। इस लिहाज़ से प्रदेश कमेटी को आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने की कोई तुक नजर नहीं आती।
ग़ौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें बीजेपी ने जीती थी। सातों सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस का पूरी तरह सफ़ाया हो गया था। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी को 46.40 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस 15.10 प्रतिशत वोट पर सिमट गई थी। आम आदमी पार्टी को 32.9% वोट मिले थे। पिछले लोकसभा चुनाव के आँकड़ों के हिसाब से देखें तो सीटों के बँटवारे में कांग्रेस की बारगेनिंग पावर बहुत कम है।
आम आदमी पार्टी से अगर कांग्रेस गठबंधन करती है तो उसके हिस्से में तीन से ज़्यादा सीटें नहीं आएँगी। प्रदेश इकाई के आकलन के अनुसार इतनी सीटें वह अपने बलबूते जीतने की स्थिति में है। तो क्या कांग्रेस मज़बूत हुई है?
क्या जनाधार खो रही है आप?
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का आकलन है कि आम आदमी पार्टी अपना जनाधार लगातार खो रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में उसे किसी भी राज्य में 1% वोट भी नहीं मिला है। पार्टी के अंदरूनी आकलन के अनुसार दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी का जनाधार कम हुआ है। ऐसे में उसके साथ गठबंधन करना उसे संजीवनी देने जैसा होगा। इससे कांग्रेस को न सिर्फ़ लोकसभा चुनाव में नुक़सान होगा बल्कि 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को उसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। कांग्रेस की दिल्ली इकाई ने लोकसभा की सातों सीटों पर चुनाव की तैयारियाँ तेज कर दी हैं। तीन राज्यों में सरकार बनने के बाद कांग्रेस के हौसले वैसे ही बुलंद हैं। कांग्रेस सातों सीटें जीतने के लिए मज़बूत उम्मीदवार उतारेगी। कुछ सीटों पर उम्मीदवार पहले से लगभग लगभग तय हैं। बाक़ी सीटों पर भी जल्दी उम्मीदवारों के नाम सामने आ जाएँगे।
शीला दीक्षित करेंगी नेतृत्व?
कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक़ लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी। दिल्ली में काफ़ी दिन से पार्टी की कमान शीला दीक्षित को सौंपे जाने की चर्चा है। हालाँकि पहले दिल्ली में शीला दीक्षित का विरोध ख़ुद अजय माकन करते रहे हैं लेकिन अगर लोकसभा चुनाव के लिए शीला दीक्षित को अगुआई करने की ज़िम्मेदारी मिलती है तो वह और दिल्ली के बाक़ी नेता उनका खुला विरोध नहीं करेंगे।- कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने वैसे भी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत का परचम फहरा कर यह संदेश दे दिया है कि अगर जीतना है तो नेताओं को आपसी मतभेद भुलाकर पार्टी हित में काम करना होगा। यह संदेश दिल्ली में भी सभी बड़े नेताओं तक पहुँच चुका है।
राजीव गाँधी विवाद का असर?
क्या आप नेता करेंगे कांग्रेस में वापसी?
कांग्रेस उन नेताओं की वापसी की उम्मीद लगाए बैठी है जो किसी समय पार्टी से नाराज़ होकर केजरीवाल के ख़ेमे में चले गए थे। कांग्रेस को उम्मीद है कि विधानसभा में राजीव गाँधी के ख़िलाफ़ पारित किए गए प्रस्ताव के बाद अलका लांबा सहित कई पूर्व कांग्रेसी आम आदमी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं। इस प्रकरण के बाद अलका लांबा के ट्वीट को लेकर कांग्रेस यह संकेत मान रही है कि वह कांग्रेस में वापसी करना चाहती हैं। कांग्रेस की दिल्ली इकाई के इन कड़े तेवरों से लगता है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की खिचड़ी पकने से पहले ही चूल्हा ठंडा हो गया है।
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