सूरत की सेशन्स कोर्ट द्वारा राहुल गांधी को दी गई ज़मानत और सज़ा के निलंबन की खबर के बाद कांग्रेस को कितने उत्साह के साथ राहत की सांस लेना चाहिए ? जमानत को ही राहत के लिए पर्याप्त मान लेना चाहिए या निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सज़ा के ख़िलाफ़ दायर अर्ज़ी के निपटारे तक उत्साह पर रोक लगाकर ख़ामोश रहना चाहिए ?  कहा जा सकता है कि सूरत एपिसोड की निर्णायक शुरुआत अब हुई है ! कोई निर्णय आने तक के देश का राजनीतिक सस्पेंस बना रहने वाला है। लोकसभा सदस्यता की बहाली के लिए सज़ा पर स्टे ज़रूरी है। अपनी सज़ा के ख़िलाफ़ दायर अर्ज़ी में राहुल गांधी ने जो तर्क कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए हैं उसका एक-एक शब्द झकझोर देने वाला है।