संविधान बचाने की बात करते हुए भाजपा विरोधी दल ज़रूर आरक्षण पर जोर दे रहे थे और संविधान पर आँच का मतलब आरक्षण पर आंच बताकर दलित और पिछड़ों को अपनी ओर गोलबंद करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे जाति इस बार के चुनाव का एक बड़ा विमर्श बन जाएगा और इसी से भाजपा को दिक्कत होने लगेगी, इसका अंदाजा शायद ही किसी को था। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि राहुल गांधी ने हाल में हुए विधानसभा चुनावों में जातिवार जनगणना का सवाल बहुत जोर-शोर से उठाया था और कांग्रेस उन राज्यों में भी बुरी तरह हारी जहां उसकी स्थिति अच्छी लग रही थी। कहते हैं कि मध्य प्रदेश के कुछ बड़े कांग्रेसी नेताओं ने प्रदेश में जाति के सवाल को न छेड़ने की सलाह देने के साथ इंडिया गठबंधन की बैठक नहीं होने दी या उसके नेताओं को चुनाव प्रचार में आने नहीं दिया।
जाति इस बार 2014 व 2019 से ज्यादा प्रभावी; बीजेपी के लिए मुश्किल?
- विश्लेषण
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- अरविंद मोहन
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- 8 May, 2024
दो बातें साफ़ हैं। कम से कम पिछले दो चुनावों की तुलना में इस भार भाजपा के पास कोई केन्द्रीय मुद्दा नहीं है। दूसरे इस बार इन तीन चुनावों में सबसे ज़्यादा प्रबल ढंग से जाति दिखाई दे रही है, भले वह मण्डल वाले दौर जैसी न दिखती हो।

जाति के पिच पर भी उस्तादी दिखा चुके नरेंद्र मोदी ने जब हिन्दी पट्टी के तीन महत्वपूर्ण राज्यों के साथ हरियाणा के लिए नए मुख्यमंत्री का चुनाव किया तो जातिगत समीकरणों का पूरा ध्यान रखा। और वे इस बार के प्रचार में संविधान के मसले पर अपना पक्ष मज़बूती से रखते रहे लेकिन चुनाव प्रचार में या उम्मीदवारों के चयन में जाति के सवाल को कभी नहीं भूले।