संसदीय प्रणाली वाले भारतीय लोकतंत्र में पिछले करीब एक दशक से मुद्दों पर चेहरा भारी पड़ता रहा है।चाहे 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव रहे हों या राज्यों के विधानसभा चुनाव। चेहरा यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता व करिश्मे ने कई बार भाजपा को बढ़त दिलाई है।
2024 में चेहरे की जगह मुद्दों पर चुनाव लड़ेगा विपक्ष?
- विश्लेषण
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- 14 Dec, 2022

हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों ने मुद्दों की राजनीति को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ किया है। कांग्रेस के साथ-साथ बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार ने भी मुद्दों के आधार पर विपक्षी एकता की बात कही है। इससे एक तरफ विपक्ष में नेता को लेकर होने वाले विवाद से बचा जा सकेगा तो दूसरी तरफ भाजपा के मोदी के मुकाबले कौन के राजनीतिक विमर्श की धार को भी कमजोर करके उसे मुद्दों पर घेरा जा सकेगा।
लेकिन राज्यों के चुनावों में कई बार ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, के.चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक, जगन मोहन रेड्डी के चेहरे अपने अपने राज्यों में मोदी के चेहरे और भाजपा पर भारी भी पड़े हैं।
यानी ज्यादातर चुनाव मुद्दों से ज्यादा प्रतिद्वंदी दलों के नेताओं के चेहरों के बीच हुए और जो चेहरा भारी पड़ा उसके दल को कामयाबी मिली। इसी साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरों की संयुक्त लोकप्रियता सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के चेहरों की लोकप्रियता पर भारी पड़ी।पंजाब में अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान के चेहरों ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया।