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यूक्रेन को शांति समझौते का कड़वा घूँट पीना होगा

यूक्रेन की आम जनता ने जिस तरह अपने हाथों में हथियार उठा लिये हैं उससे रूसी सेना कीव की सड़कों पर उतरने की हिम्मत नहीं कर रही इसलिये रूस कीव की मौजूदा सरकार का मनोबल तोड़ने के लिये भीषण हवाई हमलों का ही सहारा ले रही है। 
रंजीत कुमार

सामरिक हल्क़ों में कहा जाता है कि युद्ध शुरू करना तो आसान होता है लेकिन इसे किस बिंदु पर ख़त्म किया जाए, यह तय करना काफ़ी मुश्किल होता है। लेकिन यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस द्वारा छेड़े गए एकतरफ़ा युद्ध में राष्ट्रपति पुतिन का लक्ष्य साफ़ है- यूक्रेन में सत्ता पलट  कर उसे अपने राजनीतिक और सामरिक प्रभुत्व में लाना। वास्तव में पुतिन ने यूक्रेन में सत्ता बदलने का अभियान काफी हद तक अमेरिका द्वारा कोसोवो, इराक या लीबिया में सत्ता पलट की तर्ज पर ही छेड़ा है।  जिस तरह इराक, लीबिया या कोसोवो की मदद के लिये कोई दूसरा देश आगे नहीं आया उसी तरह यूक्रेन को भी इसके समर्थक देशों ने अकेला छोड़ दिया है।

इसलिये युद्ध के दो ही नतीजे दिख रहे हैं या तो यूक्रेन और नाटो को रूस की शर्त पर शांति समझौता स्वीकार करना होगा या फिर यूक्रेन की इस मांग पर अमेरिका और नाटो को अमल करना होगा कि यूक्रेन के आसमान पर नो फ्लाई ज़ोन स्थापित किया जाए। ऐसी स्थिति में रूसी लड़ाकू विमानों को यूक्रेन के आसमान पर उड़ने से रोकने के लिये अपनी विमान भेदी मिसाइलों या लड़ाकू विमानों को तैनात करना होगा। ऐसी स्थिति में रूस और नाटो के बीच सीधा युद्ध छिड़ेगा और तब तीसरा विश्व युद्ध देखने के लिये हमारी पीढ़ी के लोगों को तैयार रहना होगा।

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यूक्रेन के ख़िलाफ़ एकतरफ़ा युद्ध छेड़ कर रूस ने अपने को उस मुकाम पर पहुँचा दिया है जहां से उसके लिये पीछे लौटना मुमकिन नहीं होगा। यूक्रेन पर अपना सम्पूर्ण प्रभुत्व जमाने के लिये व्लादिमीर पुतिन अपना लक्ष्य जब तक हासिल नहीं कर लेते तबतक वे अपनी फौज को हमले में  और तेजी लाने का निर्देश देते रहेंगे। कोई नतीजा जल्द नहीं मिलते देख फौज को बेलगाम छोड़ देने का ही नतीजा है कि यूक्रेन के परमाणु बिजली घर पर हमला किया गया और चूंकि व्लादिमीर पुतिन की निजी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है और उनकी हार या पीछे हटने का मतलब हिटलर की मौत मरने के समान होगा इसलिये वह अंतिम शस्त्र यानी परमाणु बम का इस्तेमाल करने से क़तई गुरेज नहीं करेंगे।

यूक्रेन पर रूसी हमला शुरू होने के दस दिन बीत चुके हैं और यूक्रेन का बड़ा हिस्सा तबाही के दौर से गुजर रहा है। अंतरराष्ट्रीय निंदा और चौतरफ़ा आर्थिक प्रतिबंध झेल रहे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को  जल्द से जल्द अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने के लिये यूक्रेन पर हमला और तेज करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिखता है। बेलारूस में यूक्रेन के नेताओं के साथ दो दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बाद पुतिन की फौज ने यूक्रेन के परमाणु बिजली घर की एक इमारत पर बमवर्षा कर वहशी तेवर दिखाया है। 

वैसे इसके पहले भी रूसी राष्ट्रपति ने परमाणु बम के इस्तेमाल की धमकी दे कर अमेरिका और नाटो को आगाह किया है कि यूक्रेन पर रूसी हमला रोकने के लिये वे किसी तरह का सैन्य हस्तक्षेप नहीं करें।

साफ़ है कि यूक्रेन पर रूसी हमला तब तक नहीं रुकेगा जब तक कि व्लादिमीर पुतिन अपना सामरिक लक्ष्य हासिल नहीं कर लेते। इसके लिये यूक्रेन को रूस की शर्मनाक शांति शर्तों को स्वीकार करना होगा। रूस सबसे पहले तो यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को सत्ता छोड़ने को कहेगा और पूर्व राष्ट्रपति यानुकोविच की अगुवाई में कीव पर पिट्ठू सरकार की स्थापना की मांग करेगा।

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यानुकोविच ने मास्को में ही शरण ली हुई है। यूक्रेन की नई सरकार रूस की अगुवाई वाली कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन का सदस्य बनने के साथ यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन में शामिल होगी। ऐसी स्थिति में यूक्रेन आर्थिक और सैन्य दृष्टि से रूस पर पूरी तरह निर्भर होगा। यूक्रेन की विद्रोही सरकार के नेता विक्टर यानुकोविच ने अपने शासन काल में यूरोपीय यूनियन में शामिल होने का विरोध किया था जिसकी वजह से उन्हें सत्ता से बेदखल किया गया था।

राष्ट्रपति पुतिन की कोशिश है कि यूक्रेन पर हमले तेज़ होंगे तो आम जनों की बढ़ती असहनीय परेशानी के मद्देनज़र वह अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार हो सकते हैं।

हालाँकि राजधानी कीव की क़िलेबंदी तोड़ने के लिये पुतिन रूसी पैदल फौज को ज़मीन पर नहीं उतार सकते क्योंकि इससे भारी संख्या में रूसी सेना हताहत होगी। यूक्रेन की आम जनता ने जिस तरह अपने हाथों में हथियार उठा लिये हैं उससे रूसी सेना कीव की सड़कों पर उतरने की हिम्मत नहीं कर रही इसलिये रूस कीव की मौजूदा सरकार का मनोबल तोड़ने के लिये भीषण हवाई हमलों का ही सहारा ले रही है। इनके ज़रिये राजधानी कीव की रिहायशी इमारतों को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है उससे लाखों लोग शहर छोड़कर भागने को मजबूर हो रहे हैं और पड़ोसी पूर्व यूरोपीय देशों में शरण ले रहे हैं।

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पुतिन देख रहे हैं कि यूक्रेन की मौजूदा सरकार कब तक अपनी जनता की तबाही को देखती रहेगी। यूक्रेन में अकल्पनीय मानवीय त्रासदी से बचने के लिये राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को अंततः रूस के साथ शांति समझौते का कड़वा घूंट पीना ही पड़ेगा। वास्तव में यह शांति समझौता अमेरिका और नाटो के लिये ही कड़वा घूंट साबित होगा। जिस यूक्रेन को यूरोप, अमेरिका और नाटो ने अपनी गोद में बैठने को ललचाया था उसकी समर नीति की यह भारी पराजय ही कही जाएगी। रूस यह शांति समझौता करने के साथ अमेरिका और यूरोप से भी यह मांग कर सकता है कि उसके ख़िलाफ़ लगाए गए सभी आर्थिक प्रतिबंध हटा लिये जाएँ।

हो सकता है कि यूक्रेन में रूस द्वारा स्थापित कठपुतली सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक विद्रोह जारी रहे और नाटो इसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद भी दे सकता है लेकिन तब रूस के लिये यूरोप के शहरों को भी निशाना बनाने का बहाना मिलेगा। परमाणु युद्ध छिड़ने के नाम पर अमेरिका और नाटो को ब्लैकमेल कर रहे रूसी राष्ट्रपति के लिये यूक्रेन के शहरों पर हमले और तेज करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की जल्द से जल्द आत्ममर्पण कर दें।

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