हम भारतीय शायद इस बात पर गहरी साँस ले सकते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप सिर्फ दबाव बनाकर भारत से क्लोरोक्वीन दवा हासिल कर रहे हैं। कम से कम वे हमारे दवाओं को पाने के लिये डकैती नहीं डाल रहे हैं।
अमेरिका ने दवा हासिल करने के लिए इन देशों पर दवाब नहीं बनाया। मास्क और दूसरे पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपटमेंट लेने के लिए चोरी कराई और मेडिकल सामान को बीच में ही गायब करवा दिया है।
डकैती?
इसी अख़बार के अनुसार 3 अप्रैल को चीन से जर्मनी जा रहा एक कनसाइनमेंट थाईलैंड के हवाई अड्डे पर उड़ा लिया गया। इसमें दो लाख एन-65 मास्क थे। यह कनसाइनमेंट भी अमेरिका पहुँच गया। बर्लिन पुलिस ने इन मास्क का ऑर्डर दिया था। जर्मनी में कोरोना वायरस से एक लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं।वह संकट की इस घड़ी में कोरोना से संयुक्त रूप से लड़ने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह इस वक्त अधिक से अधिक दवा और उपकरण इकट्ठा करने में लगा है। और इस के लिये वह कुछ भी करने को तैयार है।
क्या कर रहा है अमेरिका?
दिलचस्प बात यह है कि जो ट्रंप भारत पर दबाव बना कर क्लोरोक्वीन ले रहा है वह खुद अपनी कंपनियों को धमकी दे रहा है कि वे कोरोना से जुड़ी चीज़ें दूसरे देशों को न बेचें और अगर ऐसा हुआ तो वह कड़ी कार्रवाई करेगा ।कंपनी से यह भी कहा गया है कि जो सामान वह अमेरिका के बाहर किसी दूसरे देश में बना रहा है उसे भी वो किसी और देश या कंपनी को न निर्यात करे।
‘द इंडपेंडेंट’ ट्रंप की इन हरकतों से क्षुब्ध होकर काफी तल़्खी से लिखा कि संक्रमण राष्ट्र की सीमाओं को नहीं पहचानता है, पर ट्रंप से यह कहना वैसा ही है जैसा किसी एक साल के बच्चे से यह उम्मीद करना कि वह शरारत न करे। एक ऐसा नेता जिसके पास भविष्य की कोई दृष्टि न हो, देश की अगुआई नहीं कर सकता।
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