सीरिया में रविवार को असद सरकार का पतन हो गया और दमिश्क में सड़कों पर विद्रोही गुटों के साथ-साथ स्थानीय लोगों ने जश्न मनाया। तो क्या अब सीरिया में अब सबकुछ ठीक हो जाएगा? क्या वर्षों से चला आ रहा गृहयुद्ध अब ख़त्म हो जाएगा और शांति आ जाएगी? इन सवालों के जवाब क्या इतने आसान हैं?
इसका जवाब पाने से पहले यह जान लें कि बतौर सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद का शासन कैसा रहा और इसका पतन कैसे हुआ। देश में असद के परिवार का क़रीब पाँच दशकों से शासन था। खुद असद वर्षों से सत्ता पर काबिज थे। उनके शासन को तानाशाही शासन माना जाता रहा। सीरिया में ही कई तबक़े उनके शासन के ख़िलाफ़ था और इस वजह से भी विद्रोही गुट बने थे। लेकिन रूस, ईरान जैसे देशों और हिज्बुल्ला जैसे संगठनों की वजह से असद का शासन गृहयुद्ध चलने के बावजूद चलता रहा। उनकी सत्ता तब कमजोर हुई और उनकी सरकार का पतन तब हुआ जब उनके सहायक देशों का सहयोग कमजोर पड़ा।
इस्लामी समूह हयात तहरीर अल-शाम यानी एचटीएस के नेतृत्व में किए गए चौंकाने वाले हमले में सशस्त्र विद्रोहियों ने दो सप्ताह से भी कम समय में अलेप्पो, हामा और होम्स के प्रमुख शहरों पर कब्ज़ा कर लिया था। सीरियाई सेनाएँ वर्षों की लड़ाई के बाद हतोत्साहित और अव्यवस्थित थीं। इस बीच असद के सबसे शक्तिशाली सहयोगी भी तेजी से आगे बढ़ने से चौंक गए। रूस यूक्रेन में फंस गया और ईरान के प्रॉक्सी भी इसराइल के साथ संघर्ष में बुरी तरह कमजोर हो गए।
असद को पहले भी विद्रोहियों से ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा था, लेकिन तब उनका सपोर्ट सिस्टम काफ़ी मज़बूत था। 2015 में विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों पर हवाई हमलों के रूप में संघर्ष में रूस का हस्तक्षेप असद की सत्ता पर पकड़ को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ था, जबकि ईरान का सबसे शक्तिशाली प्रॉक्सी, हिजबुल्लाह, सीरियाई सरकारी बलों के साथ लड़ा था। इस बार वैसा नहीं हो सका।
इसकी वजह साफ़ थी। एक तो असद का कट्टर समर्थक रूस साल भर से ज़्यादा समय से यूक्रेन के साथ युद्ध में फँसा हुआ है। इसके साथ ही इस मुद्दे को लेकर उसकी नाटो के साथ गंभीर तनातनी बनी हुई है। दूसरी तरफ़, इसराइल की कार्रवाई के बाद ईरान कमजोर हुआ है।
कहा जा सकता है कि सीरियाई सरकार का पतन लगभग 14 महीने पहले तब शुरू हो गया था जब 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के नेतृत्व में इसराइल पर हमला हुआ था। इसके बाद घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई। इसने मध्य पूर्व को हिलाकर रख दिया।
ग़ज़ा और लेबनान में इसराइली अभियानों में ईरान के तथाकथित प्रतिरोध की धुरी को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा। ईरान पर इसराइल के सीधे हमलों ने कथित तौर पर इसके मिसाइल उत्पादन में बाधा डाली है और इसकी कई वायु रक्षा प्रणालियों को तबाह कर दिया है। जानकार कहते हैं कि तेहरान अब खुद को कमजोर स्थिति में पाता है।
ऐसी ही स्थिति में जब हयात तहरीर अल-शाम यानी एचटीएस के नेतृत्व में विद्रोही गुटों ने हमला तेज़ किया और वे रविवार को राजधानी दमिश्क में घुसे तो असद सरकार गिर गई। सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद रविवार को स्थानीय समयानुसार सुबह-सुबह देश छोड़कर भाग गए। इस तरह विद्रोही समूहों के गठबंधन ने अचानक ही असद परिवार के 50 साल के क्रूर शासन को ख़त्म कर दिया। इस ख़बर के बाद कई लोगों ने दमिश्क की सड़कों पर खुशी तो मनाई, लेकिन साथ ही इस गहरे संकटग्रस्त देश के भविष्य को लेकर अनिश्चितता भी पैदा हो गई है।
रूस की संसद के ऊपरी सदन के उपाध्यक्ष कोंस्टैंटिन कोसाच्योव ने रविवार को कहा कि सीरियाई लोगों को अकेले ही गृहयुद्ध का सामना करना पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय मामलों के एक अनुभवी रूसी विशेषज्ञ कोसाच्योव ने भविष्यवाणी की है कि सीरिया में गृह युद्ध असद के जाने के साथ ख़त्म नहीं होगा और कठिन समय आगे आने वाला है।
उनकी यह भविष्यवाणी यूँ ही नहीं है। दरअसल, सीरिया में कई देशों का हित है। अमेरिका, रूस से लेकर ईरान, लेबनान, इसराइल, तुर्की जैसे देशों का हित सीधे तौर पर इसमें शामिल है।
असद सरकार के अप्रत्याशित पतन से सीरिया में सत्ता की शून्यता पैदा हो गई है। वह भी वैसे देश में जहां सशस्त्र समूह, इस्लामी चरमपंथी और विदेशी शक्तियां लंबे समय से प्रभाव के लिए होड़ कर रही हैं।
यानी इन सभी देशों के अपने-अपने हित हैं। आम तौर पर माना जाता है कि तुर्की ने एचटीएस के नेतृत्व वाले हमले को हरी झंडी दी है, हालाँकि यह आधिकारिक तौर पर इसमें शामिल होने से इनकार करता है। माना जाता है कि असद द्वारा तुर्की के साथ जुड़ने से इनकार करने से वह निराश हो गया था। अब अंकारा आगे चलकर सीरिया में महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए तैयार है।
शनिवार को कतर में दोहा फोरम में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि मास्को यह सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ कर रहा है कि आतंकवादी सीरिया में हावी न हो सकें। लावरोव ने सीरिया की स्थिति पर चर्चा करने के लिए शनिवार को शिखर सम्मेलन के दौरान अपने ईरानी और तुर्की समकक्षों से मुलाकात की।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि तत्काल चिंता का एक और कारण यह है कि इस्लामिक स्टेट स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करेगा। आईएस ने कभी सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर अपना खूनी शासन चलाया था।
एक डर यह भी है कि कई बाहरी ताक़तें सीरियाई समुदायों के भीतर अपने पसंदीदा दलों और प्रॉक्सी को फिर से चुनेंगे, और यह भी एक ख़तरनाक स्थिति होगी।
असद शासन का पतन ऐसे समय में हुआ है जब डोनाल्ड ट्रम्प जनवरी में व्हाइट हाउस में वापस लौटने वाले हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रम्प ने सीरिया से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की कोशिश की, लेकिन सलाहकारों ने उन्हें इस कदम के खिलाफ़ मना लिया। उन्होंने चेतावनी दी है कि ईरान और रूस इस कमी को पूरा करने की कोशिश करेंगे। ट्रम्प ने एक से अधिक बार असद के खिलाफ़ हमलों का आदेश भी दिया। हालाँकि, ट्रंप ने ट्वीट कर कहा है कि दूसरों के मामलों में हमें नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन अमेरिका के लिए ऐसा करना इतना आसान नहीं होगा।
जब सीरिया का भविष्य बहुत अनिश्चित बना हुआ है, इस स्थिति का पड़ोसी लेबनान पर भी बड़े पैमाने पर प्रभाव है। लेबनान में स्थित हिजबुल्लाह को ईरानी हथियारों की आपूर्ति के लिए सीरिया मुख्य जमीनी मार्ग है। इससे माना जा रहा है कि अब हिजबुल्लाह के लिए एक नई कमजोरी पैदा होगी।
इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसका श्रेय भी लिया। उन्होंने कहा कि यह ईरान और हिजबुल्लाह पर हमारे द्वारा किए गए हमलों का प्रत्यक्ष परिणाम है।' हिजबुल्लाह के साथ इसराइल के संघर्ष ने तेहरान समर्थित आतंकवादी समूह को बहुत कमजोर कर दिया है। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप हिजबुल्लाह के लंबे समय के नेता हसन नसरल्लाह की मौत हो गई, जबकि समूह की सैन्य क्षमताओं को बड़ा झटका लगा। हाल ही में हुए संघर्ष विराम समझौते के बावजूद इसराइल और हिजबुल्लाह के बीच गोलीबारी जारी है।
समझा जाता है कि इसराइल असद के पतन के बारे में आशावादी तो है, पर सतर्क भी है। वह उसके बाद खाली हुए सत्ता के शून्य को भरने की दौड़ पर भी वह बारीकी से नज़र रखना चाहेगा। यानी सीरिया पर नज़रें तो कई देश गड़ाए रहेंगे।
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