श्रीलंका में हुए आम चुनावों में राजपक्षे युग को फिर सत्ता में आने का जनादेश मिला है। 2005 से 2015 तक श्रीलंका पर सख्ती से शासन करने वाले राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की कामयाबी का राज उनके छोटे भाई गोतबया राजपक्षे ही थे जिन्होंने रक्षा सचिव और सुरक्षा बलों के मुखिया के तौर पर श्रीलंका पर निरंकुश शासन किया और तमिल अलगाववाद को बेरहमी से कुचलने में कामयाबी पाई। इस दौरान उन्होंने श्रीलंका के मुसलिम अल्पसंख्यकों पर भी कहर ढाए, इसलिये गत सप्ताह सम्पन्न हुए इन चुनावों में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों ने साजित प्रेमदासा को वोट दिये। कोलम्बो में सात महीने पहले चर्च पर हुए आतंकवादी हमलों के पीछे मुसलिम कट्टरपंथियों का हाथ होने की वजह से भी गोतबया राजपक्षे को चुनावी हवा अपने पक्ष में करने में मदद मिली।
क्या भारत के लिए चुनौती है श्रीलंका में राजपक्षे युग की वापसी?
- दुनिया
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- 18 Nov, 2019

भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती श्रीलंका के साथ भरोसे का रिश्ता बनाने और चीन के साथ राजपक्षे सरकार की नजदीकियों का असर भारत के सुरक्षा हितों पर नहीं पड़ने देने की होगी।
गोतबया राजपक्षे के राष्ट्रपति का चुनाव जीतने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें फ़ोन कर बधाई दी है और भावी राष्ट्रपति ने भी भरोसा दिलाया है कि वह भारत के साथ रिश्तों को प्राथमिकता देंगे। लेकिन भारत के सामरिक हलकों में गोतबया राजपक्षे के इतिहास के साथ उनके चुनाव पूर्व उस बयान को जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि वह राष्ट्रपति का चुनाव जीते तो चीन के साथ पुराने रिश्ते फिर बहाल करेंगे, को भी याद किया जा रहा है।