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चुनाव अभियान में रोड़ा बना ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग!

अब तक केवल दो अमेरिकी राष्ट्रपतियों के ख़िलाफ़ अमेरिकी कांग्रेस में महाभियोग चलाया गया। 1868 में एंड्रू जॉनसन और 1998 में बिल क्लिंटन के ख़िलाफ़। लेकिन अब तक किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा पद से हटाया नहीं गया है।

एंड्रू जॉनसन के विरुद्ध आरोप था कि उन्होंने तत्कालीन रक्षा सचिव एडविन स्तेंटन को हटाकर उनकी जगह मेजर जनरल लोरेंजो थॉमस को नियुक्त करने का प्रयास किया और अंततः उन्होंने जनरल उलिसिस ग्रांट को अंतरिम रक्षा सचिव नियुक्त किया। ऐसा करके राष्ट्रपति ने 1867 में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित निश्चित कार्यकाल क़ानून यानी टेन्योर ऑफ़ ऑफ़िस एक्ट का उल्लंघन किया।

बिल क्लिंटन के विरुद्ध आरोप यह था कि उन्होंने पाउला जोंस द्वारा दाखिल यौन अपराध के मुक़दमे में अपने, पौला जोंस और मोनिका लेविंस्की के संबंधों को लेकर झूठ बोला और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास किया।

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इसके अलावा अब तक दो अमेरिकी राष्ट्रपतियों को अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन ‘हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स’ में महाभियोग से सम्बंधित जाँच का सामना करना पड़ा। वे हैं, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प।

संवैधानिक प्रक्रिया जटिल

अब तक किसी भी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा इसलिए पद से नहीं हटाया जा सका है कि क्योंकि अमेरिकी संविधान में महाभियोग के पारित होने की प्रक्रिया बड़ी ही जटिल है।

अमेरिकी संविधान के अनुसार ‘राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और अन्य कोई सरकारी अधिकारी’ को ‘देशद्रोह, रिश्वतखोरी या अन्य किसी गंभीर अपराध’ में दोषी सिद्ध होने पर पदमुक्त किया जा सकता है।

हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स का कोई भी सदस्य या यह सदन स्वयं ही महाभियोग की प्रारंभिक जाँच का प्रस्ताव ला सकता है। सदन की न्यायिक जाँच समिति इस बात की पड़ताल करती है कि महाभियोग का ज़रूरी आधार बनता है या नहीं और फिर इसे सदन के समक्ष पेश किया जाता है। 435 सदस्यों वाले सदन में इसे पारित होने के लिए मात्र साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है।

यदि हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स से यह पारित हो गया तो फिर महाभियोग का मुक़दमा उच्च सदन यानी ‘सीनेट’ में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में चलता है।

यूँ समझ लें कि सीनेट एक ज्यूरी का काम करती है और महाभियोग पारित करने के लिए इसके 100 सदस्यों में से दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत होती है।

ट्रम्प के ख़िलाफ़ आरोप कितने गंभीर?

  • ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की को फ़ोन करके ओबामा शासनकाल में पूर्व उप-राष्ट्रपति जो बिडेन और उनके पुत्र हंटर बिडेन की जाँच करने का दबाव डाला।
  • हंटर बिडेन उसी दौरान यूक्रेन की बड़ी गैस कंपनी ‘बरीस्मा’ के निदेशक मंडल में शामिल थे।
  • रोचक तथ्य यह भी है कि अमेरिका ने उसी समय यूक्रेन को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर रोक लगा दी, जब ट्रम्प ने जाँच का अनुरोध किया था।
  • और जैसा कि हैरानी भरा आरोप है कि यदि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने जाँच की हामी भर दी तो यह सहायता बहाल हो जाएगी, जैसा कि हुआ भी।

ज्ञात हो कि जो बिडेन आजकल डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ़ से 2020 में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में संभावित उम्मीदवार होने के लिए धुआँधार प्रचार कर रहे हैं।

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महाभियोग की शुरुआत

जैसे ही ये बातें उजागर हुईं, अमेरिकी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने 24 सितम्बर 2019 को जाँच प्रस्ताव पेश कर दिया।

इसके बाद सिलसिलेवार ढंग से गवाहों और व्हाइट हाउस के अधिकारियों के बयान आने लगे और चूँकि अब वहाँ चुनावी मौसम शुरू हो चुका है इसलिए स्वाभाविक रूप से यह मुद्दा एक राजनीतिक बवंडर की शक्ल में बदल गया।

अभी विगत 1 नवंबर 2019 को हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स ने 196 के मुक़ाबले 232 मतों से महाभियोग का प्रस्ताव पारित करके यह निर्णय लिया कि अब इस मामले की खुली सुनवाई सदन की इंटेलिजेंस समिति करेगी। इसका सीधा-सा अर्थ है कि चुनावी माहौल में अब राष्ट्रपति को मात्र विपक्ष का ही नहीं, बल्कि इस सुनवाई से होने वाले दुरूह खुलासों का भी सामना करना पड़ेगा।

ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल में भी इन आरोपों से जूझ चुके हैं कि उनके पिछले चुनाव में रूस ने दख़लअंदाज़ी की थी और अब फिर से पूर्वी यूरोप के देश यूक्रेन को साथ लेकर अपने राजनीतिक विरोधियों को निपटाने के आरोप उनके लिए महँगा पड़ सकता है। शीत युद्ध भले ही ख़त्म हो गया हो परन्तु अमेरिकी जनता अब भी रूस और पूर्वी यूरोप के देशों की गतिविधियों को लेकर सशंकित रहती है।

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जब ट्रम्प आपा खो बैठे

ट्रम्प एक सफल निर्माण क़ारोबार और होटल व्यापार से जुड़े रहे हैं और इस धंधे को उन्होंने जिस अकड़ के साथ किया उसका ज़िक्र उन्होंने अपनी ख़ुद की किताब ‘आर्ट ऑफ़ द डील’ में किया भी है और यह किताब उनके व्यक्तित्व की झलक देती ही है।

बहरहाल, महाभियोग के इस प्रस्ताव के पारित होते ही ट्रम्प आपा खो बैठे और उन्होंने एक के बाद एक ताबड़तोड़ बयानबाज़ी की। अपने 'अहं ब्रह्मास्मि' स्वभाव के वशीभूत होकर उन्होंने कहा कि उन्होंने बुश वंश, क्लिंटन वंश और ओबामा को हराया है और अब यह महाभियोग क्या है?

‘आक्रमण ही सर्वाधिक उपयुक्त सुरक्षा है’- इसको अपना हथियार मानने वाले ट्रम्प यहीं नहीं रुके, उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी पर भी ज़बरदस्त हमला बोलते हुए कहा कि अगर चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत होती है तो अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी और शेयर बाज़ार डूब जाएगा।

अब आगे क्या?

महाशक्तिशाली मीडिया से उनकी भिड़ंत पहले ही हो चुकी है, दक्षिणपंथी अति राष्ट्रवाद के अतिरेक में कई देशों से सम्बन्ध पहले ही खटाई में पड़े हैं और अब उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के कई प्रभावशाली नेता उनकी नेतृत्व शैली से असंतोष ज़ाहिर कर चुके हैं।

इन सबसे ट्रम्प बौखला गए हैं और उनकी ताबड़तोड़ आक्रामक बयानबाज़ी से साफ़ है कि महाभियोग का अंतिम नतीज़ा चाहे जो हो, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान में उनका रास्ता काँटों से भरा है। अमेरिकी जनता अपने लिए निर्णायक नेतृत्व चाहती है, न कि ऐसा नेतृत्व जो हड़बड़ी में काम करके अपनी पीठ ख़ुद ही थपथपाते रहे।

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रमेश मोहन श्रीवास्तव
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