दरअसल, हमास की जड़ें मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ी हुईं हैं। 1928 में मिस्र के इस्लामवादी हसन अल-बन्ना ने मुस्लिम ब्रदरहुड को स्थापित किया। उस समय फिलिस्तीन ब्रिटेन द्वारा शासित था। ब्रदरहुड ने 1930 के दशक में फिलिस्तीन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। बन्ना ने अपने भाई अब्द अल-रहमान अल-बन्ना को फ़िलिस्तीन के मुसलमानों के बीच राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन छेड़ने के लिए भेजा। यानी मुस्लिम ब्रदरहुड फिलिस्तीन पहुंच गया। लेकिन 1964 में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) स्थापित हुआ। 1967 में इज़राइल ने जॉर्डन नियंत्रित वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम और मिस्र नियंत्रित ग़ज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद पीएलओ ने पूरे फिलिस्तीन को आज़ाद कराने की कसम खाई। पीएलओ ने इज़राइल के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया। फिलिस्तीन में मुस्लिम ब्रदरहुड राजनीति से दूर था, लेकिन उसका नेतृत्व पीएलओ के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की आलोचना करता रहा।
इजराइल का खेल
इजराइल की नजर मुस्लिम ब्रदरहुड पर थी। इज़राइल ने कब्जे वाले क्षेत्रों में ब्रदरहुड नेतृत्व से संपर्क स्थापित किया। ब्रदरहुड के मौलवी शेख अहमद यासीन ने 1973 में अल-मुजम्मा अल-इस्लाम (इस्लामिक सेंटर) की स्थापना की। वो विकलांग थे और आधे अंधे भी थे। इज़राइल ने यासीन के इस्लामिक केंद्र को दान दिया और फिर एक संगठन के रूप में मान्यता दी। इससे यासीन को धन जुटाने, मस्जिद बनाने और इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ ग़ज़ा स्थापित करने की अनुमति मिली।
हमास का उदयः 1987 में हमास पहला इंतिफादा शुरू होने के बाद बना। 8 दिसंबर, 1987 को ग़ज़ा में एक मामूली ट्रैफिक जाम के दौरान हुई घटना में कई फिलिस्तीनी मारे गए। इस घटना का जिम्मेदार एक इजराइली ड्राइवर था। इस घटना से फिलिस्तीनियों का गुस्सा फूट पड़ा, जो पीएलओ के आंदोलन से ऊब चुके थे। इजराइल के कब्जे वाले क्षेत्र बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू हो गई। पीएलओ ने अपने समर्थकों से इंतिफादा में शामिल होने का आह्वान किया। ब्रदरहुड को भी इस संघर्ष में शामिल होने का अवसर मिला। 14 दिसंबर को यासीन के ब्रदरहुड ने एक बयान जारी किया, जिसमें फिलिस्तीनियों से इजराइली कब्जे के खिलाफ खड़े होने के लिए कहा गया। जनवरी 1988 में ब्रदरहुड ने हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया (इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन) स्थापित किया। इसका संक्षिप्त नाम हमास है, जिसका अरबी में अर्थ है "उत्साह।" हमास को अलग तरह का काम सौंपा गया। एक साल बाद ही 1989 में, हमास ने अपना पहला हमला किया। उसने दो इजराइली सैनिकों का अपहरण कर हत्या कर दी। इज़राइल ने समूह पर कार्रवाई की, यासीन को गिरफ्तार कर लिया और उसे आजीवन कारावास की सजा दी।
फिलिस्तीन की आजादी की मांग उठाई हमास ने
फिलिस्तीन में अराफात के पीएलओ का आंदोलन अपने ढंग से चलता रहा। लेकिन हमास खूंखार होता जा रहा था। 19 अगस्त, 1988 को हमास ने एक चार्टर जारी किया जिसके जरिए जायनिस्ट (Zionist) हुकुमत का विरोध करने की बात कही गई। हमास ने चार्टर में कहा कि फ़िलिस्तीन "एक इस्लामी वक्फ भूमि है।" इस जमीन को आजाद कराने के लिए "जिहाद के अलावा फ़िलिस्तीन समस्या का कोई समाधान नहीं है।" उसने कहा कि सभी शांति पहल "समय की बर्बादी और बेतुके काम" हैं। इसी बीच पीएलओ फिलिस्तीनी मुद्दे के समाधान की तलाश में शांति प्रयासों में शामिल होने के लिए आगे बढ़ा, तो हमास ने सख्त विरोध किया।हमास ने ओस्लो समझौते का विरोध किया। ओस्लो समझौते के तहत इजराइल के कब्जे वाले क्षेत्रों के भीतर सीमित शक्तियों के साथ फिलिस्तीनी प्राधिकरण के गठन की अनुमति मिल गई। जब पीएलओ ने इज़राइल को मान्यता दी, तो हमास ने दो-देश समाधान को अस्वीकार कर दिया और पूरे फिलिस्तीन को आजाद करने की कसम दोहराई। इसने कई समूहों के साथ एक संगठन बनाया है। जिसमें इज़्ज़ अद-दीन अल-क़सम ब्रिगेड शामिल हैं। अक्टूबर 1994 में, ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर होने के एक साल बाद, हमास ने अपना पहला फिदायीन हमला किया, जिसमें तेल अवीव में 22 लोग मारे गए।
हमास ने किए फिदायीन हमले
1990 और 2000 के दशक की शुरुआत में, हमास ने कई आत्मघाती हमले किए। 2000 में, जब दूसरा इंतिफ़ादा भड़का, हमास आगे-आगे था। हमास समर्थकों ने इजराइली सैनिकों के साथ सड़क पर सीधी लड़ाई छेड़ दी। इजराइल ने विरोध को कुचलने के लिए क्रूर बल का इस्तेमाल किया। इज़राइल ने टारगेट हत्याओं की नीति अपनाई। मार्च 2004 में, इज़राइल ने ग़ज़ा शहर में हेलीकॉप्टर से दागी गई मिसाइल से शेख यासीन को मार डाला। यासिन के उत्तराधिकारी अब्देल अजीज अल-रंतीसी की अप्रैल 2004 में हत्या कर दी गई। एक अन्य शीर्ष नेता खालिद मेशाल जॉर्डन में मोस्साद के हमले में बच गए। 2005 में, हमास के हिंसक प्रतिरोध का सामना करते हुए, इज़राइल ने एकतरफा रूप से ग़ज़ से बाहर निकलने का फैसला किया।चुनावी कामयाबीः हमास की लोकप्रियता बढ़ती गई। फिलिस्तीनी क्षेत्र में 2006 के चुनावों में, हमास ने 132 सीटों में से 74 सीटें जीतीं, जबकि पीएलओ की रीढ़ फतह पार्टी को केवल 45 सीटें मिलीं। हमास ने अपने चुनाव घोषणापत्र में पहली बार नरमी के संकेत दिखाए। इसने इज़राइल के अंत का आह्वान छोड़ दिया, जिसका उल्लेख 1988 के चार्टर में किया गया था। हमास ने कहा कि अब उसकी पहली प्राथमिकता फ़िलिस्तीनियों के लिए स्थिति को बदलना है। हमास ने सरकार बनाई, लेकिन उसे इज़राइल और अधिकांश अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के विरोध का सामना करना पड़ा।
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