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बलूचिस्तान विद्रोह की खास वजहें क्या हैं, जाफर एक्सप्रेस पर ये पहला हमला नहीं

पाकिस्तान में जाफ़र एक्सप्रेस हाइजैक घटना पूरी दुनिया में सुर्खियों में है। पाकिस्तान सेना का दावा है कि बंधक नागरिकों को छुड़ा लिया गया है। हालांकि ऑपरेशन बुधवार को भी जारी रहा। इस घटना में कई आतंकवादियों को मार दिया गया है। बीएलए के द्वारा इस  घटना को अंजाम दिए  जाने के बाद बलूचिस्तान विद्रोह अचानक से सुर्खियों में आ गया है। हालांकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने इस घटना का आरोप भारत पर लगाया है। उनका कहना है कि ट्रेन हाईजैक में भारत का हाथ है। खैर, भारत-पाकिस्तान के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं। यहाँ जानना जरूरी है कि बलूचिस्तान में विद्रोह की प्रमुख वजहें क्या हैं? बीएलए क्या है?
अफ़ग़ानिस्तान से सटे पाकिस्तान के इस इलाके में लंबे समय से अलगाववादी आंदोलन चल रहा है। यह आंदोलन समय-समय पर अलग-अलग कारणों से भड़कता रहा है। बलूचिस्तान के अलगाववादी चाहते हैं कि इसे अलग देश घोषित कर दिया जाए। यही वजह है कि पाकिस्तान सेना और बलूचिस्तान के अलगाववादियों के बीच संघर्ष चलते रहते हैं।
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बलूचिस्तान संघर्ष की नींव

इस संघर्ष की नींव भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय की मानी जाती है। उस समय बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राज्य था। 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने सैनिक कार्रवाई के द्वारा बलूचिस्तान को अपने अधिकार में ले लिया। इसके बाद से ही बलूचिस्तान के कुछ नागरिकों में असंतोष की शुरुआत हो गई। स्थानीय बलूच नेता इस थोपे हुए को विलय को स्वीकार नहीं कर पाए। इसके साथ ही विद्रोह की पहली लहर शुरू हो गई।
पहला बलूच विद्रोह 1948 में ही मीर अहमद यार खान के समय में शुरू हुआ था। इस पर तुरंत काबू पा लिया गया। फिर लगातार 1958-59, 1962-63 और फिर 1973-77 में बलूच विद्रोह हुए जिसे पाकिस्तान की सेना ने हर बार सख्ती से दबा दिया। 2000 के आस-पास बलूच विद्रोह और भी तेज हो गया।
इस बार विद्रोहियों की मांग थी कि बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय नागरिकों का अधिकार हो। यह विद्रोह इलाके में पाकिस्तानी सेना की लगातार उपस्थिति के खिलाफ़ भी था।

बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) की शुरुआत

इसी समय में अलगाववादी संस्था बलूच लिबरैशन आर्मी यानि बीएलए भी सिर उठाने लगी थी। माना जाता है कि  इस बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) की जड़ें 1973-77 के विद्रोह से जुड़ी हैं। उस समय पाकिस्तान की सेना ने विद्रोही बलूच नेताओं के खिलाफ बड़ा सैन्य अभियान चलाया था। अभियान से डरकर हजारों बलूच युवा अफगानिस्तान भाग गए थे। जहां उन्हें अलग-अलग देशों का समर्थन मिला।
1980 और 1990 के दशक में BLA बतौर संगठन निष्क्रिय पड़ा हुआ था। 2000 के बाद इसमें जान फूंकी गई। 2004 में यह संगठन पूरी तरह से उभरकर सामने आया और पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर बड़े हमले करने लगा। BLA ने अपने पहले हमले 2004 में बलूचिस्तान के गश्तरी इलाके में किए, जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी सेना की चौकियों को निशाना बनाया।
2005-2006 में BLA ने गैस पाइपलाइनों और रेलवे ट्रैकों पर हमले किए, जिससे पाकिस्तान को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। 2006 में बलूच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या के बाद BLA की गतिविधियों में और तेजी आई।
2010 के बाद BLA अधिक आक्रामक हो गई। इसने पाकिस्तानी सेना, चीनी नागरिकों और सरकारी दफ्तरों को सीधे निशाना बनाना शुरू कर दिया। बाद कए सालों में की अन्य आतंकवादी संगठनों की तर्ज पर BLA ने आत्मघाती हमलों की शुरुआत भी की। हालिया सालों में इन आत्मघाती हमलों में हमले भी किए हैं, जिनमें चीनी इंजीनियरों और पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया। इन हमलों में ग्वादर पोर्ट पर चीनी इंजीनियरों पर हमला, कराची स्टॉक एक्सचेंज पर हमला और पाकिस्तान सेना पर कई घातक हमले शामिल हैं। पाकिस्तान सरकार ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है।
बीएलए का सबसे ताजा हमला जाफ़र एक्स्प्रेस को हाईजैक किया जाना है। जाफ़र एक्स्प्रेस को हाईजैक किए जाने की घटना को विशेषज्ञों द्वारा केवल आतंकवादी घटना की तरह नहीं देखा जा रहा है। इसे एक रणनीतिक कदम की तरह भी देखा जा रहा है। गौरतलब है कि जाफर एक्सप्रेस पाकिस्तान की प्रमुख रेलवे सेवाओं में से एक है। यह क्वेटा से पेशावर के बीच चलती है और पाकिस्तान के अलग-अलग इलाकों बलूचिस्तान, पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा को जोड़ती है। यही वजह है कि इस पर हमला करना सिर्फ एक आतंकी कार्रवाई नहीं बल्कि एक बड़ा रणनीतिक संदेश होता है। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और अन्य बलूच विद्रोही संगठनों ने कई बार इस ट्रेन को निशाना बनाया है। क्यों बनाया गया है इस ट्रेन को निशाना, उसकी भी एक पूरी कहानी है।
जाफ़र एक्सप्रेस के बारे में आपको बता दें, इस ट्रेन में न केवल बलूचिस्तान से यात्रा करने वाले आम नागरिक तो होते ही हैं। यह सरकारी अधिकारियों, सैनिकों और सुरक्षा बलों के सदस्यों के आने-जाने का भी मुख्य स्रोत है। इस ट्रेन पर हमले से पाकिस्तान की रेलवे और आर्थिक ढांचे को झटका लगने की संभावना बनती है। इससे बलूचिस्तान और अन्य प्रांतों के बीच होने वाला ट्रेड, सप्लाई और कम्युनिकेशन प्रभावित होता है। साथ ही BLA और अन्य विद्रोही गुट इस ट्रेन पर हमले को पाकिस्तान की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध का प्रतीक मानते हैं। माना जा रहा है कि जाफ़र एक्सप्रेस पर यह ताजा हमला भी इसी विरोध का प्रतीक था।
आजादी की मांग के अलावा और किन वजहों से बीएलए जैसी संस्था पाकिस्तान सरकार के खिलाफ़ है? इसके की कारण बताये जाते हैं। जैसे- 
  • बलूच जनता को पाकिस्तान की सत्ता में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। इसे राजीनीतिक उत्पीड़न करार दिया गया।
  • बलूचिस्तान पाकिस्तान के सबसे समृद्ध इलाकों में से है, लेकिन कई स्थानीय नागरिक और विद्रोही शिकायत करते हैं कि इलाके की समृद्धि का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला।
  • बलूचिस्तान में मौजूद गैस  और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर बलूचों का कोई अधिकार नहीं
  • इसके अलावा चीन-पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर (CPEC) और ग्वादर बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट बलूच अलगाववादियों के लिए आग में घी का काम करते हैं। स्थानीय नेताओं और अलगाववादियों का आरोप है कि चीन बलूचिस्तान की संपदा का दोहन करना चाहता है।
  •   बलूच लोगों ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि उनकी भाषा और संस्कृति को दबाने की कोशिशें होती रहती हैं। इस वजह से विरोध और भड़कता है।
वर्तमान समय में पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों पर बलूच कार्यकर्ताओं की हत्या करने, उन्हें जबरन गायब करने जैसे संगीन आरोप लगते रहते हैं।  यहाँ जिक्र करना जरूरी है कि बलूचिस्तान में हिंसा के चलते पाकिस्तानी सरकार के लिए यह क्षेत्र एक स्थायी संकट बना हुआ है।इसे न केवल पाकिस्तान की स्थिरता के लिए संकट माना जा रहा है बल्कि इसका असर क्षेत्रीय राजनीति पर भी पड़ता है। बलूच नेता गाहे-बगाहे स्वतंत्रता की मांग उठाते रहे हैं। चीन की इलाके में मौजूदगी से ये मामला वैश्विक स्तर का हो गया है।  इस मामले में पाकिस्तान अक्सर भारत पर भी आरोप लगाता रहा है। पाकिस्तान का कहना है कि बलूचिस्तान विद्रोह में भारत की भूमिका है।
इन तमाम आरोपों के बीच यह देखना जरूरी है कि किस तरह पाकिस्तान बलूचिस्तान की समस्या को सुलझा पाता है? क्या और अधिक आक्रामक होंगे बलूच विद्रोही या फिर शांति का कोई उपाय निकल पाएगा?
(रिपोर्टः अणु शक्ति सिंह, संपादनः यूसुफ किरमानी)
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