क्या इस बार बीजिंग को हॉन्ग कॉन्ग के आगे झुकना होगा? चीन का हिस्सा फिर से बन जाने के 22 साल बाद बाद भी क्यों अब तक न तो चीनी सरकार न ही कम्युनिस्ट पार्टी हॉन्ग कॉन्ग पर अपना दबदबा बना पाई है? आख़िर क्यों इस द्वीप के लोग बात-बात पर भड़क जाते हैं और बीजिंग के ख़िलाफ़ बग़ावत पर उतारू हो जाते हैं। ये ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर बहुत आसान नहीं है, पर एक बार फिर उठ रहे हैं। हॉन्ग कॉन्ग में रहने वाले किसी भी आदमी को चीन ले जाकर मुक़दमा चलाने से जुड़े विधेयक के विरोध में लाखों लोग सड़कों पर उतर चुके हैं। रविवार को छुट्टी होने की वजह से एक बार लाखों लोगों के विरोध में उतरने की पूरी आशंका है। इसे रोकने के लिए हॉन्ग कॉन्ग प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है।
मीडिया रोपोर्टों के मुताबिक़, प्रदर्शन का आयोजन करने वालों को दस लाख लोगों के शिरकत करने की उम्मीद है। इसके पहले बुधवार को वहां भारी भीड़ उमड़ी थी, अनुमान है कि इसमें तीन लाख लोगों ने भाग लिया था। इसके पहले बीते रविवार को इस मुद्दे पर पहली बार लोग सड़कों पर उतरे थे, समझा जाता है कि उसमें पाँच लाख से अधिक लोगो ने भाग लिया था।
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आँसू गैस, रबड़ की गोलियाँ
प्रशासन ने बुधवार को प्रदर्शन से निपटने के लिए 5 हज़ार से अधिक पुलिस वालों को तैनात कर रखा था, जिन्होंने आँसू गैस के 150 से ज़्यादा गोले छोड़े और रबड़ की गोलियाँ भी दागीं। कुछ लोग घायल हुए हैं और कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है।अफ़ीम युद्ध, नानकिंग समझौता
हॉन्ग कॉन्ग पहले भी चीन का ही हिस्सा था। चीन के व्यापार पर कब्जा करने की कोशिश के तहत ब्रिटेन ने उस पर 1839, 1842 और 1860 में हमला बोला और युद्धा हुआ। इसे अफ़ीम युद्ध कहा जाता है। 1842 के अफ़ीम युद्ध के बाद दोनों पक्षों में नानकिंग समझौता हुआ, जिसके तहत चीन के मिंग साम्राज्य ने ब्रिटेन को लीज पर हॉन्ग कॉन्ग दे दिया।यह लीज़ 1997 में ख़त्म हुआ। इसके पहले तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने 1984 में ही यह प्रस्ताव रखा था कि इस लीज़ को 50 साल के लिए और आगे बढ़ा दिया जाए। उन्होंने बाद में चीन का दौरा किया और तत्कालीन चीनी प्रमुख नेता देंग श्यागो पिंग के साथ मुलाक़ात भी की। लेकिन देंग ने उनकी एक न सुनी और 1997 में ब्रिटेन ने चीन को हॉन्ग कॉन्ग वापस कर दिया।
ब्रिटेन-चीन में इस पर सहमति बनी कि हॉन्ग कॉन्ग चीन का हिस्सा तो बन जाएगा, पर अगले 50 साल तक वह स्वायत्त क्षेत्र रहेगा, वहाँ चीनी व्यवस्था लागू नहीं की जाएगी, हॉन्ग कॉन्ग के अपने नियम क़ानून होंगे, अपनी विधायिका होगी।
क़रार में यह भी कहा गया कि 50 साल की मियाद ख़त्म होने के बाद वहाँ जनमत संग्रह कराया जाएगा, जिसे दोनों पक्ष मान लेंगे। चीन ने इसे ‘एक देश दो प्रणाली’ का नाम दिया। हॉन्ग कॉन्ग आज भी स्पेशल ऑटोनॉमस रीजन कहा जाता है।
परस्पर अविश्वास
बीजिंग और हान्ग कॉन्ग दोनों की दिक्क़त यहीं से शुरू होती है। 50 साल का लगभग आधा समय बीत जाने के बावजूद यह टापू आज भी ज़्यादा नहीं बदला है, उसके ज़्यादातर लोग ख़ुद को चीनी नहीं मानते, वे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को संदेह की निगाहों से देखते हैं। चीन अपनी पैठ बनाने में नाकाम है। उसे यह सालता है। इसलिए वह बीच बीच में अपनी पकड़ साबित करने की कोशिश करता रहता है, कभी कभी छोटे-मोटे बदलाव करता है, जो हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को बुरा लगता है।हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को लगता रहता है कि बीजिंग उन पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। वह धीरे धीरे उन्हें निगल जाएगा। बीजिंग को यह आशंका रहती है कि कहीं हॉन्ग कॉन्ग भी ताईवान की तरह उसके हाथ से न निकल जाए।
उइगर का उदाहरण
मौजूदा संकट की जड़ में यह अविश्वास ही है। इसकी वजहें हैं। इस खूबसूरत टापू के लोगों के सामने उइगर लोगों का उदाहरण है। चीन के उत्तर-पश्चिम इलाके शिनजियाँग में बसे उइगर समुदाय के लोगों का कहना है कि वे चीनी नहीं हैं, वे तुर्की मूल के हैं, उनकी संस्कृति, भाषा कुछ भी चीनी नहीं है। वे ख़ुद को पूर्वी तुर्किस्तानी मानते हैं। शिनजियाँग के चीन से अलग होने का आंदोलन चल रहा है, जो कई बार हिंसक हुआ है। बीजिंग के थ्यानअनमन चौक समेत कई जगहों पर आतंकवादी हमले हुए हैं। उनसे जुड़े संगठनों ईस्ट तुर्किस्तान इसलामिक मूवमेंट और ईस्ट तुर्किस्तान लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन को कई देशों ने आतंकवादी घोषित कर रखा है। चीन पर आरोप लगाया गया है कि उसने 5 लाख से अधिक उइगर मुसलमानों को शिविरों में रखा है जो एक तरह से जेल हैं।पूर्व कौंसिल सदस्यों का विरोध
हॉन्ग कॉन्ग शिनजियाँग नहीं है न ही यहाँ के लोग उइगर। लेकिन हॉन्ग कॉन्ग की मुख्य कार्यकारी कैरी लिम को बीजिंग समर्थक माना जाता है, उन्हें चीन सरकार ने ही चुन कर वहाँ भेजा है। इस विधेयक के पीछे उनका दिमाग ही समझा जाता है। 22 पूर्व सरकारी कर्मचारियों और लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्यों ने प्रशासन की आलोचना की है और कहा है कि इस विधेयक को रोक दिया जाए। समझा जाता है कि लिम इस पर राज़ी हो गई हैं।दूसरी ओर, अमेरिकी हाउस ऑफ़ रीप्रेजेन्टेटिव्स के कुछ सदस्यों ने, जिनमें दोनों ही दलों के लोग शामिल हैं, एक प्रस्ताव लाने की तैयारी की है। इस प्रस्ताव में कहा जा सकता है कि अमेरिकी प्रशासन हॉन्ग कॉन्ग को व्यापार में किसी तरह की रियायत न दे। पहले से ही अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध में उलझे चीन ने चेतावनी दी है कि इस तरह का उकसावा न करे। लेकिन कैरी लिम इस पर राजी हो गई हैं कि विवादित विधेयक को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए।
कैरी लिम ने इस विधेयक को वापस लेने की घोषणा अब तक नहीं की है। इसलिए रविवार को प्रदर्शन होना तय है। इस प्रदर्शन को प्रशासन कड़ाई से रोकेगा, यह भी तय है। पर यह भी साफ़ है कि कोई बहुत बड़ी कार्रवाई नहीं की जाएगी, पुलिस हल्की कार्रवाइयाँ और छिटपुट गिरफ़्तारियाँ ही करेगी। लेकिन बीजिंग और हॉन्ग कॉन्ग के लोगों के बीच का यह द्वंद्व चलता रहेगा, यह स्पष्ट है।
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