loader

यूपी: श्रम क़ानूनों के ख़त्म होने से मज़दूरों के साथ होगा ग़ुलामों जैसा सलूक

आप लोगों ने लॉकडाउन के दौरान वायरल हुए बहुत सारे वीडियो में देखा होगा कि देश भर में मजदूर इस समय किन-किन परेशानियों से गुज़र रहे हैं। वे औरतों, छोटे-छोटे बच्चों को लिए सैकड़ों मील पैदल चलकर अपने घरों को जाने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं। न जाने कितने मज़दूर भूख और प्यास के कारण बीच रास्तों में ही दम तोड़ चुके हैं और कितनों ने आत्महत्या कर ली है।   

वे घुटन से भरे सीमेंट के मिक्सर में बंद होकर सफर कर रहे हैं। कर्नाटक और गुजरात सहित कई राज्यों में उन्हें बंधक बनाया जा रहा है और उनके साथ जानवरों जैसा सलूक किया जा रहा है। 

ताज़ा ख़बरें

मगर यदि आप सोच रहे हैं कि मज़दूरों के अपने राज्यों में पहुँचने के साथ उनकी समस्याओं का अंत हो जाएगा तो आप ग़लत हैं। इसके विपरीत अभी तो उनकी समस्याओं का, परेशानियों का सिलसिला शुरू ही हुआ है। राज्य सरकारों के पिटारे में उनके लिए ऐसी-ऐसी योजनाएं हैं कि उन्हें जानने के बाद आप सिहर जाएंगे। ऐसा लगता है कि मानो सरकारों को बस इसी मौक़े की तलाश थी, कि कब मज़दूर उनके शिकंजे में फँसें और कैसे वे उनके जिस्मों में बचे खून की आख़िरी बूँद भी निचोड़ लें। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसकी झलक दिखला दी है। 

भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार एक ऐसा अध्यादेश लाई है जिससे मज़दूर सौ साल पहले वाले युग में चले जाएंगे। यानी वे ग़ुलामों वाली स्थिति में पहुँच जाएंगे। उन्हें काम देने वाले लोग उनके साथ ग़ुलामों जैसा सलूक करने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगे।

छिन जाएंगे मज़दूरों के अधिकार

इस अध्यादेश के लागू होने के बाद केवल चार क़ानूनों को छोड़कर सारे श्रम क़ानून तीन साल के लिए स्थगित हो जाएंगे। इसका नतीजा यह होगा कि जो अधिकार मज़दूरों ने लंबी लड़ाई के बाद हासिल किए थे उनसे वे वंचित हो जाएंगे। उनका ग़ैर अंधाधुंध शोषण किया जाएगा और उसके ख़िलाफ़ कोई सुनवाई नहीं करेगा। 

स्थगित होने वाले क़ानूनों की सूची में एक क़ानून मज़दूरों के काम करने के लिए स्वस्थ वातावरण और सुरक्षा मुहैया कराने से संबंधित है। अब सोचिए कि अगर फैक्ट्री मालिकों को इससे छूट मिल गई तो वे मज़दूरों की परवाह ही नहीं करेंगे और उन्हें अमानवीय तथा ख़तरनाक़ परिस्थितियों में काम करने के लिए बाध्य कर देंगे। जब यह कानून था तब भी वे ऐसा कर ही रहे थे, मगर एक डर था जिसकी वजह से वे थोड़ा-बहुत ख़याल रख लेते थे। मगर अब तो उन्हें पूरी आज़ादी मिल जाएगी। 

मज़दूर संगठनों के अधिकार भी ख़त्म

स्थगित किए जाने वाले एक दूसरे क़ानून का संबंध मज़दूर संगठनों, ठेके पर रखे जाने वाले कर्मचारियों और प्रवासी मज़दूरों से है। इस क़ानून को स्थगित करने का मतलब है कि अब ठेके पर काम करने वाले और प्रवासी मज़दूर मालिकों की मेहरबानियों पर निर्भर हो जाएंगे। चूँकि मज़दूर संगठनों के अधिकारों को भी इससे ख़त्म कर दिया गया है इसलिए वे इन मज़दूरों के लिए लड़ भी नहीं सकेंगे। 

योगी सरकार ने इन क़ानूनों को बदलकर उद्योग-धंधों को शानदार तोहफ़ा दे दिया है। पिछले तीस साल से उद्योग-धंधों के मालिकान केंद्र सरकार से माँग कर रहे थे कि उन्हें अपने हिसाब से काम करने दिया जाए यानी छँटनी से लेकर मज़दूरी तय करने तक के अधिकार उन्हें दे दिए जाएँ और मज़दूर संगठनों को बैन कर दिया जाए। योगी सरकार ने एक झटके में यह काम कर डाला है। 

उधर, मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान ने भी ठीक ऐसा ही क़दम उठाते हुए एक हज़ार दिनों के लिए मज़दूरों को लूटने की खुली छूट दे दी है। उत्तर प्रदेश की तरह उनकी भी यही दलील है कि वे निवेश के लिए अनुकूल वातावरण बनाने तथा मज़दूरों के लिए रोज़गार संभावनाओं को बढ़ाने के लिए ऐसा क़दम उठा रहे हैं। 

अब आशंका यह है कि दूसरे राज्यों की सरकारें भी इसी राह पर चल पड़ेंगी। ख़ास तौर पर बीजेपी शासित राज्यों में तो ऐसा होने की पूरी आशंका है।

बीजेपी का वोट बैंक मुख्य रूप से ब्राह्मणों और बनियों को माना जाता है। बीजेपी ने बनियों को यह सौगात देकर खुश कर दिया है। हिंदुत्व की राजनीति के कारण ब्राह्मणवादी पहले से ही बम-बम हैं। 

ज़ाहिर है कि मज़दूरों को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा हट जाने से बाक़ी सुरक्षाएं भी कमज़ोर पड़ जाएंगी। मज़दूर संगठन नहीं होने से उनकी आवाज़ उठाने वाला और उनके लिए लड़ने वाला कोई नहीं होगा। उनके पास अपनी इतनी ताक़त नहीं होती कि वे शक्तिशाली मालिकों से लड़ सकें। मालिकों के पास धनबल के साथ-साथ बाहुबल भी होता है। यही नहीं, उनके साथ पुलिस, प्रशासन और सरकार भी खड़ी होती है। 

यूपी और एमपी की सरकारों ने फिलहाल महिलाओं और बच्चों से जुड़े क़ानूनों को नहीं छेड़ा है, मगर वे कभी भी कुछ कर सकते हैं। आख़िरकार मज़दूरों को ग़ुलाम बनाने की दिशा में यह उनका आख़िरी क़दम नहीं है। वे धीरे-धीरे उन पर शिकंजा कसती जाएंगी ताकि उद्योगपतियों को खुश कर सकें। 

उत्तर प्रदेश से और ख़बरें

यूपी और एमपी की सरकारों ने फिलहाल महिलाओं और बच्चों से जुड़े क़ानूनों को नहीं छेड़ा है, मगर वे कभी भी कुछ कर सकते हैं। आख़िरकार मज़दूरों को ग़ुलाम बनाने की दिशा में यह उनका आख़िरी क़दम नहीं है। वे धीरे-धीरे उन पर शिकंजा कसती जाएंगी ताकि उद्योगपतियों को खुश कर सकें। 

अदालत में मिलेगी चुनौती 

मज़दूरों की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों का कहना है कि वे अध्यादेश को अदालत में चुनौती देंगे। उनके मुताबिक़ ये अध्यादेश मज़दूरों के मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं और अदालत में नहीं टिक पाएंगे। मगर अदालतों पर अब कोई कैसे भरोसा कर सकता है। ऐसे आरोप हैं कि वे तो ताक़तवरों और सरकारों के हिसाब से चल रही हैं। हाल में रिटायर हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने यह बात दोहराई है। 

ऐसे में लगता यही है कि मज़दूरों पर जुल्म-ओ-सितम की नई दास्तान लिखे जाने की शुरुआत हो गई है और इसके लिए कोरोना संकट से ज़्यादा उपयुक्त मौका भला सरकारों को और कौन सा मिल सकता था। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
मुकेश कुमार
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

उत्तर प्रदेश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें