र्तमान पारिवारिक ढाँचे में तीन हज़ार साल से कोई बदलाव नहीं आया तो अब क्या आएगा? नसों में जो ग़ुलामी उतार दी गई है, उसे कैसे बाहर निकालेंगे? थप्पड़ एक फ़िल्म नहीं, स्त्री के स्वाभिमान का लहूलुहान चेहरा है।
भारतीय समाज में पति का पत्नी को थप्पड़ मार देना मामूली घटना समझी जाती है। अगर महिला इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाये तो रिश्तेदार, मायके वाले तक उसका साथ नहीं देते।