पठान फ़िल्म की कामयाबी क्या महज एक फ़िल्म की कामयाबी है या फिर उस नैरेटिव का जवाब है जो समाज में धर्म की ठेकेदारी कर रहे हैं या जो नफ़रत की दुकान चला रहे हैं ? अब सूचना प्रसारण मंत्री फ़िल्म बहिष्कार संस्कृति की निंदा कर रहे हैं और भारतीय फ़िल्मों के साफ्ट पावर का ज़िक्र कर रहे हैं ? पहले क्यों नहीं किया दखल ?