सरकारी बैंकों के कर्मचारी गुस्से में हैं। बैंक निजीकरण बिल के खिलाफ दो दिन की देशव्यापी हड़ताल का एलान हो चुका है। सरकार कोशिश में है कि हड़ताल न हो। खबर है कि वो फिलहाल बैंक निजीकरण अधिनियम को ठंडे बस्ते में डालने के संकेत भी दे रही है। लेकिन क्या इतना काफी है? सवाल है कि सरकारी बैंकों की भूमिका क्या है? इनके निजीकरण की ज़रूरत क्या है? और बैंकों के निजीकरण यानी सरकारी बैंकों को बेचने या इनका हिस्सा बेचने से किसे फायदा होगा और किसकी कीमत पर फायदा होगा?