अब यह यक़ीन गहरा हो चला है कि हम एक घोर स्त्री विरोधी देश और माहौल में जी रहे हैं। पिछले दिनों जब स्वयंसेवक संघ के एक हिस्से ने संभावित प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के बजाय नितिन गडकरी का नाम उछाला तब से स्त्रियों की दुनिया में खलबली मच गई है। राजनीति में वैसे भी महिलाएँ कम हैं। जो हैं, वे धीरे-धीरे किनारे की जा रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे मीडिया या अन्य क्षेत्रों में उन्हें किनारे लगा दिया जाता है। या उनके ऊपर ग्लास सीलिंग लगा दी जाती है जिससे टकरा-टकरा कर वे लहूलूहान होती हुईं अपने दड़बों में वापस लौट जाती हैं। इससे पुरुषों के लिए सत्ता का मार्ग निष्कंटक हो जाता है।

राजनीति, मीडिया या अन्य क्षेत्रों में महिलाओं को अकसर किनारे लगा दिया जाता है। पुरुष नहीं चाहते कि महिलाएँ उनसे आगे निकलें क्योंकि इससे पुरुषवादी वर्चस्व का अंत हो जाएगा।
इस समय प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार सुषमा स्वराज हो सकती हैं लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति से अनिच्छा जाहिर कर दी और संघ या पार्टी ने भी उनका नाम आगे बढ़ाने में कोई रुचि नहीं ली। उसी वक्त चर्चित लेखिका शोभा डे ने ट्वीट करके सवाल उठाया था - गडकरी क्यों, सुषमा स्वराज क्यों नहीं।