अब यह यक़ीन गहरा हो चला है कि हम एक घोर स्त्री विरोधी देश और माहौल में जी रहे हैं। पिछले दिनों जब स्वयंसेवक संघ के एक हिस्से  ने संभावित प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के बजाय नितिन गडकरी का नाम उछाला तब से स्त्रियों की दुनिया में खलबली मच गई है। राजनीति में वैसे भी महिलाएँ कम हैं। जो हैं, वे धीरे-धीरे किनारे की जा रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे मीडिया या अन्य क्षेत्रों में उन्हें किनारे लगा दिया जाता है। या उनके ऊपर ग्लास सीलिंग लगा दी जाती है जिससे टकरा-टकरा कर वे लहूलूहान होती हुईं अपने दड़बों में वापस लौट जाती हैं। इससे पुरुषों के लिए सत्ता का मार्ग निष्कंटक हो जाता है।