कुम्भ में जूना अखाड़े में लाइट का काम देखने वाले मुल्ला जी महमूद लाइट वाले के साथ ‘सत्य हिंदी’ की विशेष बातचीत
कुम्भ में लाइट का काम देख रहे मुज़फ़्फरनगर के मुल्ला जी महमूद आजकल ख़बरों में हैं। जूना अखाड़े के साथ उनका साथ 22 साल पुराना नाता है। साल 2013 में दंगे का दंश झेलने के बावजूद मुज़फ़्फरनगर के मुल्ला जी कुम्भ में साधुओं के तम्बू रोशन कर रहे हैं। अपने अनुभवों को साझा करते हुए वह कहते हैं-
‘इशा (रात में पढ़ी जाने वाली) की नमाज़ देर तक पढ़ी जाती है। इसमें चार फ़र्ज़ सहित तीन वित्र ज़रूरी होते हैं। सामान्यत: इसमें बीस मिनट से आधे घण्टे का समय लगता है। यही वक़्त रोशनी की ज़रूरत का वक़्त है। बिजली ख़राब हो जाए तो कैम्प में अंधेरा हो जाता है। मैं नमाज़ में होता हूँ और महाराज जी मेरे तम्बू में आ जाते हैं। जब तक मैं नमाज़ पढ़ता हूँ वह खड़े रहते हैं। मेरे सलाम फेरने (नमाज़ पूर्ण होने की एक प्रक्रिया) के बाद वह मेरे नज़दीक आते हैं। मेरे पास बैठकर धीरे से कहते हैं। बिजली ख़राब हो गई है। मैं उनके साथ जाता हूँ। बिस्मिल्लाह (ईश्वर के नाम से शुरू करता हूँ) कहकर काम शुरू करता हूँ।’महमूद बताते हैं, ‘मुस्तक़िल तरीक़े से यह हमारा ग्यारहवाँ कुम्भ है। इससे पहले मैं चार बार हरिद्वार कुम्भ और तीन बार उज्जैन में जा चुका हूँ। जबकि चौथा प्रयाग में चल रहा है।’
76 साल के मुल्ला जी के अनुसार ज़िंदगी के 33 साल इन्हीं आयोजनों में ख़र्च हो गए हैं। साधुओं ने कभी उन्हें यह अहसास नहीं कराया है कि वह उनमें से नहीं हैं।
वह कहते हैं, ‘मेरे ई-रिक्शा पर मुल्ला जी लाइट वाले का बैनर लगा है। यहाँ सब जानते हैं कि मैं मुसलमान हूँ। यहाँ नमाज़ पढ़ता हूँ, सब सहयोग करते हैं। हँसी-मज़ाक होता है। मुहब्बत का माहौल है। कभी किसी ने मुसलमानों पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं की है। कई बार जूना अखाड़े के प्रेमगिरि महाराज ने अपने साथ बैठाकर खाना खिलाया है।’
‘मेरे घर से अच्छा माहौल कुंभ में’
मुल्ला जी महमूद मुज़फ़्फरनगर के सरवट गेट के रहने वाले हैं। यह मुज़फ़्फरनगर के सबसे संवेदनशील इलाक़ा है और दो बड़ी आबादियों को अलग-अलग हिस्से में बाँटता है। मुज़फ़्फरनगर दंगे के दौरान जहाँ जमकर बवाल हुआ था। वहीं मुल्ला जी के इकलौते बेटे की 'मुल्ला जी लाइट वाले' के नाम से दुकान भी है। मुल्ला जी कहते हैं, ‘मुझे अपने घर से अच्छा माहौल कुम्भ में मिलता है। मैं तीन दशक से जूना अखाड़े के साथ हूँ। पहली बार मैं हरिद्वार में उनके संपर्क में आया था उसके बाद हम साथ-साथ हो गए...। मुज़फ़्फरनगर में दंगा सियासतदानों की देन था। साधु-संत तो प्रेम की बात करते हैं। मैं इनके बीच सुरक्षित महसूस करता हूँ।’
और गंगा की पवित्रता भी...
हरिद्वार उज्जैन और प्रयागराज के पिछले 33 सालों के 11 कुम्भ में मुल्ला जी स्नान कर चुके हैं। गंगा के इसी पानी में उन्होंने वुज़ू (नमाज़ से पहले हाथ-पैर और मुँह धोकर पवित्र होने की एक प्रक्रिया) करके हमेशा नमाज़ पढ़ी है। वह कहते हैं, ‘ख़ुदा को मानने के अपने-अपने तरीक़े हैं। सब रास्ते वहीं जाते हैं। मैं नमाज पढ़ता हूँ। वे पूजा करते हैं। मेरी टीम में यहाँ 10 लोग हैं। इसमें मैं अकेला मुसलमान हूँ।’
पिछले कुछ दिनों से मुल्ला जी मीडिया की सुर्ख़ी बने हुए हैं। वह कहते हैं, ‘यहाँ टीवी नहीं चलता। इसलिए लोगों को पता नहीं है। मगर मुझे फ़ोन बहुत आ रहे हैं। इनमें विदेशों से भी कुछ फ़ोन आए हैं।’
कभी स्कूल नहीं गए, पर पढ़ा रहे सौहार्द्र का पाठ
मुल्ला जी महमूद कभी स्कूल नहीं गए। वह दाढ़ी रखते हैं। टोपी पहनते हैं। पैरों में हमेशा हवाई चप्पल पहनते हैं। इनकी शारीरिक क्षमता देखकर आपको यह समझने में भी मुश्किल हो सकती है कि क्या वाक़ई वह 76 साल के हैं। मुल्ला जी कहते हैं, ‘जिंदगी भर मेहनत की है इसलिए शरीर मज़बूत है। अगर आपका हाथ पकड़ लूँ तो छुड़ा नहीं पाओगे।’ साधुओं की संगत उन्हें भाती है। उनसे उनकी गहरी मित्रता हो गई है।
- वह कहते हैं, ‘एकदम अपनापन है। किसी तरह का कोई भेदभाव कभी नहीं हुआ है। मेरे दिल को कोई ठेस पहुँचे ऐसी कोई बात कभी नहीं कही गई है। 1986 में पहली बार जब हरिद्वार में जूना अखाड़े के लोगों ने मुझे अपने टेंट की बिजली ठीक करने के लिए बुलाया था तो प्रेमगिरि महाराज मेरे काम से प्रभावित हुए और मुझे नियमित तौर पर साथ रहने की पेशकश की। मेरे लिए टेंट की व्यवस्था की गई।’
मुज़फ़्फरनगर में हाजी आसिफ़ कहते हैं कि उनके तमाम आयोजनों के काम पिछले 15 साल से वह ही देखते हैं। उनके काम में कभी कोई शिकायत नहीं आई। वह बेहद मेहनतकश और ईमानदार हैं। इंसान का इंसान से भाईचारा ही सबसे अहम बात है। मुल्ला महमूद मियां ने मुज़फ़्फरनगर का सकारात्मक चेहरा दुनिया के सामने पेश किया है।
मुज़फ़्फरनगर में रह रहे उनके इकलौते बेटे मशकूर बताते हैं कि लाखों लोगों की भीड़ के चलते अक्सर उनके फ़ोन का नेटवर्क चला जाता है और वह कई-कई दिन संपर्क से बाहर रहते हैं। मगर हम इससे परेशान नहीं होते। हमें विश्वास है कि अखाड़े के साधु-संत उनको कोई परेशानी नहीं आने देंगे।
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