महामना उदास हैं। नाराज़ हैं, खीझे हुए हैं। मन कर रहा है कि कोई विधर्मी, कोई कांग्रेसी, कोई लिबरल, कोई कम्युनिस्ट कहीं मिल जाए तो उठाकर पटक दें, उसे जी भरके कूटें, गुजराती में मन भर के गरियाएं।
अमृतकाल की विदाई वेला में महामना!
- व्यंग्य/उलटबाँसी
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- 19 Aug, 2024

अब तो लोग पूछने लगे हैं कि अमृतकाल अब और कितने साल, कितने महीने या कितने दिन चलेगा....महामना इससे और भी कुपित हैं। वे पता नहीं क्या-क्या करेंगे अब। मगर भारत भाग्य विधाता तो फ़ैसला ले चुका है।
ज़ाहिर है कि ये हताशा की चरम अवस्था है। इसमें दिन-रात हाथ-पाँव फड़फड़ाते रहते हैं। दिमाग़ में मारपीट के सीन चलते रहते हैं।
पहले भी ये इच्छा होती थी, मगर ठोंकने की इच्छा या ठुकास दूसरी तरह से बुझ जाती थी। अब मॉब लिंचिंग की ख़बरों, ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स के किए से मन नहीं भर रहा। बुलडोजर भी तृप्ति प्रदान नहीं कर रहे।
दरअसल, जब तक हाथ-पाँव की ठीक से सिंकाई न हो तब तक दुश्मन के साथ क्या किया और क्या नहीं किया। ठुंकने वाली की आह, ऊह सुनाई पड़नी चाहिए, उसकी रुलाई, दुहाई मन को जो शांति प्रदान करती है उसका कोई जवाब नहीं है।