देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि आख़िरकार दस साल बाद ही सही उनकी प्रेरणा से लोग बुद्धि के बारे में बात कर रहे हैं। पिछले दस वर्षों से भारतीय समाज और देशी मीडिया बुद्धि से परहेज कर रहे थे, उससे सुरक्षित दूरी बरत रहे थे। उन्होंने बौद्धिक कार्य-कलापों को लगभग बंद कर दिया था और आठों पहर बुद्धिहीनों की तरह व्यवहार कर रहे थे। बुद्धुओं का महिमागान उनका प्रिय शगल और टाइम पास बन गया था। मगर अब महामना की बदौलत वे बढ़-चढ़कर बुद्धि पर बात कर रहे हैं।
बालक बुद्धि भली या बैल बुद्धि?
- व्यंग्य/उलटबाँसी
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- 29 Mar, 2025

प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से राहुल को ही बालक बुद्धि कहा था और ये तो समूचा ब्रह्मांड जानता है कि परपीड़क गोदी मीडिया को राहुल को कूटने में स्वार्गिक आनंद प्राप्त होता है। बीजेपी और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग पर पढ़ें मुकेश कुमार का व्यंग्य।
दरअसल, इस क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए हमें मोदी जी का आभारी होना चाहिए कि जिस समाज को उन्होंने पहले मंदबुद्धि बनाया था, अब वह उन्हीं की बदौलत बुद्धिमानी को गंभीरता से ले रहा है। टेम्पो भर के अतिरिक्त आभार इसलिए भी कि बुद्धिजीवियों से मोदी जी की जन्मजात दुश्मनी है, उनके और बुद्धिजीवियों के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है। मगर देश हित में उन्होंने अपनी निजी खुन्नस को आड़े नहीं आने दिया। ये सर्वविदित है कि अपने लंबे मुख्यमंत्रित्व और प्रधानमंत्रित्वकाल में उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि वे बुद्धिजीवियों को क़तई बर्दाश्त नहीं कर सकते। उन्हें अपनी विद्वत्ता के सामने सब हल्के लगते हैं इसीलिए किसी संदिग्ध बुद्धिजीवी को भी अपने पास नहीं फटकने देते। ग़लती से कोई क़रीब आ जाए तो उसे चिमटे से पकड़कर दूर कर देते हैं। बुद्धिजीवियों के प्रति उनका रवैया ठीक उसी तरह का रहता है जैसे बजरंगियों का प्यार मोहब्बत करने वालों से।