पूर्वी उत्तर प्रदेश की 61 सीटों पर कल मतदान है, लेकिन सभी की नजरें अयोध्या पर हैं। यहां तक बीजेपी की नजर भी अयोध्या पर है। अयोध्या बीजेपी के लिए हिन्दुत्व का प्रतीक है, अयोध्या बीजेपी के लिए उसकी सत्ता की सीढ़ी रही है। इसलिए अयोध्या उसके लिए विशेष है। लेकिन बीजेपी के लिए इस बार स्थितियां विपरीत हैं। दो घटनाओं ने अयोध्या में बीजेपी के लिए हालात बदल दिए। पहला था जमीन घोटाला और दूसरा था मुख्यमंत्री योगी का यहां से चुनाव न लड़ना। अयोध्या में राम मंदिर के लिए ली गई जमीन का घोटाला ऐन चुनाव से पहले सामने आया। जिसमें राम मंदिर ट्रस्ट के कर्ताधर्ता चंपत राय से लेकर मुख्यमंत्री योगी के तमाम चहेते अधिकारियों के रिश्तेदारों के नाम सामने आए।
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यह घोटाला बहुत बड़ा था लेकिन मुख्यधारा के मीडिया और उसके चैनलों ने इस खबर को दिखाया नहीं लेकिन स्थानीय लोगों को इस सारे घोटाले की जानकारी है। शहरी मतदाता कह रहे हैं कि उनकी पूरी आस्था राम मंदिर में है लेकिन बीजेपी में आस्था अब खत्म हो गई है। जितनी बड़ी लूट खसोट यहां हुई है, उतना शायद ही कहीं और हुई है और यह सब बीजेपी की नाक के नीचे हुआ है।दूसरी घटना योगी से जुड़ी है। मुख्यमंत्री योगी पिछले एक साल से अयोध्या पर फोकस कर रहे थे और उन्होंने वहां से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। नवम्बर 2021 में उन्होंने अपने ओएसडी को अयोध्या भेजा और चुनाव की तैयारी करने को कहा। इसके बाद बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की यूपी के टिकट को लेकर बैठक होने लगी। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को जब पता चला कि योगी अयोध्या से लड़ेंगे तो उसने तमाम राजनीतिक कारणों से योगी को अयोध्या से गोरखपुर भेज दिया। पार्टी के इस फैसले से योगी भी हैरान रह गए। समझा जाता है कि योगी का कद ज्यादा बढ़ न सके, इसके लिए ही योगी को अयोध्या से हटाया गया। अगर योगी अयोध्या से जीतते तो जाहिर है कि मोदी-अमित शाह उनका रास्ता रोक नहीं पाते।
योगी के अयोध्या से हटने पर यह संकट खड़ा हुआ कि यहां से बीजेपी से कौन लड़ेगा। पार्टी ने बिना विकल्प तलाश किए पुराने प्रत्याशी वेद प्रकाश गुप्ता को टिकट दे दिया। वेद प्रकाश गुप्ता की कोई तैयारी नहीं थी, वे योगी को ही प्रत्याशी स्वीकार कर चुके थे।
इन दोनों घटनाक्रमों ने अयोध्या में बीजेपी के हालात बिगाड़ दिया। अयोध्या में बीजेपी का चुनाव बिखरा-बिखरा सा है। यही वजह है कि अब खुद बीजेपी को यहां के चुनाव नतीजे का इंतजार है। अगर अयोध्या से बीजेपी हारती है तो उसका संदेश कुछ अलग ही जाएगा। अगर कोई अयोध्या में मतदाताओं के दिल का हाल जानने निकले तो उसे कड़ी मशक्कत करना पड़ेगी। शहरी इलाके में बाइकों पर भगवा पहनकर घूमते युवकों की टोली देखकर लगेगा कि जैसे यहां बीजेपी की कोई लहर चल रही हो। आप उनसे कोई भी बात कीजिए, वो चंद मिनटों में ही जय श्रीराम के नारे लगाने लगते हैं। लेकिन जैसे ही आप अयोध्या से लगते ग्रामीण इलाके का रुख करते हैं, हालात बदले हुए नजर आते हैं। टाटपुरा के धर्मेंद्र पासी एक पत्रकार को अपने वोटिंग विकल्पों के बारे में बताने से हिचकिचाते हैं।
पत्रकार जैसे ही धर्मेंद्र पासी से बातचीत शुरू करता है, वह कहते हैं कि इन दिनों वो बहुत परेशान हैं। उनकी सारी फसल को आवारा जानवरों ने तबाह कर दिया है। जब उनसे पूछा जाता है कि वो किसे वोट करेंगे, तो वो कहते हैं कि इसका फैसला हमारा पासी समाज मिलकर लेगा। वैसे भी वोट तो गुप्त है। उसे क्या जाहिर करना। धर्मेंद्र पासी ने अपनी बात भी कह दी और ये भी बता दिया कि वो किस मुद्दे के आधार पर वोट डालेंगे लेकिन उन्होंने सारी बात होशियारी से कही।
टाटपुरा गांव अयोध्या शहरी सीट का हिस्सा है। अयोध्या लोकसभा सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं, 2017 में बीजेपी ने सारी सीटें जीत ली थीं। इस बार लड़ाई आसान नहीं है। अंतिम परिणाम जो भी हो, लेकिन राम मंदिर के अलावा कई अन्य मुद्दे हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं को प्रभावित कर रहे हैं। पूरे उत्तर प्रदेश में, जब दलितों से बातचीत उन गांवों में की जाती है, जहां वे ओबीसी और अगड़ी जातियों के साथ रहते हैं, तो वे सवाल करने पर टालमटोल करते हैं और कभी-कभी तो भ्रामक सूचनाएं तक भी देते हैं। लेकिन गांवों और बस्तियों में जहां वो अपनी आबादी में रहते हैं, दलित मतदाता खुलकर बोलते हैं।
पासी दलितों का ही एक वर्ग है, जो अवध क्षेत्र की कई सीटों के लिए महत्वपूर्ण है। गांवों में जाकर बातचीत से पता चलता है कि पासी मतदाता स्थानीय गणित और उम्मीदवार के आधार पर समाजवादी पार्टी (सपा) में चला गया है। हालांकि 2017 में वे बीजेपी के प्रबल समर्थक थे। जाटव दलित, जो अनुसूचित जाति की आबादी का 54 प्रतिशत हैं, जो कि राज्य की आबादी का 21 प्रतिशत हैं, हमेशा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की ओर अधिक झुकाव रखते हैं। उनमें से कुछ एसपी में शिफ्ट हो रहे हैं लेकिन पासियों की तुलना में कम संख्या में।
बीजेपी ने 2017 और 2019 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग को तार-तार कर दिया। बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी और 2019 के लोकसबा चुनाव में 50 फीसदी वोट प्राप्त किया था। द ग्रेट सोशल इंजीनियरिंग की गाड़ी से अब कुछ नट और बोल्ट गायब हैं क्योंकि पूरे उत्तर प्रदेश में तमाम जाति समूहों ने राष्ट्रीय पार्टी से दूरी बना ली है। लेकिन इसकी साफ तस्वीर चुनाव परिणाम बताएगा।
अयोध्या में ही किराना की दुकान में काम करने वाले कुर्मी अशोक वर्मा का साफ कहना है कि बीजेपी का दौर खत्म हो गया है और वह इस चुनाव में सपा को वोट दे रहे हैं। लेकिन अशोक वर्मा उस समय चुप हो जाते हैं जब उसी दुकान का कुर्मी मालिक आता है। फिर वो लड़खड़ाती जुबान संभालते हुए कहता है कि वह बीजेपी का समर्थन करेगा क्योंकि वह नहीं चाहता कि यादवों का शासन यूपी में हो। यह पूछने पर कि राम मंदिर की इस चुनाव में क्या भूमिका रहेगी, वर्मा ने कहा कि इसका हमारे वोटिंग विकल्पों से कोई लेना-देना नहीं है।
2017 में बीजेपी ने अयोध्या सीट पर 50,000 वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की थी, जबकि 2012 में सपा ने 5,400 वोटों के मामूली अंतर से सीट जीती थी। वही दो उम्मीदवार, बीजेपी के वेद प्रकाश गुप्ता और सपा के तेज नारायण पांडे फिर ये अयोध्या के रण में आमने-सामने हैं। बहरहाल, बीजेपी प्रत्याशी का चुनाव दरअसल यहां विश्व हिंदू परिषद / बजरंग दल के कथित तूफानी सैनिक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) लड़ रहा है। संघ काडर यह तय करने की कोशिश कर रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों के विपरीत शहरी क्षेत्रों में मतदान तेज हो। यह एक ऐसी सीट है, जहां एक समय में कम्युनिस्ट पार्टी की भी मौजूदगी थी, और सीपीआई के पास वास्तव में एक उम्मीदवार था। लेकिन अब सीपीएम और सीपीआई के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि सपा और बीच के बीच लड़ाई जारी है।
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इस तरह बीजेपी के लिए सिर्फ अयोध्या सीट ही नहीं फंसी हुई है, बल्कि इसके आसपास मिल्कीपुर और गोसाईगंज की सीट भी फंसी हुई है। मिल्कीपुर से बीजेपी ने गोरखनाथ को खड़ा किया है। बहुत विवादित हैं। योगी के खास हैं। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी यहां पिछड़ रही है। यही हाल गोसाईंगंज का है, जहां बीजेपी प्रत्याशी किसी तरह के मुकाबले में सपा का सामना नहीं कर पा रहा है। इस तरह अयोध्या का मूड बीजेपी को रास नहीं आ रहा है।
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